तिर्यक आसन: बधाई हो! हिंदी में पाठकों से अधिक संख्या साहित्यकारों की हो गई है


एक लेखिका के कहानी संग्रह की समीक्षा में एक लेखक जिसकी एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी समीक्षा है, ने लिखा- बधाई हो, लेखिका ने स्त्री मुक्ति की नई राहें खोल दी हैं। उसी लेखक सह समीक्षक ने दलित विमर्श की पुस्तक के लिए लिखा- बधाई हो, लेखक ने दलित मुक्ति का चौराहा खोल दिया है। नई राह के बाद चौराहा भी खुल गया, तो मैं लेखक सह समीक्षक की अन्य समीक्षाओं को पढ़ने के लिए बेचैन हो उठा। 

बधाई वाला लेखक सह समीक्षक एक विशेषण है, जिसकी अनेक संज्ञाएँ हैं। पाठक पढ़ता है। सहमति, असहमति जता देता है। अपनी क्षमता के अनुसार समीक्षा, आलोचना भी कर देता है। बधाई विशेषण वाली संज्ञाओं की बधाइयाँ लेखन की गुणवत्ता से संबंधित नहीं होतीं। प्रकाशन से संबंधित होती हैं। पहली बार प्रकाशित हुए- बधाई हो। दूसरी, तीसरी से लेकर जीवन भर प्रकाशित होते रहिए; बधाई विशेषण वाली संज्ञाएँ प्रकाशित होने की बधाई देती रहेंगी।

बधाई देने के लिए कई प्रकाशकों, संपादकों, साहित्यकारों ने ‘पेड स्लीपर सेल’ बना रखी है। ‘पेमेंट’ नकद के रूप में नहीं होता। कई अन्य रूपों में होता है। बधाई की जितनी नई उपमा, उतना अधिक पेमेंट।

पेड स्लीपर सेल ने एक कहानी संग्रह की समीक्षा में लिखा- बधाई हो, साहित्य की नई रोशनी। एक कविता संग्रह के लिए लिखा- बधाई हो, साहित्य के नए धूमकेतु। दोनों को बधाई देकर पुरस्कार प्राप्त करने वालों के लिए लिखा- बधाई हो साहित्य के चंदा और सूरज।

पाठकों ने चारों को खारिज कर दिया। रोशनी, धूमकेतु, चंदा और सूरज उनकी बधाई उनके दरवाजे पर पटक आए। दरवाजे पर पटकी गई बधाइयों को उन्होने अपनी गोद में उठाया और बधाई की नई उपमाओं की खोज में जी-जान से लग गए। बधाइयों के चक्कर में ही हिंदी साहित्य में पाठकों से अधिक संख्या साहित्यकारों की हो गई है।

हिंदी साहित्य के ‘ऊपरवाले’ मेरी भी बधाई स्वीकार करें। 

इधर एक दिशा के एक कोने में एक मकान के एक दस बाई बारह फीट के कमरे में एक प्रकाशक रहते हैं। वो कमरे में स्थिर रहते हैं। उनका प्रकाशन चलता-फिरता है। उनके प्रकाशन का नाम ‘इतने हजार में इतने सौ प्रति’ है।’ इतने हजार में इतने सौ प्रति’ प्रकाशकों की आई बाढ़ से उफन रही साहित्य सरिता की चपेट में आकर पाठकों का जीवन साहित्यकारों को बधाइयाँ देने में ही समाप्त हो जा रहा है।

पिछले वर्ष की बाढ़, बाढ़ राहत अधिकारी के दरवाजे की घंटी बजाने लगी। वे सिर्फ अधिकारी नहीं थे। सिफारिश से प्रोन्नत होकर साहब, वेतन आयोग की कृपा और ‘इतने हजार में इतने सौ प्रति’ प्रकाशक की कृपा से साहित्यकार भी बन गए थे। दरवाजे पर जम्हाई लेती बाढ़ के कारण साहब को दूसरे घर में ‘ट्रांसफर’ होना पड़ा। सामान ट्रक में रखा जा रहा था। सब सामान ट्रक में रख दिया गया। अंत में साहब सिर पर एक ‘वाटरप्रूफ’ गठरी लेकर घर से निकले। उनके मातहत गठरी को सहारा देने के लिए आगे बढ़े। साहब ने रोक दिया- अपनी जिम्मेदारी को बोझ मैं खुद उठा सकता हूँ। कर्मचारी पीछे हट गए। ट्रक के साथ साहब के दूसरे आवास पर चले गए। सामान उतारने के लिए। मुझे लगा, गठरी में बाढ़ राहत कोष से मिली रॉयल्टी है। नहीं तो साहब जिम्मेदारी का बोझ अपने सिर पर लेने का झंझट नहीं पालते। जिम्मेदारी का ट्रांसफर किसी और टेबल पर कर अपने कर्तव्य का पालन कर लेते हैं।

फाइलों का जीवन एक टेबल से दूसरे टेबल तक ट्रांसफर होते रहने तक चलता है। जिस दिन फाइल ऐसी टेबल पर पहुँच जाती है, जिस टेबल के नीचे कोई और टेबल नहीं होती; उस दिन फाइल की साँस उखड़ जाती है। उस टेबल वाला कर्मचारी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए फाइल को ठिकाने लगा देता है।

बाढ़ के पानी में पैर का चप्पू चलाते हुए मैं साहब के पास गया। कहा- इसको भी ट्रक में रख दिए होते। साहब ने बताया- इसमें किताब की रॉयल्टी है। रॉयल्टी की गठरी का आकार देख मेरे चप्पू डगमगा गए- इतना बड़ा रॉयल्टी कोष लेकर आप अकेले जा रहे हैं! रास्ते में किसी ने लूट लिया तो? साहब ने आशंका की मेरी फाइल को खारिज किया- जो लूटने आएगा, उसे भी रॉयल्टी पकड़ा दूँगा। वो बधाई देकर चला जाएगा।

आशंका की अपनी फाइल का जीवन बचाने के लिए मैंने सवाल किया- लूटने वाला बधाई क्यों देगा भला? उन्हें लगा, इस फाइल का ट्रांसफर नीचे की टेबल पर करना मुश्किल है। फाइल ऊपर की टेबल की तरफ लेकर जा सकता है। तो उन्होंने रॉयल्टी की गठरी सिर से उतरी। पानी में रख दी। वाटरप्रूफ गठरी थी, तो रॉयल्टी के भीगने का डर नहीं था। गठरी खोली। गठरी खुलते ही आशंका की मेरी फाइल भी खुल गई। गठरी में उनकी रॉयल्टी की प्रतियाँ थीं। रॉयल्टी की एक प्रति उन्होंने मुझे सप्रेम भेंट की। मैं अचकचाया- मैं तो आपको लूटने नहीं आया था! उन्होंने चबाया- नहीं लूटोगे तो बाढ़ राहत मुआवजे की तुम्हारी फाइल अमर हो जाएगी। मजबूरन मुझे रॉयल्टी सप्रेम लूटनी पड़ी। बधाई भी दे दी।

‘मौखिक अनुबंध’ के अनुसार हजार में से दो सौ प्रति उनके हिस्से की थी। सप्रेम लुटाने के लिए। फाइल के हश्र से वे परिचित थे। तो उन्होंने प्रकाशक से बाकी प्रतियाँ भी खरीद लीं। सप्रेम लुटाने के लिए।

साहब अगली बाढ़ का इंतजार कर रहे हैं। बाढ़ राहत कोष की रॉयल्टी से पैदा हुई किताब की रॉयल्टी वाली गठरी जुटाने के लिए। सप्रेम लुटाने के लिए। बधाई जुटाने के लिए। 

प्रसारण नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में एनडीटीवी के प्रसारण पर केंद्र की भाजपा सरकार ने एक दिन की रोक लगा दी। फिर रंग बदलते हुए रोक पर अस्थायी रोक लगा दी। अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने से पैदा हुई आपातकाल की सुगबुगाहट के बीच कांग्रेसी इंदिरा गांधी को बधाई देने लगे- आपातकाल लगाने के लिए शेरनी का कलेजा चाहिए। भविष्य में यदि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो इंदिरा गांधी के पास शेरनी का कलेजा था, ये बताने वाले कांग्रेसियों को योग्यतानुसार राज्यपाल, कुलपति, सांसद, विधायक आदि बना देना चाहिए।

जो राज्यपाल, कुलपति, सांसद, विधायक बनने योग्य न हो, उसे रसोइयाँ बनाना चाहिए। कांग्रेस ने ही बताया है कि राष्ट्रपति भवन का रास्ता कांग्रेस की रसोई से भी होकर जाता है। लगे हाथ गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी बता दिया- गाय अस्सी फीसदी मनुष्य है। विज्ञान के माट्साब रहे राजनाथ सिंह को लगे हाथ ये भी बता देना चाहिए था कि राजनीति की किस शाखा का डीएनए गिरगिट से सौ फीसदी मिलता है। तब भी भाजपाई राजनाथ सिंह को बधाई ही देंगे- गिरगिट कौन है, ये बताने के लिए सिंह का कलेजा चाहिए।

धरती वाले सर्वशक्तिमान बम बरसाते हैं, तो उनके खजाने में बरकत बरसती है। ऊपरवाले की बरकत अजीब है। जनसंख्या के रूप में बरसती है। माँ-बाप ने कुछ किया ही नहीं, संतान हो गई- ये तो ऊपरवाले की बरकत है। हे ऊपरवाले! अब तक धरती पर तेरी बरकत की संख्या करोड़ों में हो गई होगी। क्या तेरी बरकत भी किसी ऊपरवाले की बरकत से बाप बनेगी? कितना निरीह है रे तू ऊपरवाले। खैर, मेरी भी बधाई स्वीकार करो ‘ऊपरवाले’। बरकत बरसाते रहो। अपनी निरीहता का सबूत देते रहो।

भाजपाइयों के अनुसार विश्वगुरु की नींबू-मिर्च अमेरिका तक पहुँच गई है। हवन-पूजन से ही डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनने में सफल हुए थे। हिंदी साहित्य को भी सावधान रहना चाहिए। कहीं बधाई विशेषण वाली संज्ञाओं का इकबाल सात समंदर पार पहुँच गया, तो साहित्य का नोबल लेने के लिए इंग्लिश, फ्रेंच, स्पेनिश आदि लिटरेचर, हिंदी साहित्य की बधाई विशेषण वाली संज्ञाओं के पीछे लाइन लगाकर खड़े हो जाएंगे- टुमी हो बंडू टुमी सखा हो। टुमी हो मदर फादर टुमी हो। बॉब डिलन कहेंगे- बडाई हो। वर्ल्ड लिटरेचर हिंडियाना हुआ है।


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