आदरणीय नरेंद्र मोदी जी नमस्कार,
आपका वैचारिक विरोधी होते हुए भी आपकी इज्जत करता रहा हूं क्योंकि आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं। ऐसी स्थिति में एक आंदोलनकारी के रूप में भी आपके मन, कर्म, वचन को लगातार नजदीक से देखता रहा हूं। कल जिस तरह आपने संसद में समाज निर्माण कार्य में लगे आंदोलनकारियों पर कटाक्ष किया उससे मैं आपको पत्र लिखने को बाध्य हो गया।
अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे लोगों ने भी आजादी के लिए आंदोलन किया, तो क्या वे भी आपकी नज़र में आंदोलनजीवी हैं? ढाई महीने से अधिक हो गए, देश का किसान दिल्ली की सड़कों पर कड़कड़ाती ठंड में पड़ा है। अपने वाजिब हक के लिए सरकार के सामने हाथ फैलाना गुनाह है?
आपने कृषि कानून के तहत जमाखोरों को जमाखोरी करने की स्वतंत्र छूट दे दी। पहले आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कुछ जरूरी सामानों पर निजी क्षेत्र अर्थात कंपनी और व्यापारी के खरीदने की एक सीमा निर्धारित थी, जिससे जमाखोरी को रोका जा सके। अब सरकार को पता नहीं होगा कि किसने किस मूल्य पर किसानों का उपज खरीदा, कितना खरीदा और कहां स्टॉक रखा है? सरकार को नहीं पता होगा। मतलब देश को भी पता नहीं होगा। तब किसी विपदा में देश के लोगों को भोजन कैसे मुहैया कराया जाएगा? कंट्रोल रेट से गरीबों को दिया जाने वाला अनाज भी नहीं दिया जा सकेगा।
इसलिए इस संघर्ष रूपी महायज्ञ में देश का किसान शामिल है और आप उसे परजीवी कहकर उसके गरिमा का अपमान कर रहे हो। आप ऐसा कह सकते हो क्योंकि आप कृषि हितैषी नहीं बल्कि कॉरपोरेट हितैषी हो। हम जानते हैं किसानों को मदद देना और कॉरपोरेट को मदद देना दोनों एक साथ संभव ही नहीं है क्योंकि दोनों नदी के दो किनारे हैं। ऐसी स्थिति में यह आंदोलन जल्द से जल्द खत्म हो, इसके लिए तो आपने कहीं गड्ढे खुदवा दिए तो कहीं सड़कों पर कील बिछा दी। ऐसी स्थिति में कौन जनपक्षधर है और कौन जनविरोधी, यह तो पूरा देश देख रहा है।
दिल्ली में जुटे किसान इस बढ़ती ठंड में अपनी सारी जरूरत और पीड़ा को भूलकर पूरे देश के किसानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी जीत पूरे देश के किसानों को फायदा पहुंचाएगी और आपको उनका साथ देना चाहिए। अनाज के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य इसलिए रखा जाता है कि अगर बाजार में उसकी कीमत कम मिलती है तो सरकार उस अनाज को उस कीमत पर खरीद लेने की सुरक्षा दे, लेकिन निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के लिए दलालों से सांठगांठ कर सरकारी खरीद को कमजोर किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कौन आंदोलनकारी है और कौन परजीवी यह तो पूरा देश देख रहा है।
आपको मालूम है कि इस देश में लाखों आंदोलनकारी जीव भी है और इस देश में कई महत्वपूर्ण बदलाव आंदोलन के ही जरिये हए हैं। आपकी मातृसंस्था अगर देश को एक धर्म विशेष के लिए बनाने के लिए पिछले एक शताब्दी से संघर्षरत है तो वह भी इसके लिए आंदोलन ही कर रहे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के महानायक डॉ. बनवारी लाल शर्मा ने अपना पूरा जीवन नए समाज निर्माण के लिए लगा दिया और आजीवन आंदोलनरत रहे। हम इसी श्रेणी में डॉक्टर बी.डी. शर्मा को भी रख सकते हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की सुश्री मेधा पाटेकर से लेकर अनगिनत आंदोलनकारी हैं, जिनमें से कई लाइमलाइट से दूर रहकर नेपथ्य में रहकर सर झुका कर अपना काम कर रहे हैं। आदिवासियों के बीच, जंगलों में, पहाड़ों के बीच.. आप तो परिचित भी हैं क्योंकि आपकी मातृसंस्था भी उन जगहों पर काम करती रही है, हालांकि उसका उद्देश्य इसी बहाने उनमें हिन्दुत्व का प्रचार करना रहा है।
यह बात सही है कि सामाजिक कार्यकर्ता के नाम पर कुछ ऐसे लोग भी समाज में मौजूद हैं जिनका उद्देश्य प्रतिष्ठा पाना और सामाजिक, आर्थिक प्रगति करना भी रहता है, लेकिन यह बात तो राजनीति करने वालों पर ज्यादा सटीक बैठती है जहां सत्ता ही ‘परम उद्देश्य’ रहती है। सच्चाई तो यह है कि सामाजिक कार्यकर्ता में अपवादस्वरूप कोई ‘परजीवी’ हो सकता है तो राजनीति में अपवादस्वरूप ही अच्छे लोग नज़र आते हैं।
वह दिन भूल गए माननीय, जब आप अपनी पार्टी से नाराज होकर अमेरिका चले गए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के अमेरिका आगमन के बाद (सन् 2000) में आप वापस हिंदुस्तान आए। परिस्थितियों ने कुछ यूं मोड़ लिया कि आप मुख्यमंत्री बना दिए गए और सत्तारूपी वायरस से चिपक गए। आप देश के प्रधानमंत्री हैं, पूरा देश आपको सुनता है। इस तरह की सस्ती भाषा हमारे जैसे सामान्य आंदोलनकारी भी अपने मुंह से बोलना पसंद नहीं करते हैं। जिस देश में आधे से अधिक लोगों को मूलभूत आवश्यकताएं भी मयस्सर नहीं हैं वहां पर आपके शब्द में बोले तो ऐसे ‘परजीवी’ से आप का सामना लगातार होता रहेगा। इसलिए हम दोनों पक्षों के लोग अपनी बात कहते हुए भाषा पर संयम रखें।
मनीष सिन्हा
जिला सचिव
पीयूसीएल, इलाहाबाद