भूखे-नंगे देश में पोषण पर क्विज़ और मीम?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त को रेडियो पर “मन की बात” की। मन की बात करते हुए उन्होंने गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण पर भी बात की। उन्होंने जानकारी दी कि सितंबर महीने को पोषण माह के तौर पर मनाया जाएगा।

उन्होंने कहा-

न्यूट्रीशन और नेशन में गहरा संबंध है। विशेषज्ञों का मानना है कि बचपन में जितना अच्छा पोषण मिलता है, उतना ही अच्छा मानसिक विकास होता है और बच्चा स्वस्थ रहता है। बच्चों के साथ-साथ जरूरी है कि मां को भी पूरा पोषण मिले।

इस पोषण माह में केंद्र सरकार क्या करेगी, इस बारे उन्होंने जो बताया वो हास्यास्पद तो है ही बल्कि उसमें गहरी असंवेदनशीलता भी है। उन्होंने बताया कि my.gov वेबसाइट पर पोषण के बारे क्विज़ और मीम प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। इससे पता चलता है कि सरकार बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण को लेकर कितनी गंभीर है। सरकार की गंभीरता को मापने का एक तरीका ये भी है कि ये देखा जाए कि सरकार ने अब तक पोषण के लिए किया क्या है? भारत में पोषण की स्थिति क्या है?

सबसे पहले एक बार फिर से ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2019 याद दिलाना चाहूंगा। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग के अनुसार भारत 117 देशों में 102वें स्थान पर है। भारत में भूख की समस्या ‘सीरियस’ माने गंभीर है। भारत में कुल मिलाकर भोजन और भूख की स्थिति कितनी भयावह है, आप इससे समझ सकते हैं। समुचित पोषण और भोजन में आवश्यक पोषक तत्व तो दूर की बात है।

अब बात करते हैं बच्चों और गर्भवती महिलाएं के पोषण की। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2018 में पांच साल से कम उम्र के 8 लाख 82 हज़ार बच्चों की मौत हुई है। यानि हर दिन 2416 बच्चों की मौत होती है। 22 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट पैदा होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार मात्र 20 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिनके भोजन में विविधता है। 22 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं जिन्हें नियमित अंतराल पर खाना मिलता है। 6 महीने से 23 महीने की उम्र के 55 प्रतिशत बच्चे हैं जिन्होंने कभी कोई फल नहीं खाया है। 38 प्रतिशत बच्चों का कुपोषण की वजह से विकास बाधित है।

अब एक बार नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट पर भी नज़र डालिए। रिपोर्ट के अनुसार मात्र 30.3 प्रतिशत महिलाओं ने 100 दिन तक आयरन फोलिक एसिड की टेबलेट ली है। ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा महज 25.9 प्रतिशत है। 6 महीने से 5 वर्ष की आयु वर्ग के 58.6 प्रतिशत बच्चे खून की कमी के शिकार हैं। 15 से लेकर 49 वर्ष आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में 50.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं। ये आंकड़े हमारे सामने पोषण और भूख के भयावह स्थिति पेश कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पोषण का सीधा संबंध रोजगार, आमदनी और ग़रीबी से है। कोरोना के समय में स्थिति और भी विकराल हो चुकी है। प्रवासी मज़दूरों की मौत, पलायन और दुर्गति को पूरे देश ने देखा है। करोड़ों लोगों का रोज़गार गया है। छोटे और मंझोले उद्योग संकट में हैं। वे या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर हैं। ऐसे में दो समय का खाना जुटाना महाभारत हो चुका है। समुचित पोषण तो दूर की बात है।

लोगों के रोजगार और महामारी के हालात अभी भी संभल नहीं रहे हैं। कोरोना के मामलों की संख्या एक दिन में 78,761 पर पहुंच गयी है। लोगों का रोज़गार जा रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ कर रहे हैं और उसमें असंवेदनशील और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से पोषण पर बात कर रहे हैं। पांच साल से कम आयु वर्ग के बच्चों की मौत में हम विश्व में पहले स्थान पर हैं, जहां का प्रधानमंत्री पोषण पर क्विज़ और मीम प्रतियोगिता कराने में व्यस्त और खुद पर मंत्रमुग्ध है।


राजकुमार स्‍वतंत्र पत्रकार हैं


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