दलितों को दूसरों के हेलिकॉप्टर से चलने वाले नेताओं से सावधान रहना चाहिए


इस विषय पर कुछ लिखने से पहले कवर चित्र पर कुछ चर्चा ज़रूरी है। जैसा कि आप देख रहे हैं कि हेलिकॉप्‍टर से नीचे उतर रहा काले चश्मे और नीले गमछे वाला व्यक्ति चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण है और नीचे उसकी अगुवाई करने वाला बिहार का एक हत्यारोपी नेता पप्पू यादव है। यह दृश्‍य बिहार के अरवल जिले का है, जहां के लक्ष्‍मणपुर बाथे गांव में 1 दिसंबर, 1997 को रणवीर सेना ने 58 दलितों का नरसंहार किया था।

इस बार बिहार चुनाव में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जअपा) तथा चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (आसपा) ने गठबंधन किया है। यह गठबंधन 150 सीटों पर चुनाव लड़ने तथा 50-60 सीटें जीतने का दावा कर रहा है। इस गठबंधन ने पप्पू यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है। अभी गठबंधन का चुनावी घोषणापत्र तक जारी होना बाकी है। एक घोषणा में कहा गया है कि यदि उनकी सरकार बनी तो व्यापारियों से कोई भी टैक्स नहीं लिया जाएगा। बिहार में पप्पू यादव के साथ गठबंधन के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि यह गठबंधन किसी कार्यक्रम अथवा विचारधारा को लेकर नहीं बना, बल्कि केवल अवसरवादी चुनावी गठबंधन है।

चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का है तथा भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी का अध्यक्ष है। बिहार में चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी (आसपा) की कोई ख़ास उपस्थिति नहीं है, बल्कि केवल भीम आर्मी की कुछ सदस्यता पर ही आधारित है जिससे कुछ दलित नौजवान जुड़े हुए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि आसपा एक बिलकुल नयी पार्टी है जिसके पास बहुत अधिक फंड होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। फिर आसपा के अध्यक्ष का हेलिकॉप्‍टर का खर्चा कौन उठा रहा है, जिसका एक घंटे का किराया ही कम से कम एक लाख है? जो भी यह खर्चा उठा रहा है, ज़ाहिर है वह दलितों के नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए ही कर रहा है।

चंद्रशेखर अपने आप को कांशीराम का सच्चा उत्‍तराधिकारी कहता है। चंद्रशेखर ने अभी तक अपनी पार्टी का कोई भी एजेंडा प्रकाशित नहीं किया है कि दलितों के उत्थान के लिए उसकी क्या कार्ययोजना है। अभी तक वह केवल कांशीराम के मिशन को ही आगे बढ़ाने की बात कर रहा है।

यह सर्वविदित है कि कांशीराम का मिशन तो किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त करना था जिसके लिए वह अवसरवादी एवं सिद्धान्तहीन होने में भी गौरव महसूस करते थे। इसीलिए उनके जीवनकाल में ही बसपा ने दलितों की धुर विरोधी पार्टी भाजपा के साथ तीन बार हाथ मिला कर मायावती को मुख्यमंत्री बनवाया था। इससे आम दलित को तो कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि कुछ दलालों को पैसा कमाने का अवसर ज़रूर मिला जिसमें मायवती भी शामिल हैं। इसके अलावा भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बसपा को समर्थन देकर अपनी कमज़ोर स्थिति को मज़बूत कर लिया। अगर गौर से देखा जाय तो उत्तर भारत में भाजपा को मज़बूत करने का मुख्य श्रेय कांशीराम/मायावती को ही जाता है।

यह भी विचारणीय है कि कांशीराम/मायावती, उदित राज और रामविलास पासवान जैसे दलित नेता वर्तमान राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी की बात ही करते रहे हैं जो कुछ हद तक उन्हें मिली भी, परन्तु क्या इससे आम दलित की हालत में कोई सुधार आया? इसका उत्तर हां में तो बिलकुल नहीं हो सकता है। चंद्रशेखर जब कांशीराम के सत्तावादी मिशन को ही आगे बढ़ाने की बात करता है, तो यदि उसे सत्ता में कुछ हिस्सेदारी मिल भी जाय तब भी सवाल यह बना रहेगा कि क्या इससे दलितों का कोई कल्याण हो पाएगा? 

कांशीराम/मायावती जिन गुंडे बदमाशों को टिकट बेचते थे, वे जीतने के बाद दलितों का कोई भी काम नहीं करते थे। इसके विपरीत जब वे दलितों पर अत्याचार करते थे तो मायावती उनको सजा दिलाने की बजाय उनका बचाव ही करती थीं, जैसा कि आज़मगढ़ में दलित इंज़ीनियर जंगली राम की बसपा नेता द्वारा फर्जी बिलों का सत्यापन न करने पर पीट-पीट कर हत्या करने तथा फैजाबाद में बसपा विधायक आनंद सेन यादव द्वारा दलित लड़की शशि की हत्या के मामले में देखा गया था।

इसी तरह बसपा का बाहुबली नेता धनंजय सिंह 2007 में जौनपुर के चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी सोनकर की हत्या में आरोपी रहा है। इतना ही नहीं, मायावती सरकार ने इसे हत्या न मान कर आत्महत्या करार दे दिया था। यह भी देखा गया था कि बसपा के दौर में दलितों की जिन माफियाओं/गुंडों से लड़ाई थी मायावती ने उन्हें ही टिकट देकर तथा दलितों का वोट दिलवा कर जितवाया, जिससे दलितों का तो कोई भला नहीं हुआ जबकि गुंडे बदमाश बसपा का संरक्षण पा कर अधिक फल-फूल गए। दलितों को यह सोचना चाहिए कि बिना किसी परिवर्तनकामी दलित एजेंडे के केवल सत्ता में किसी भी तरह से हिस्सेदारी प्राप्त करने में लगा हुआ कोई दलित नेता क्‍या उनका कुछ उद्धार कर सकेगा?

दलितों का उत्थान वर्तमान सत्ता में हिस्सेदारी से नहीं बल्कि वर्तमान व्यवस्था में रेडिकल परिवर्तन करके ही आ सकता है। इसके लिए दलित राजनीति के लिए एक रेडिकल एजेंडा अपनाना ज़रूरी है जो भूमि आवंटन, रोज़गार, समान शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, कृषि का विकास तथा समाजवादी व्यवस्था की स्थापना से ही संभव है। दलितों को दूसरों के हेलिकॉप्‍टर से चलने वाले नेताओं से सावधान रहना चाहिए और उनके मुद्दों के लिए ईमानदारी से लड़ने वाली पार्टी का साथ देना चाहिए।


लेखक आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं


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