क्या भाजपा और संघ ने 2024 की पटकथा लिख दी है?


एक समय ब्राह़्मण और बनिया की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ने पिछले नौ बरस में अपने आप को हैरतअंगेज तौर पर बदला है। जवाहर लाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस ने ब्राह्मण, मुसलमान और दलित वोट बैंक को साधने और इनमें संतुलन बैठाने का कार्य किया था। मोदी और शाह उसकी काट में सवर्ण, ओबीसी, दलित और आदिवासी समाज के एक बड़े धड़े को भाजपा के पक्ष में ले आए हैं। हर गुजरे चुनाव ने यह साबित भी किया है कि भाजपा द्वारा की गई गोलबंदी न केवल और मजबूत होती जा रही है बल्कि वह समाज में घटित किसी भी अप्रिय घटना से विचलित भी नहीं होती। ऐसे में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में जिस तरह से भाजपा ने राजनीतिक समीकरणों को साधते हुए नियुक्तियां की हैं उससे स्पष्ट है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने वर्ष 2024 में प्रस्तावित लोकसभा निर्वाचन की पटकथा लिख दी है।

राहुल गांधी और विपक्ष के अन्य नेताओं द्वारा लगातर जिस तरह जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाए जाने के बाद भी हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हाल ही में संपन्न विधानसभा के आम निर्वाचन में अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग जिस तरह से भाजपा के साथ गया है, उससे मोदी और शाह की जोड़ी, जिन्होंने भाजपा को चौबीस घंटे सातों दिन काम करने वाली चुनावी मशीन बना दिया है, को नए सिरे से जाति आधारित समीकरणों की जमावट करने का मौका मिल गया है। यह जमावट स्पष्ट तौर पर वर्ष 2024 में प्रस्तावित लोकसभा आम निर्वाचन को लेकर की गई है। दिलचस्प यह भी है कि इन तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री का पद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नजदीकी माने जाने वाले व्यक्तियों को सौंपा गया है। इससे यह आकलन भी निकलता है कि भाजपा की कमान एक बार फिर संघ अपने हाथों में ले रहा है।

तमाम राजनीतिक और सामाजिक विश्‍लेषक यह आकलन करने में असफल रहे हैं कि बसपा सुप्रीमो स्व. कांशीराम द्वारा दिए गए नारे ‘‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’’ को भाजपा ने किस चतुराई से अपनी राजनीति का केन्द्र बना लिया है। आदिवासी मतदाताओं का सर्वाधिक प्रतिशत छत्तीसगढ़ में हैं तो वहां एक आदिवासी, ओबीसी बहुल मध्य प्रदेश में ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही राजस्थान, जहां प्रमुख तौर पर जाट, गुर्जर, राजपूत, मीणा और ब्राह्मण समुदाय का बोलबाला रहा है, में एक ब्राम्हण को मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही राजपूत समाज से आने वाली दीया कुमारी तथा अनुसूचित जाति से आने वाले समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ ही सिंधी समुदाय के वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त कर बेहद चतुराई से लोकसभा चुनाव के लिए जातिगत समीकरणों का ताना-बाना बुन दिया है।

लगभग 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा लगभग 13 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति वाले राजस्थान में सामान्य वर्ग से मुख्यमंत्री बनाया जाना चौंकाता है। यह भी ध्यान रखना होगा कि मध्य प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनाए गए जगदीश देवड़ा राजस्थान से सटे मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में राजस्थान के अनुसूचित जाति समुदाय को उनके द्वारा साधा जा सकता है।

चुनाव परिणामों से एक हैरान करने वाला परिदृश्‍य सामने आता है। मध्य प्रदेश में भाजपा ने कुल मतदान के 48.5 प्रतिशत मत हासिल कर 2018 की तुलना में लगभग साढ़े सात प्रतिशत मत अधिक प्राप्त किए थे। वहीं कांग्रेस को 40.4 प्रतिशत मत से संतोष करना पड़ा जो कि 2018 में उसे प्राप्त मतों से महज आधा प्रतिशत ही कम था। ऐसे में भाजपा द्वारा जो आठ प्रतिशत मत अधिक प्राप्त किए गए वह अन्य दलों अथवा निर्दलीय को 2018 में मिलने वालों मतों का भाग है।

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भाजपा ने हालिया निर्वाचन में 2018 की तुलना में लगभग सवा तेरह प्रतिशत अधिक प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है, मगर कांग्रेस को 2018 की तुलना में महज शून्य दशमलव सात प्रतिशत मतों का ही नुकसान हुआ है। स्पष्ट है कि यहां भी भाजपा ने अन्य दलों अथवा निर्दलीय को मत देने वालों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाई है। सबसे ज्यादा दिलचस्प परिणाम राजस्थान के हैं। यहां न केवल भाजपा वरन कांग्रेस का मत प्रतिशत भी 2018 के निर्वाचन की तुलना में बढ़ा है। दोनों दलों ने संयुक्त तौर पर अन्य दलों अथवा निर्दलीय को 2018 के निर्वाचन में मिले मतों में लगभग सवा तीन प्रतिशत की सेंध लगाई है।



नतीजों से साफ है कि इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस अपने मतदाताओं को जोड़े रखने में सफल रही है जबकि भाजपा ने अन्य दलों अथवा निर्दलीय के समर्थन में जाने वाले मतदाताओं को प्रभावित कर अपने पाले में लाने में सफलता प्राप्त की है। मगर, न ही कांग्रेस और न ही दीगर दलों के नेताओं को यह नजर आ रहा है। वे आज भी इस तथ्य पर गौर न करते हुए ईवीएम को कोसने में मशगूल हैं।

उधर, भाजपा ने सधे कदमों से लोकसभा चुनाव के लिए अपनी चाल चलनी शुरू कर दी है। छत्तीसगढ़ में सत्ता की कमान आदिवासी समुदाय से आने वाले व्यक्ति को सौंप राज्य की राजनीति में प्रभावी साहू समाज के साथ ही सवर्ण वर्ग के एक एक व्यक्ति को उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ ही ठाकुर समाज के रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बना अपनी पहली चाल चल दी थी। मगर,  मोदी और शाह यह जानते थे कि इन समीकरणों और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के भरोसे वह उत्तर प्रदेश और बिहार सरीखे ओबीसी बहुल राज्यों में नए मतदाताओं को अपने पाले में शामिल नहीं कर पाएंगे। इसलिए बेहद चतुराई से राजस्थान, जहां वसुंधरा राजे अपने बगावती तेवरों से भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को असहज महसूस करवा रही थीं, पर निर्णय को एक दिन के लिए टाल मध्य प्रदेश में समीकरण बैठाने का निर्णय लिया गया। तमाम कयासों को झुठलाते हुए यहां सत्ता एक बार फिर ओबीसी समाज से आने वाले मोहन यादव को सौंपी गई।

इससे भाजपा ने उत्तर प्रदेश और बिहार के मतदाताओं को एक संदेश भी दिया है। छत्तीसगढ़ की ही तरह मध्य प्रदेश में भी दो उपमुख्यमंत्री बना अनुसूचित जाति और सवर्ण समाज को संतुष्ट करने का प्रयास भी किया गया। यहां इस बात का उल्लेख आवश्‍यक है कि मोहन यादव और जगदीश देवड़ा दोनों ही मालवा अंचल से आते हैं। छत्तीसगढ़ की ही तरह मध्य प्रदेश में भी विधानसभा अध्यक्ष का पद ठाकुर समाज से आने वाले नरेन्द्र सिंह तोमर को दिया गया।

जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर ठाकुरों को बिठा भाजपा ने वसुंधरा राजे को स्पष्ट संदेश दिया था। आम नागरिक को भले ही पता न हो मगर विधानसभा अध्यक्ष सत्ता और विपक्ष के मध्य एक अहम कड़ी के तौर पर कार्य कर सकता है। यह संयोग नहीं है कि रमन सिंह और नरेन्द्र सिंह तोमर दोनों ही कुशल संगठन माने जाते हैं। इनके साथ ही राजस्थान में दीया कुमारी को उपमुख्यमंत्री बनाने से ठाकुर एवं राजपूत समुदाय को साधा जा सकेगा। वहीं राजस्थान में सिंधी समुदाय के वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष बना इस समुदाय के वोट पर भी पकड़ बनाने का प्रयास किया गया है।

भाजपा के इस कदम से जाट, गुर्जर एवं मीणा समाज के मतदाताओं के नाराज हो जाने का खतरा बना हुआ है। इनमें से राजस्थान में जाट समुदाय की आबादी लगभग 12 प्रतिशत, गुर्जर समुदाय की लगभग नौ प्रतिशत और मीणा समुदाय की लगभग सात प्रतिशत आबादी है। अपने बगावती तेवर दिखला रहीं वसुंधरा राजे की शादी भी एक जाट घराने में हुई थी। यकीनी तौर पर राजस्थान की राजनीतिक चौसर पर अपनी बाजी चलने से पहले भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन परिस्थितियों को बखूबी भांप लिया होगा। ऐसे में यह स्पष्ट हो चला है कि भाजपा लोकसभा की पटकथा संघ के सहयोग से लिख चुकी है।


लेखक भोपाल में निवासरत अधिवक्ता हैं। लंबे अरसे तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर लिखते रहे हैं। वर्तमान में आदिवासी समाज, सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में कार्य कर रहे हैं।


About मनीष भट्ट मनु

View all posts by मनीष भट्ट मनु →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *