इतिहास में किस रूप में याद की जाएंगी लता मंगेशकर?


हिंदी फिल्मों की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका लता मंगेशकर (28 सितंबर, 1929 – 6 फ़रवरी, 2022) के निधन के बाद, जैसा कि हमारी परंपरा है, उन्हें बड़े पैमाने पर श्रद्धांजलि दी गयी। श्रद्धांजलियां जितनी जनता की ओर से रहीं, उतनी ही भारत सरकार की ओर से भी। उनके निधन पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। इस दौरान राष्ट्रध्वज आधा झुका रहा और देश में कहीं भी सरकारी स्तर पर मनोरंजक कार्यक्रम की मनाही रही।

लता जी ने 92 वर्ष का लंबा जीवन जिया। 1950 के बाद से कई दशकों तक उन्होंने फिल्मी-गायन की दुनिया पर एकछत्र राज किया। संगीत के संस्कार उन्हें पारिवारिक विरासत में मिले थे। उनके पिता का वास्ता भी संगीत की दुनिया से था। लता की सगी बहनें आशा भोंसले और उषा मंगेशकर भी प्रसिद्ध गायिकाएं हैं। लता जी भले ही इंदौर में पैदा हुईं, लेकिन उनकी रगों में गोवा के एक प्रसिद्ध देवदासी परिवार का रक्त था। उनकी दादी देवादासी थीं। मराठी और हिंदी की प्रख्यात दलित लेखिका सुजाता पारमिता ने लता को दलित और देवदासी परिवार से बताया है। पारमिता के अनुसार, लता के पिता भी देवदासी माँ की संतान थे[i] जबकि कुछ अन्य लोग उन्हें भट्ट ब्राह्मण परिवार का साबित करते हैं। जो भी हो, लेकिन लता जी की आवाज में प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसा था, जो बरबस सबको अपनी ओर खींचता था।

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आज पलट कर देखने पर हम पाते हैं कि लता जी को 50 वर्षों से अधिक समय तक पार्श्व-गायन के शीर्ष पर बनाए रखने में मुख्य रूप से दो चीजों का योगदान था।

इनमें सर्वोपरि थी उनकी प्राकृतिक आवाज, जो सिर्फ और सिर्फ उनकी थी। प्रकृति ने उन्हें यह अद्भुत नेमत बख्शी थी। जैसा कि उस्‍ताद बड़े गुलाम अली खां ने एक बार उनके लिए बहुत प्यार से कहा था- “कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती, वाह! क्या अल्लाह की देन है।””[ii] इसके अलावा उन्हें बुलंदी पर बरकार रखने में भारत के एक राजनीतिक धड़े की भी भूमिका थी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रिय गायिका थीं। यह एक अजीब विरोधाभास था। वे प्रेम के गीत गाती थीं, लेकिन आजीवन उन ताकतों के साथ खड़ी रहीं जो अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक प्रेम करने वालों के विरोधी हैं।

वर्ष 2001 में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। भाजपा ने ही उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया था, लेकिन सदन में उपस्थिति का उनका रिकॉर्ड बेहद खराब था।[iii] सदन नहीं जाने के कारण वे वहां से मिलने वाला वेतन भी नहीं लेती थीं[iv], ताकि कोई उन पर उंगली न उठा सके।

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा था

इन सबके बरक्स उनके सामाजिक सरोकार किस प्रकार के थे, इसका पता इससे चलता है कि उन्हें भारत रत्न मिलने के कुछ ही समय बाद जब उनके मुंबई स्थित घर के पास एक फ्लाइओवर बनने लगा तो उन्होंने धमकी दी कि अगर उनके घर के पास फ्लाइओवर बना तो वे देश छोड़ कर चली जाएंगी। उनकी धमकियों के आगे सरकार को झुकना पड़ा और वह फ्लाइओवर नहीं बन सका।[v] यह उनके स्वार्थ की पराकाष्ठा के प्रदर्शन का एक नमूना है।

सवाल ये है कि क्या किसी को राजनीतिक दल यूं ही इतना सम्मानित किया करते हैं?

लता के आदर्श राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रेरणा पुरुष विनायक दामोदर सावरकर थे। वे सावरकर की प्रशंसा का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थीं। वे हर वर्ष सावरकर जयंती पर ट्वीट कर उन्हें अपने पिता समान और भारत माता का सच्चा सपूत बताया करती थीं।[vi] सावरकर की ही भांति लता की निजी आस्था न तो स्त्री की आजादी में थी, न ही उन्हें भारत की धर्मनिरपेक्षता से लगाव था।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अशरफ़ अज़ीज़ के लेख “द फिमेल वॉयस ऑफ हिंदुस्तानी फिल्म सांग्स” में लता के अवदान की विस्तृत चर्चा है। इस सुचिंतत लेख में अशरफ़ अज़ीज़ की भी स्थापना है कि “लता मंगेशकर की आवाज ने औरतों को आज्ञाकारी और घरेलू बनाने में भरपूर मदद की।[vii]

वे भारत की धर्मनिरपेक्षता पर आघात करने वाली सबसे बड़ी घटना बाबरी मस्जिद के विध्वंस से प्रसन्न थीं। 5 अगस्त, 2020 को जब कोविड महामारी के दौरान भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री ने तोड़ी गयी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर की आधारशिला रखी तो लता जी ने ट्वीट किया था कि “कई राजाओं का, कई पीढ़ियों का और समस्त विश्व के राम भक्तों का सदियों से अधूरा सपना आज साकार हो रहा है”[viii] राज्य-सत्ता की दमनकारी नीतियों के विरोध में जनता का विरोध उन्हें उचित नहीं लगता था।

2021 में जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय पॉप गायिका रिहाना ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन के पक्ष में ट्वीट किया तो लता मंगेशकर ने ट्वीट कर रिहाना को लताड़ लगायी। उस समय लता मंगेशकर के साथ-साथ कुछ अन्य सेलिब्रिटी सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी ने भी रिहाना को लताड़ने वाले ट्वीट किए, लेकिन एक मजेदार बात यह सामने आयी कि इन ट्वीटों के सिर्फ़ भाव ही नहीं बल्कि कई शब्द भी समान थे। बाद में मालूम चला कि लता मंगेशकर समेत इन सभी लोगों ने भाजपा के आइटी सेल द्वारा उपलब्ध करवाई सामग्री ट्विटर पर पोस्ट की थी।[ix]

लता मंगेशकर समेत इन सभी लोगों ने भाजपा के आइटी सेल द्वारा उपलब्ध करवाई सामग्री ट्विटर पर पोस्ट की थी

दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा लता की लोकप्रियता का उपयोग किस तरह किया करते थे, इसका पता 2019 में प्रसारित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की रिकार्डिंग को सुनने से लगता है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने श्रोताओं को लता मंगेशकर से फोन पर हुई ‘निजी’ बातचीत की रिकार्डिंग सुनायी।

प्रधानमंत्री के अनुसार, यह रिकार्डिंग उस समय की है जब उन्होंने लता मंगेशकर को उनके 90वें जन्मदिन की बधाई देने के लिए औचक फोन किया था। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मोदी कहते हैं कि लता जी से उनकी “यह बातचीत वैसी ही थी, जैसे बहुत दुलारमय छोटा भाई अपनी बड़ी बहन से बात करता है।[x]” वे कहते हैं कि “मैं इस तरह के व्यक्तिगत संवाद के बारे में कभी बताता नहीं, लेकिन आज चाहता हूं कि आप भी लता दीदी की बातें सुनें।[xi]

रिकार्डिंग की शुरुआत में मोदी कहते हैं- “लता दीदी प्रणाम, मैं नरेंद्र मोदी बोल रहा हूं। मैंने फोन इसलिए किया क्योंकि इस बार आपके जन्मदिन पर मैं हवाई जहाज में ट्रैवलिंग कर रहा हूं। तो मैंने सोचा जाने से पहले मैं आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई… अग्रिम बधाई दे दूं… आपको प्रणाम करने के लिए मैंने अमेरिका जाने से पहले आपको फोन किया है।’’

मोदी इस कार्यक्रम में यह जताते हैं कि यह दो व्यक्तियों के बीच सच्चे हृदय से हुई बातचीत है जिसमें लता सरकार की उपलब्धियों के पुल बांधती हैं, लेकिन उस रिकार्डिंग में ही मालूम चल जाता है कि यह सुनियोजित बातचीत थी जिसे लता की लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए प्रधानमंत्री की प्रचार टीम ने आयोजित किया था। दरअसल, उसमें लता का यह कहा हुआ भी रिकॉर्ड है कि “आपका फोन आएगा, यही सुनकर मैं बहुत ये हो गई थी”[xii]

लता के मुंह से अनायास निकला यह वाक्य बता देता है कि पूरी बातचीत बनावटी है, लेकिन तमाम मीडिया-संस्थानों ने इससे संबंधित खबर को उस प्रकार से ही प्रसारित किया जैसा कि प्रधानमंत्री की प्रचार टीम चाहती थी। हर जगह इस खबर की धूम रही कि प्रधानमंत्री ने लता मंगेशकर को जन्मदिन की बधाई दी। खबरों में कहा गया कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर उनके प्रधानमंत्री बनने को देश के लिए सौभाग्य की बात मानती हैं।[xiii]

उम्र में नरेंद्र मोदी लता मंगेशकर से 31 वर्ष छोटे हैं। इस रिकार्डिंग में लता उनसे आशीर्वाद मांगती हैं। वे कहती हैं कि जन्मदिन पर अगर “आपका आशीर्वाद मिले तो मेरा सौभाग्य होगा।” प्रधानमंत्री उनकी बात काट कर कहते हैं कि मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए।[xiv]

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में मीडिया-मैनेजमेंट का जो दौर चल रहा है उसमें उपरोक्त लता-मोदी प्रहसन कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन जब एक कलाकार के रूप में लता के व्यवहार और एक कलाकार की गरिमा से संबंधित सरोकारों का आकलन करना हो तो इन छोटी लगने वाली बातों को ध्यान में रखना होगा क्योंकि इनके निहितार्थ छोटे नहीं हैं।

लता जी के निधन के बाद मैंने अपने फेसबुक वॉल पर उनके सामाजिक सरोकारों के सवालों को उठाया था।[xv] उस पोस्ट को पढ़ने के बाद एक ट्रेड टोली ने मेरी पोस्ट पर गाली-गलौज करने का आह्वान किया। जड़मति लंपट युवाओं की इस टोली के आह्वान के बाद लगभग 700 लोगों ने मेरे फेसबुक वॉल पर आकर गालियां दीं, जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी है। मेरी उस पोस्ट को शेयर करने वाले मित्रों को, जिनमें हिमांशु कुमार जैसे प्रसिद्ध कार्यकर्ता भी शामिल थे, को भी गालियां दी गयीं।

ये ट्रोल-सेना क्या लता को उन सवालों से बचा पाएगी जो सांभा जी भगत जैसे लोकप्रिय मराठी गायक वर्षों से उठाते रहे हैं?
सांभा जी बताते हैं कि किस प्रकार लता मंगेशकर ने डॉ. आंबेडकर से संबंधित गीत गाने से मना कर दिया था। सांभा जी ने इस संबंध में 2015 में रांची स्थित आदिवासी और दलित समुदाय से आने वाले युवा वकीलों के संगठन ‘उलगुलान’ द्वारा आयोजित एक संगीत कार्यक्रम में जो कहा, उसे यहां उन्हीं के शब्दों में पूरा उद्धृत कर देना प्रासंगिक होगा, ताकि हम उस दर्द की तासीर को ठीक से महसूस कर सकें।

सांभा जी भगत ने उपरोक्त कार्यक्रम में कहा था:

लता बाई, आशा बाई, उषा बाई – तीनों मिलकर गाते हैं।… उनके आगे भी गणपति होते हैं, पीछे भी गणपति होते हैं, लेकिन इस पूरे दृश्य में हम लोग किधर खड़े हैं? लता बाई की आवाज बहुत अच्छी है… एक बार हमारे लोग गए थे लता बाई के पास में कि हमारे जो बाबा साहब आंबेडकर हैं उनका एक गाना गाओ आप, लेकिन लता बाई ने इंकार कर दिया। मैं कहता हूं कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि किसको नकारा जाता है। लता बाई ने क्यों इंकार किया? क्योंकि डॉ. आम्बेडकर अछूत हैं। उन्होंने बाकी सब गाया है। हम लोग उनको बोले कि पैसे का प्राब्लम है तो पैसे देते हैं न! लेकिन उन्होंने नहीं गाया। … उनकी बहुत सुंदर आवाज है। ऐसी सुंदर आवाज अगर हमारे बाबा साहब के नाम का स्पर्श होने से अपवित्र होती है तो ऐसी आवाज हमारे लिए कचरा है। कोई जरूरत नहीं है उसकी। हमारी हजारों लता बाई और आशा बाई को उन्होंने गांव-गांव में खत्म किया है। वे उन लोगों को अपना भाई बताती हैं कि जिन्होंने हजारों लोगों का कत्लेआम किया है। एक कलाकार को अपना पक्ष जरूर चुनना चाहिए। अगर कत्लेआम करने वाले उनके भाई हैं तो वे हमारी बहन नहीं हो सकतीं।[xvi]

लता किस प्रकार का गायन खुशी से करती थीं, इसे देखना हो तो उस वीडियो को देखना चाहिए जिसमें वे सावरकर के गीत “हे हिंदू शक्ति संभूत दिप्ततम तेजा” को पूरे मनोयोग से गा रही हैं।

शिवा जी का सांप्रदायिकीकरण करने वाले इस गीत की पंक्तियां इस प्रकार है :

“हे हिंदू शक्ति संभूत दिप्ततम तेजा
हे हिंदू तपस्या पूत ईश्वरी ओजा
हे हिंदू श्री सौभाग्य भूतिच्या साजा
हे हिंदू नृसिंहा प्रभो शिवाजीराजा
करि हिंदू राष्ट्र हें तूतें”
[xvii] 

इस मराठी गीत को वीडियो में संगीत उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर ने दिया था।[xviii]

लता और उनके परिवार का जिक्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी ने हाल ही में प्रकाशित हुई अपने भाषणों की पुस्तक ‘विकास के पथ’ में भी किया है। गडकरी बताते हैं कि लता “दीदी “कट्टर राष्ट्रवादी हैं। … स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के प्रति उनकी प्रगाढ़ श्रद्धा है।[xix]

गडकरी ने किताब में बताया है कि “जिस समय मुंबई के वरली-बांद्रा पुल का भूमि पूजन कार्यक्रम था, उस समय मैंने लता दीदी और उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर के सामने इच्छा रखी कि सावरकर द्वारा रचित गीत या तो स्वयं उनके द्वारा अथवा उनके परिवार के द्वारा गाया जाना चाहिए। … इस कार्यक्रम में हृदयनाथ मंगेशकर आए और इस परिवार की वीर सावरकर के प्रति जो श्रद्धा है उसी के अनुरूप उन्होंने वीर सावरकर रचित चार गानों को बड़ी सुंदरता से पेश किया।”[xx]

बहरहाल, इन प्रसंगों और उद्धरणों को बताने के पीछे मेरा मकसद यह है कि लता के निधन के बाद मैंने फेसबुक पर छोटी-सी पोस्ट में जो लिखा था, उसे और स्पष्ट कर दूं।

लता के संगीत पर, उनकी हर-दिल-आवाज पर बहुत सारे लोग बात करेंगे, लेकिन यह तो उनकी आवाज के प्रशंसक भी जानते हैं कि उनकी आवाज में कुछ प्राकृतिक जादू था। जन्मजात थी उनकी आवाज। उस मूल आवाज में लता जी का अपना तो कुछ था नहीं। ऐसे में यह ज्यादा आवश्यक है कि हम देखें कि जो लता का अपना था, वह क्या था?

सवाल यह नहीं है कि उन्होंने आंबेडकर के गानों को क्यों नहीं गाया। इन थोथे प्रतीकों का खूब दुरुपयोग होता है। कोई उनके आंबेडकर पर कहे औपचारिक शब्दों को सामने रख सकता है तो कोई उनकी नेहरू अथवा किसी कम्युनिस्ट, बहुजन नेता के साथ की तस्वीरों को।

इसलिए मेरा सवाल यह है कि लता मंगेशकर के सामाजिक सरोकार क्या थे, वे धार्मिक पोंगापंथ के पक्ष में थीं या वैज्ञानिक-चेतना के प्रसार के पक्ष में? स्त्रियों को प्रेम करने की आजादी, दलित-पिछड़ों द्वारा सामाजिक-आर्थिक समानता के लिए संघर्ष आदि के प्रति उनके विचार क्या थे? और, यह जो कुछ उनका अपना था, उसके आधार पर उन्हें इतिहास में किस प्रकार याद किया जाएगा? वे किस ओर खड़ी हैं?

जैसा कि मैंने फेसबुक पर भी लिखा था, लता जी की वैचारिक बुनावट प्रतिगामी और प्रतिक्रियावादी थी। मुझे नहीं पता कि उन्होंने अपने-अपने प्रतिगामी समाजिक सरोकारों का उस प्रकार सचेत चुनाव किया था या नहीं, जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े उच्चवर्णीय लोग करते हैं।

सावरकर के साथ लता मंगेशकर -एक पुरानी तस्वीर

उपरोक्त प्रसंगों से इतना तो स्पष्ट है कि दुनिया कैसी होनी चाहिए, कौन-सी ताकतें दुनिया के सुर को बिगाड़ती हैं और कौन इसे संवारने के लिए संघर्षरत हैं, इस बारे में उनका कोई विचार ही नहीं था।

दुनिया में आज तक किसी विचारहीन कलाकार ने इतिहास में स्थान नहीं बनाया है, चाहे वह अपने जीवन-काल में कितना भी महान क्यों न लगता रहा हो। लता के गीत भले ही कुछ अरसे तक जीवित रहें, लेकिन एक कलाकार के रूप में लता इतिहास के कूड़ेदान में वैसे ही जाएंगी, जैसे कोई टूटा हुआ सितार जाता है, चाहे उसने अपने अच्छे दिनों में कितने भी सुंदर राग क्यों न निकाले हों।

उनकी दिलकश आवाज का जादू देश के करोड़ों लोगों की तरह मुझे भी प्रभावित करता है। मैं भी चाहूंगा कि किसी को भी मिली ऐसी प्रकृति प्रदत्त नेमत का सम्मान हो, लेकिन यह भी अवश्य देखा जाना चाहिए कि उसने जाने-अनजाने इस नेमत को किन ताकतों के पक्ष में बरता तथा उन ताकतों ने उसका किस प्रकार का सामाजिक-राजनीतिक उपयोग किया।


प्रमोद रंजन की दिलचस्पी संचार माध्यमों की कार्यशैली और ज्ञान के निर्माण की प्रक्रिया के अध्ययन व विश्लेषण में रही है। हिंदी व अंग्रेजी की कई पत्रिकाओं के संपादक रहे रंजन की प्रमुख पुस्तकें ‘बहुजन साहित्य की प्रस्तावना’, ‘साहित्येतिहास का बहुजन पक्ष (सं) व शिमला-डायरी हैं। संपर्क : janvikalp@gmail.com


स्रोत और संदर्भ

[i] चंदन, संजीव. Facebook 7 Feb. 2022. Web. <https://www.facebook.com/sanjeev.chandan/posts/4781172681938441>.

[ii] भिमानी, हरीश. लता दीदी : अजीब दास्तान है ये.वाणी प्रकाशन, 2009. Print.

[iii] पटेल, आकार. “सचिन और लता ‘नहीं थे भारत रत्न के हक़दार.’” BBC News हिंदी 24 July 2016. Web. 7 Feb. 2022. <https://www.bbc.com/hindi/india/2016/07/160724_bharat_ratna_politics_tk?>.

[iv] लाइव हिन्दुस्तान. “जब लता दीदी को भेजे सारे चेक वापस आ गए, राज्यसभा सांसद के तौर पर नहीं लिया वेतन, बंगला भी ठुकाराया.” Hindustan 7 Feb. 2022. Web. <https://www.livehindustan.com/national/story-lata-mangeshkar-not-takes-single-penny-as-a-rajya-sabha-mp-and-rejects-bungalow-5758351.html#>.

[v] पटेल, आकार. “सचिन और लता ‘नहीं थे भारत रत्न के हक़दार.’” BBC News हिंदी 24 July 2016. Web. 7 Feb. 2022. <https://www.bbc.com/hindi/india/2016/07/160724_bharat_ratna_politics_tk?>.

[vi] अमर उजाला डिजिटल. “सावरकर के साथ रिश्ते पर लता मंगेशकर का खुलासा, विरोध करने वालों को पहले ही बता चुकी हैं नादान.” Amarujala 20 Sept. 2019. Web.<https://www.amarujala.com/photo-gallery/entertainment/bollywood/lata-mangeshkar-open-her-relationship-with-veer-savarkar>

[vii] अजीज अशरफ. “The Female Voice in Hindustani Film Songs.” Light of the Universe: Essays on Hindustani Film Music. Three Essays Collective, 2012. (इस लेख की जानकारी मुझे युवा कवि धीरेश सैनी के एक फेसबुक पोस्ट से मिली, जो उन्होंने लता मंगेशकर के निधन के बाद लिखी है। धीरेश सैनी ने ही सबसे पहले पहले दलित गायक सांभा जी भगत के उस वीडियो को ढ़ूढा, जिसका जिक्र इस लेख में आगे किया गया है)

[viii] दैनिक भास्कर, “अयोध्या में भूमिपूजन, बॉलीवुड में खुशी: लताजी ने कहा सदियों से अधूरा सपना आज साकार होता दिख रहा, अनुपम खेर”. 5 Aug. 2020. Web.<https://www.bhaskar.com/entertainment/bollywood/news/indian-film-and-tv-artist-from-bollywood-reaction-on-ram-mandir-bhumipujan-ayodhya-news-and-updates-127587034.html>.

[ix] पांडे, अविनाश. “Celebrity Tweet Controversy: सेलिब्रिटी ट्वीट मामले में बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख का नाम आया सामने: गृहमंत्री अनिल देशमुख.” Navbharat Times 15 Feb. 2021. Web. <https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/politics/home-minister-anil-deshmukh-said-that-bjp-it-cell-was-involved-in-celebrity-tweet-case/articleshow/80923242.cms>.

[x] नरेंद्र, मोदी. “मन की बात 2.0, भाग-4.” Pmonradio.nic.in, 29 Sept. 2019. Redio.<https://pmonradio.nic.in/archives.html#>

[xi] नरेंद्र, मोदी. “मन की बात 2.0, भाग-4.” Pmonradio.nic.in, 29 Sept. 2019. Redio.<https://pmonradio.nic.in/archives.html#>

[xii]नरेंद्र, मोदी. “मन की बात 2.0, भाग-4.” Pmonradio.nic.in, 29 Sept. 2019. Redio.<https://pmonradio.nic.in/archives.html#>

[xiii], एबीपी लाइव. “Lata Mangeshkar-PM Modi Conversation: नमस्कार मैं पीएम मोदी बोल रहा हूं…जानिए आखिर क्यों अचानक लता दीदी.” ABP News 6 Feb. 2022. Web. <https://www.abplive.com/news/india/must-listen-an-interesting-conversation-of-pm-modi-with-lata-mangeshkar-2055477>.

[xiv] नरेंद्र, मोदी. “मन की बात 2.0, भाग-4.” Pmonradio.nic.in, 29 Sept. 2019. Redio.<https://pmonradio.nic.in/archives.html#>

[xv] रंजन, प्रमेाद. Facebook 6 Feb. 2022. Web. <https://www.facebook.com/janvikalp/posts/2121813037984201>.

[xvi] भगत, सांभाजी, “Sambhaji Bhagat @ Ulgulan2015 – Palkichi Boi.” YouTube 23 July 2015. Web. 7 Feb. 2022,<https://youtu.be/9_tteC2yjso>

[xvii] मंगेशकर लता . “प्रभो शिवाजी राजा.. गीत स्वातंत्र्यवीर सावरकर आवाज लता मंगेशकर,.” YouTube 20 Oct. 2017. Web. 7 Feb. 2022. <https://youtu.be/d4rImyyfb3Y>.

[xviii] सावरकर विनायक दामोदर . “हे हिंदुशक्ति संभूत दिप्ततम तेजा.” मराठी कविता संग्रह. N.p., 26 Nov. 2008. Web. 7 Feb. 2022. <https://cutt.ly/wOLYwNu>.

[xix]  सावरकर विनायक दामोदर . “हे हिंदुशक्ति संभूत दिप्ततम तेजा.” मराठी कविता संग्रह. N.p., 26 Nov. 2008. Web. 7 Feb. 2022. <https://cutt.ly/wOLYwNu>.

[xx] गडकरी नितिन. “लता: भारतीय संगीत की धरोहर.” विकास के पथ. प्रभात प्रकाशन, 2020. Print.


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