व्यंग्य: जब रामपुर के बोरिंग में फंसा मिला सदन से भागा ईमान…


सुबह का उजियारा छा गया था, विहग-गण नभ-प्रयाण की तैयारी में थे! अरे! घबराइए मत, अचानक ही मेरा कवि जाग गया था! साधारण भाषा में कहूँ तो सूर्योदय का समय था और पक्षी उड़ने की तैयारी में थे क्यूँकि ये गरीब पक्षी थे। हो सकता है इन्हें भी राशन की पंक्ति में लगकर अपने बच्चों का पेट भरना पड़ता होगा!

ख़ैर! रामपुर में भी प्रातःकाल के दैनिक कार्य शुरू हो चले थे। मनोहर नाम का किसान अपने नित्य-कर्म से निवृत्त हो, अपनी ही मस्ती में अपने खेत की तरफ बढ़ा जा रहा था! अचानक उसे एक आवाज़ सुनायी दी, “अरे भाई! कोई तो निकालो मुझे। पांच दिनों से इस गड्ढे में फँसा पड़ा हूँ!” मनोहर ने अपना सिर घुमाया तो उसे भान हुआ कि ये आहत स्वर बोरिंग के लिए खोदे एक गड्ढे में से आ रहा था! मनोहर उस गड्ढे के समीप पहुँचा तो देखा एक व्यक्ति फँसा हुआ है जो प्रौढ़ावस्था के शुरुआती स्तर पर था! श्वेताम्बरी या कहिए सफ़ेद कपड़े धारण किये हुए था! मनोहर थोड़ा सा उस गड्ढे पे झुका और बोला, “कौन हो भाई? कैसे फँस गए इस गड्ढे में? देखने में कोई बाहर के लगते हो!” गड्ढे से जवाब आया, “हाँ भाई! बाहर से आया था, यहां पर रात को कुत्ते पीछे पड़ गए और उनसे बचने के लिए भागा तो इस गड्ढे में आ गिरा!”

मनोहर बोला, “वो तो ठीक है भाई, मगर तुम हो कौन?” अंदर से प्रत्युत्तर आया, “मैं बताऊँगा तो तुम विश्वास नहीं करोगे मगर तुम भले आदमी लगते हो इसीलिए अपनी पहचान बता रहा हूं, मैं इस देश का ईमान हूं!” मनोहर ये सुनकर सकपका गया और किंकर्त्तव्यविमूढ़ता का भाव लिए पूछ बैठा, “मैं समझा नहीं भाई तुम क्या कह रहे हो? मगर अगर सच में तुम देश का ईमान हो तो इसका प्रमाण दो!” अंदर से आवाज़ आयी,” तुम्हारे पास अभी अख़बार है?” मनोहर ने प्रत्युत्तर दिया, “हाँ!” अंदर फँसा व्यक्ति फिर बोला, “तो देखो इसमें आज किसी न किसी घोटाले की ख़बर ज़रूर आयी होगी!”

मनोहर ने जैसे ही अख़बार खोला, प्रथम पृष्ठ पर ही बड़े-बड़े अक्षरों में एक घोटाले के पकड़े जाने का समाचार छपा था! “तुम्हें ये कैसे मालूम कि किसी घोटाले का समाचार छपा होगा आज के अख़बार में?” मनोहर ने जब पूछा तो अंदर से जवाब आया, “देखो भाई! जब-जब देश का ईमान कहीं गिरा है तब-तब ऐसे घोटाले हुए हैं!” 

मनोहर ने फिर पूछा, “यानि कि तुम इससे पहले भी गिर चुके हो?” गड्ढे से आवाज़ आयी, “हाँ भाई! जब देश बना था तब मैं जन्मांध पैदा हुआ, देश के कर्णधारों ने मेरे नाम का एक खाता खोला और देशवासियों से मेरे नाम पर खूब उगाही की और मेरे अंधे होने का फ़ायदा उठाकर बहुत मज़े किये! मेरे अंधे होने का फायदा उठाकर उन्होनें पहली बार मुझे गड्ढे में फ़ेंका! मगर जनता की कृपा की वज़ह से हाल ही में मेरे नेत्र ठीक हुए थे और देखो मैं फिर आकर गड्ढे में फँस गया!”

मनोहर ने फिर पूछा,”जब नेत्र-दान किया जा चुका था तो इतनी देर कहाँ रुके हुए थे?” अंदर से आवाज़ आयी, “मैं संसद में रुका हुआ था, ये सोचकर कि कोई मुझे और मेरी बातों को संजीदगी से लेगा मगर हर नेता ने मेरा मख़ौल उड़ाया और एक दिन एक नेता ने गुस्से में मुझे एक कमरे में बंद करवा दिया था। वो तो जब पक्ष-विपक्ष में जमकर जूतम-पैज़ार हो गयी तो कार्यवाही भंग कर दी गयी और एक पहरेदार ने मेरी आवाज़ सुनकर मुझे छुड़ाया! उसी समय मैं वहां से भाग लिया, यहां कुत्तों ने भगाया और मैं गड्ढे में आ गिरा!”

मनोहर ने अंतिम दो पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को अनदेखा कर कहा, “रुको, मैं तुम्हारे निकलने का इंतज़ाम करता हूं!” ये कहकर मनोहर पंचायत के ऑफिस में मुखिया के पास पहुँचा और उसे पूरा माजरा बताया। मुखिया ने ये बात खंड विकास अधिकारी को बतायी और खंड विकास अधिकारी ने उस जगह के विधायक से बात की और विधायक ने सांसद को फ़ोन लगाया, “हां सर जी! सुना बताये एक गड्ढे में देश का ईमान गिर गया है!” सांसद ने बड़ी ही आतुरता से प्रत्युत्तर दिया,”कहां गिरा पड़ा है? कहां-कहां नहीं ख़ोजा गया इसे? सीधे प्रधानमंत्री से आदेश आया है उसे खोज निकालने का! जल्द बताइए कहां है, ज़रा माई-बाप को ख़ुश करें!”

विधायक ने पूछा, “इतने आतुर कैसे दिख रहें हैं आप? ऐसा क्या हुआ जो प्रधानमंत्री को इसे लाने का आदेश देना पड़ा”? इस पर सांसद ने प्रत्युत्तर दिया, “अभी निकाय चुनावों में पूरी लहर थी इनकी और लोगों ने ईमानदारी से कहा था कि आपके प्रत्याशी को ही जिताएंगे मगर न जाने क्या हुआ कि लोगों ने विरोधियों को वोट देकर जिता दिया! जब परिणामों की समीक्षा की गयी तो पता लगा कि ईमान गायब हो गया है। तब से उसे खोजा जा रहा है!”

शाम तक दल सहित सेना उस बोरिंग के पास उतरी और उसमें से फँसे हुए ईमान को निकालकर ले गयी और मनोहर को ताक़ीद किया गया कि तुमने ऐसा कुछ नहीं देखा और सुना है कि यहां ईमान कभी फँसा था! सुना है ईमान आज भी संसद में क़ैद है और उसे सिर्फ चुनावों के आसपास निकाला जाता है जहां रैलियों के हिसाब से दल उसे किराये पर ले जाते हैं! सुना बताये एक बार मनोहर को ईमान दिखा था दिल्ली में किसी नेता की गाड़ी में। ज़ंजीरों से बँधा पड़ा था और वो उसे देखकर सिर्फ़ हल्की सी मुस्कराहट ही दे पाया!

सुना है जल्द ही संसद में ईमान की तस्वीर लगने वाली है जिसके ऊपर हार चढ़ा होगा और जनता उसे कंधा देते हुए इतना ही कहेगी, “बहुत भला मानुष था, बेचारा ईश्वर को प्यारा हो गया…।”



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