जलवायु परिवर्तन की कोई वैक्सीन नहीं है! भारत के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक गाइड


हेल्दी एनर्जी इनीशिएटिव इंडिया ने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अन्य संगठनों के सहयोग से अपनी तरह का पहला मार्गदर्शक दस्तावेज जारी किया है। ‘नो वैक्सीन फॉर क्लाइमेट चेंज- अ कम्युनिकेशन गाइड ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ फॉर द हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स इन इंडिया’ नामक इस दस्तावेज का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों को जलवायु परिवर्तन और मरीजों तथा समुदायों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके असर के बारे में विभिन्न विचार-विमर्श करने और मीडिया, विधायिका तथा नीति निर्धारकों जैसे हितधारकों को प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार करना और संचार संबंधी विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करना है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा मंगलवार को आयोजित वेबिनार में इस दस्तावेज पर व्यापक चर्चा की गई। इस वेबिनार में विश्व स्वास्थ्य संगठन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की निदेशक डॉक्‍टर मारिया नीरा, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ, लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी डॉक्टर अरविंद कुमार, डॉक्टर्स फॉर यू के संस्थापक डॉक्टर रवि कांत सिंह और मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष डॉक्टर मौली मेहता तथा छत्तीसगढ़, केरल और कर्नाटक के जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य से संबंधित नोडल अधिकारियों, क्रमशः डॉक्टर कमलेश जैन, डॉक्टर मनु एमएस और डॉक्टर वीना वी. ने हिस्सा लिया। 

डॉक्टर्स फॉर यू के संस्थापक डॉक्टर रविकांत सिंह ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके प्रभावों से निपटने के लिए जरूरी कदमों को बढ़ावा देने के लिहाज से एक स्वास्थ्यकर्मी की आवाज बेहद महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्यकर्मी बहुत बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। वे अपने मरीजों के साथअपनी प्रैक्टिस में, चिकित्सा संस्थानों में और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अपने समुदाय और नीति निर्धारक वर्ग में काम करके बहुत बड़ा फर्क पैदा कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्यवाही करने से हमें अपने स्वास्थ्य से संबंधित सबसे बेहतरीन अवसर मिलते हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनेक समाधानों से समुदायों का माहौल और आम जनता का स्वास्थ्य बेहतर होता है। साथ ही साथ सेहत संबंधी असमानताओं में भी कमी आती है। अपनी तरह के इस पहले मार्गदर्शक दस्तावेज नो वैक्सीन फॉर क्लाइमेट चेंज- अ कम्युनिकेशन गाइड ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ फॉर द हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स इन इंडिया‘ को स्वास्थ्यकर्मियों को सूचना देने के लिए खास तौर पर तैयार किया गया है। हमारे सामने एक अनोखा अवसर है जिससे हम लोगों को यह समझा सकेंगे कि वह प्रदूषण जिससे सांस संबंधी सेहत पर असर पड़ता है, उसी की वजह से जलवायु परिवर्तन भी होता है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि यह दस्तावेज स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्बन मुक्त पद्धतियों और मूलभूत ढांचे को आगे बढ़ाने की पैरवी करता है।” 

उन्‍होंने कहा कि जलवायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के आपसी संबंधों को स्पष्ट करने की अब कोई जरूरत नहीं है। दरअसल हम प्रदूषण के कारण पैदा हुए नरक में जी रहे हैं। फ्रंटलाइन डॉक्टर के रूप में हम देख रहे हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में जलवायु परिवर्तन कितना जानलेवा बनता जा रहा है। इसकी वजह से बहुत सारी विषमताएं पैदा हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन मौतों का कारण बन रहा है। ज्यादातर इमरजेंसी मामले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण से जुड़े रहते हैं। एक लिहाज से देखें तो कोविड-19 का सकारात्मक असर रहा है कि लोग स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने की बात करने लगे हैं।

डॉक्‍टर रविकांत ने सुझाव देते हुए कहा:  

जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को चिकित्सा विज्ञान पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इस वक्त ऐसा कोई भी विषय मेडिकल पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है। दूसरा सुझाव यह है कि हमें अपने प्राथमिक और सेकेंडरी स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों को मजबूत करना होगा। अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में हमें बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को बहुत बेहतर करना होगा। हालात को देखते हुए हमें जिला स्तर तथा प्राइमरी और सेकेंडरी लेवल पर बड़ा स्वास्थ्य ढांचा तैयार करना होगा। इसके अलावा खतरे के क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य सुविधाओं की क्षमता और समय के साथ उनमें पैदा हुई आवश्‍यकताओं का फिर से आकलन करना होगा। हमारे देश के निचले क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की योजना बहुत खराब तरीके से तैयार की गई है। दुनिया के सामने तरह तरह की स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां आ रही हैं। खासकर भारत के सामने हालात विकट होते जा रहे हैं। इस वजह से हमें नए हालात को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं का फिर से आकलन करना होगा। अब महज बातें करने का वक्त नहीं बल्कि काम करने का समय है। अब हमें खुद के बजाय समाज और देश के बारे में सोचना होगा। 

यह दस्तावेज भारत में जलवायु परिवर्तन को लेकर स्वास्थ्य संबंधी पेशेवर लोगों की जानकारी के स्तर, रवैये तथा प्रैक्टिस को लेकर किए गए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन का नतीजा है। फरवरी 2021 में जारी इस अध्ययन के निष्कर्ष यह संकेत देते हैं कि जहां 93 फीसद स्वास्थ्यकर्मी और पेशेवर लोग जलवायु परिवर्तन की मूलभूत बातों से वाकिफ हैं, वहीं उनमें से सिर्फ 55% लोग ही जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने या जलवायु परिवर्तन संबंधी गतिविधियों और कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। इन स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के आधार पर इस अध्ययन में कुछ सिफारिशें की गई हैं, जिनमें स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशेवर लोगों तथा वकीलों की क्षमता का प्रभावी निर्माण करना शामिल है।

साथ ही इस दस्तावेज में उन विभिन्न रास्तों के बारे में बारीक जानकारियां उपलब्ध कराने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है जिनके जरिये जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। दस्तावेज में यह भी सिफारिश की गई है कि जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके प्रभावों को चिकित्सा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। स्वास्थ्य पेशेवर लोगों को जलवायु संबंधी संधियों को लेकर हुए अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदानों, खास तौर पर पेरिस समझौते के बारे में आसानी से समझ में आने वाले तरीके से सूचना और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य पर राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर की कार्य योजनाओं के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के पब्लिक हेल्थ विभाग के निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा ने कहा, “जहां तक आम लोगों की सेहत की सुरक्षा का मामला है तो स्वास्थ्य संबंधी पेशेवर लोग भरोसेमंद संचार वाहक होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण कर्ता-धर्ता भी होते हैं, लेकिन इस खासियत का पूरा इस्तेमाल सिर्फ तभी किया जा सकता है जब उन्हें 21वीं सदी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संबंधी चुनौती यानी जलवायु परिवर्तन और उससे निपटने के तरीकों के बारे में जरूरी जानकारी मुहैया कराई जाए।‘’’

उन्‍होंने कहा: 

इस बात से कौन इनकार करेगा कि आज जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक खतरे पर बात करने की सबसे ज्यादा जरूरत है। स्वास्थ्य पेशेवरों को आगे आकर उदाहरण पेश करना होगा आज हमारी लड़ाई सांस लेने लायक हवा की मौजूदगी सुनिश्चित करने को लेकर है। हमें इससे पहले कभी ऐसे संघर्ष की जरूरत नहीं पड़ी थी लेकिन दुर्भाग्य से आज हालात कुछ ऐसे ही आन पड़े हैं। मेरा मानना है कि इस दिशा में अगर स्वास्थ्य पेशेवर लोग आवाज उठाएं और जागरूकता फैलाएं तो उसकी विश्वसनीयता कहीं ज्यादा होगी। यह एक महत्वपूर्ण योगदान भी होगा। साथ ही यह हमारे समाज और नीति निर्धारकों के लिए कहीं ज्यादा प्रेरणाप्रद होगा। इससे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने की जरूरत का समर्थन करने वाली आवाजें मजबूत होंगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम कुदरत, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को बर्बाद करने की मूर्खतापूर्ण हरकतों के खिलाफ एक बड़ी आवाज बनें। मुझे लगता है कि अगर स्वास्थ्य पेशेवर एक साथ मिलकर आवाज उठाएं तो यह एक बहुत ही प्रभावशाली उपकरण बनेगा जिसे हम COP26 में इस्तेमाल कर सकते हैं। कल जी-7 की बैठक हुई। इसके बाद और भी कई महत्वपूर्ण बैठकें होनी हैं, ऐसे में तमाम स्वास्थ्य पेशेवरों को बहुत मजबूत आवाज बनना होगा। किसी भी स्वास्थ पेशेवर को अपनी जिम्मेदारी और क्षमता को कम करके नहीं आंकना चाहिए। हमें दुनिया को यह दिखाना चाहिए कि हमारा नेटवर्क सबसे ज्यादा मजबूत है। हमारी कामयाबी भी इसी पर निर्भर करेगी।

डॉक्‍टर मारिया ने कहा कि नो वैक्सीन फॉर क्लाइमेट चेंज नामक इस मार्गदर्शक दस्तावेज का मकसद स्वास्थ्यकर्मियों को जलवायु परिवर्तन के संबंध में होने वाले विभिन्न विचार-विमर्शों और जलवायु परिवर्तन की वजह से उनके मरीजों तथा समुदायों की सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी देकर उन्हें तैयार करना है।

इस मार्गदर्शक दस्तावेज में अध्ययन में उल्लिखित विभिन्न सिफारिशों को शामिल किया गया है और यह दस्तावेज स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों का एक विस्तृत जायजा उपलब्ध कराता है जो जलवायु संबंधी घटनाओं जैसे कि भीषण तपिश, बाढ़, सूखा, चक्रवाती तूफान और वायु प्रदूषण के रूप में सामने आ सकते हैं। साथ ही इस दस्तावेज में इन प्रभावों को लेकर स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए जरूरी तैयारी पर भी विस्तार से रोशनी डाली गई है। इस दस्तावेज में जलवायु परिवर्तन के कारण शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित मूलभूत मुद्दों को शामिल किया गया है। साथ ही साथ यह दस्तावेज इस मुद्दे को लेकर स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रभावशाली नेतृत्वकर्ता और संचारकर्ता की भूमिका निभाने के लिए जरूरी हिदायतें भी देता है। यह मार्गदर्शक दस्तावेज जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं की वजह से स्वास्थ्य पर संभावित प्रभावों से निपटने के लिए जरूरी उपाय भी सुझाता है। यह वे उपाय हैं जो स्वास्थ्य पेशेवर लोग अपने मरीजों, समुदायों और नीति निर्धारकों को सलाह के तौर पर बता सकते हैं। इस दस्तावेज में स्वास्थ्य प्रणालियों को लेकर भी सुझाव दिए गए हैं।

लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी डॉक्टर अरविंद कुमार ने कहा, “जलवायु परिवर्तन मानव सभ्यता के लिए इस सदी का सबसे बड़ा खतरा बन गया है। दुनिया जहां कोविड-19 महामारी से उबर रही है, हमें एक बार फिर याद आता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसे धरती के घाव भरने और भविष्य को सुरक्षित करने के अभियान में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभानी होगी। स्वास्थ्य क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई और पैरोकारी में अग्रिम और केंद्रीय भूमिका में रखना ही होगा। भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र विभिन्न ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने और अक्षय ऊर्जा अपनाकर ग्रिड बिजली के उपभोग में कमी लाने संबंधी प्रदूषण मुक्त प्रौद्योगिकियों को अपनाते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में उल्लेखनीय योगदान कर सकता है। स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले लोगों के पास जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और उसके खतरों से जुड़े विज्ञान के बारे में प्रभावशाली संचारकर्ता की भूमिका निभाने का भी अवसर है।”

उन्‍होंने कहा कि बड़े शहरों में प्रदूषण अपनी जगह बना चुका है। प्रदूषण का आलम यह है कि इन शहरों में रहने वाला हर व्यक्ति प्रदूषण के रूप में धूम्रपान करता है। यहां तक कि गर्भ में पल रहा बच्चा भी इससे अछूता नहीं है। इस बात के स्‍पष्‍ट प्रमाण हैं कि मां द्वारा सांस के तौर पर प्रदूषित हवा को शरीर में लिये जाने का असर गर्भ में पल रहे बच्‍चे पर भी पड़ता है। आमतौर पर हम सभी यही सोचते हैं कि वायु प्रदूषण का असर केवल फेफड़ों पर पड़ता है, लेकिन दरअसल इसका असर हमारे दिल, दिमाग, गुर्दों, लिवर, अग्न्याशय, आंतों, मूत्राशय और हड्डियों समेत अनेक अंगों पर पड़ता है। बड़े शहरों में रहने वाले लोगों पर वायु प्रदूषण का असर कहीं ज्यादा होता है। 

डॉक्‍टर कुमार ने कहा: 

साफ हवा को मौलिक अधिकार बनाए जाने की जरूरत है, हालांकि यह काम बहुत साल पहले ही हो जाना चाहिये था। लापरवाही की वजह से ही हम आज सबसे बुरे हालात से घिर चुके हैं। हमारे बच्‍चों को इसके सबसे बुरे परिणामों का सामना करना पड़ेगा। अगर इसे रोकना है तो हमें अभी से काम करना होगा। प्रदूषण का एकमात्र कारण जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल है। हम सभी किसी न किसी रूप में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं इसलिए हमें अगर भविष्य को बचाना है तो अक्षय ऊर्जा को अपनाना ही होगा।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने वेबिनार में कहा, ‘‘स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के पेशेवर लोग बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। दुनिया के 59 प्रतिशत देशों ने जलवायु अनुकूलन सम्‍बन्‍धी अपनी राष्‍ट्रीय संकल्‍पबद्धताओं में मानव स्‍वास्‍थ्‍य एक प्राथमिकता के तौर पर शामिल किया है। मगर वे स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाले जलवायु सम्‍बन्‍धी जोखिमों को समझ नहीं पा रहे हैं। वे यह नहीं जान पा रहे हैं कि आखिर इनसे कैसे निपटा जाए। साथ ही वे स्‍वास्‍थ्‍य अनुकूलन सम्‍बन्‍धी व्‍यापक कदमों की पहचान करने और उनके वित्‍तपोषण के लिये भी संघर्ष कर रहे हैं। यही वजह है कि सिर्फ 0.5 प्रतिशत बहुपक्षीय जलवायु वित्‍त में ही स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी परियोजनाओं को शामिल किया जाता है।‘’

उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण संचारी रोगों तथा जनजनित बीमारियों का खतरा बढ़ा है। साथ ही जीवन तथा आजीविका पर खतरे में इजाफा हुआ है, जो लोगों के पोषण के पहलू पर भी असर डालेगा। इसके अलावा सामाजिक असमानताओं का जोखिम भी बढ़ा है। अगर हम यह देखें कि जलवायु परिवर्तन किस तरह से स्वास्थ्य क्षेत्र पर असर डाल रहा है तो मौसम से संबंधित  घटनाएं जलवायु परिवर्तन की कीमत के तौर पर सामने आ रही हैं। बढ़ता तापमान और समुद्रों का बढ़ता जलस्तर स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्रभाव डाल रहा है और आपदाओं को जन्म दे रहा है। इनमें भूस्खलन और जंगलों की आग शामिल है। इनके कारण स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं लेकिन यह इतने भी अप्रत्यक्ष नहीं हैं। आपदाओं का सीधा असर हमारे समाज पर पड़ता है जिसका स्वास्थ्य पर कई गुना असर हो जाता है। 

डॉक्‍टर वशिष्‍ठ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संबंधी चुनौती है जिसने हमारी हवा, भोजन, पानी, हमारे आश्रय तथा सुरक्षा सभी को खतरे में डाल दिया है। यह वे चीजें हैं जिन पर इंसान की जिंदगी निर्भर करती है। हवा की गुणवत्ता, भोजन तथा पानी की कमी, जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली गर्मी, बाढ़, चक्रवाती तूफान, जंगलों की आग, संक्रामक रोग तथा मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीवन को बर्बाद कर रहा है। साथ ही साथ नई चुनौतियां भी पैदा कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के लिए कोई वैक्सीन नहीं है लेकिन लेकिन इस मसले पर अगर गंभीरता पूर्वक काम शुरू किया जाए तो हमारे सामने बेहतरीन अवसरों का द्वार खुल सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन संबंधी अनेक समाधानों से समुदाय के वातावरण तथा जन स्वास्थ्य में सुधार होता है और सेहत संबंधी असमानताओं में कमी आती है। वायु प्रदूषण में कमी से हर किसी को फायदा होता है। इससे आहार में सुधार होता है और हम अधिक सक्रियतापूर्ण जीवन शैली को बढ़ावा देते हुए हर साल लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा सकते हैं। 

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डॉक्टर मौलि मेहता ने स्‍वास्‍थ्‍य पेशेवरों को जलवायु परिवर्तन और उसकी वजह से सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में गहन जानकारी को बेहतर भविष्‍य की कुंजी बताते हुए कहा, ‘‘हमने पहले कभी जलवायु परिवर्तन को उतनी गंभीरता से नहीं लिया कि यह हमें इतना नुकसान पहुंचा सकता है। हम यह जान गए हैं कि किस तरह से जलवायु परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण विषय है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जलवायु परिवर्तन और उसके कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को न सिर्फ से समझें बल्कि उसके जरिए भविष्य की जरूरतों पर काम भी करें। यह बदलाव के लिये काम करने का बिल्कुल सही वक्त है। जब हम स्‍वास्‍थ्‍य पेशेवर के तौर पर अपना करियर शुरू कर रहे थे, तब जलवायु परिवर्तन के पहलू पर इतनी बात नहीं हो पाती थी लेकिन इस वक्त इस पर बात करना बेहद जरूरी है। भविष्य के डॉक्टर होने के नाते हमें जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर काम शुरू करना चाहिए।’’

छत्तीसगढ़ नोडल ऑफिसर डॉक्टर कमलेश जैन ने अपने राज्‍य में जलवायु परिवर्तन और स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाले उसके प्रभावों के सिलसिले में किये जा रहे कार्यों का जिक्र करते हुए कहा ‘‘हवा को साफ करना बेहद महत्वपूर्ण है। यह किसी एक देश या राज्य से जुड़ा नहीं बल्कि एक वैश्विक चिंता का विषय है। कोरोना की तो वैक्सीन है लेकिन जलवायु परिवर्तन की कोई वैक्‍सीन नहीं है। जलवायु परिवर्तन की वजह से स्वास्थ्य पर अनेक तरह के प्रभाव पड़ते हैं। निश्चित रूप से यह चिंता का विषय है। छत्‍तीसगढ़ सरकार ने इससे निपटने के लिए कुछ नई पहल की है। हमने बहुआयामी रवैया अपनाया है। जागरूकता निर्माण स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली को मजबूत किया है, नीति और पैरोकारी के पहलुओं पर काम किया है। हमारे पास एक संस्थागत व्यवस्था है। हम हेल्थ केयर विदाउट हार्म और हेल्दी एनर्जी इनिशिएटिव के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हमने राज्‍य के पंचायत सदस्यों को जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के अंतरसंबंधों के बारे में प्रशिक्षण दिया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के मद्देनजर स्वास्थ्य क्षेत्र की सततता को बढ़ावा देने के लिए एक एकीकृत नीति और कार्यप्रणाली अपनाई गई है।‘’

कर्नाटक की नोडल अधिकारी वीना वी. ने कहा कि राज्य सरकार ने जलवायु परिवर्तन और स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर एक राज्यस्तरीय एक्शन प्लान बनाया है जिसमें एक गवर्निंग बॉडी गठित की गई है। इस एक्‍शन प्‍लान के तहत राज्य स्‍तरीय तथा जिला स्तरीय ढांचे को मजबूत करने का रोड मैप तैयार किया गया है। इसमें वल्नरेबलिटी नीड एसेसमेंट, जलवायु के प्रति सतत स्वास्थ्य सुविधाएं, स्वास्थ्य इकाइयों में हरियाली की व्‍यवस्‍था, ट्रेंनिंग माड्यूल्स को तैयार करना, जिला तथा राज्य स्तर पर ट्रेनर्स को प्रशिक्षण देना वगैरह शामिल है।

केरल के नोडल अधिकारी डॉक्‍टर मनु एम. एस. ने वेबिनार में कहा कि केरल राज्य सरकार ने जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई संगठनात्मक ढांचे तैयार किये हैं। इनके तहत पर्यावरणीय स्वास्थ्य संबंधी प्रकोष्ठ गठित किए गए हैं, राज्य स्तरीय गवर्निंग काउंसिल और मल्‍टी-सेक्‍टोरल टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है। राज्य के सभी नागरिकों खासकर बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों, आदिवासियों तथा सीमांत आबादी को जलवायु परिवर्तन से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी नुकसान से बचाने के लिए व्यवस्था की गई है।

नो वैक्सीन फॉर क्लाइमेट चेंज- अ कम्युनिकेशन गाइड ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ फॉर द हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स इन इंडिया‘ दस्तावेज़ को तैयार करने में छत्तीसगढ़ और केरल के स्वास्थ्य विभागों, छत्तीसगढ़ के स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर, पंजाब विश्वविद्यालय के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन रिसर्च चंडीगढ़, हेल्थ केयर विदाउट फार्म लंग केयर फाउंडेशन डॉक्टर्स फॉर यू मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया क्लाइमेट ट्रेंड्स और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ ने भी योगदान किया।


Climateकहानी के सौजन्य से


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