चुनावीबिहार-8: मोदी की तीन सभाएं और तेजस्वी की दो गलतियां ‘गेमचेंजर’ हो सकती हैं!


बिहार में या तो छत्तीसगढ़ दुहराया जाएगा या फिर उत्तर प्रदेश। मतलब, जो होगा खुला होगा, बिल्कुल प्रचंड बहुमत के साथ होगा, बीच का रास्ता या त्रिशंकु स्थिति‍ नहीं बनेगी।

तेजस्वी जिस भी टीम के साथ काम कर रहे हैं, या फिर जैसे भी उन्होंने अपना मेकओवर किया है, वह शानदार है। उनकी बॉडी लैंग्वेज से लेकर बोलने की अदा तक अपने पिता की ही है, हालांकि वह 1990 और 2020 का फर्क भूल कर अपने समर्थकों को हाथ पकड़ के नचाते हुए फेंकने में एक गलती कर जा रहे हैं। उनके पिता के जमाने में समर्थक इस मुद्रा को अपने नेता की कृपा समझता, लेकिन आज के जमाने में वह इसका बुरा मानेगा और विरोधी उस घटना का वीडियो भी वायरल कर देंगे।

दरअसल, तेजस्वी के साथ अनुभवहीनता और बिना जिम्मेदारी के बड़ी कुर्सी मिलने से जुड़े तमाम दोष समा गए हैं। लालू की तरह उनके पास रघुवंश प्रसाद, अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे दोस्त भी नहीं हैं, ऊपर से पार्टी पर उन्होंने नियंत्रण कायम तो कर लिया है, लेकिन यह कब तक रहेगा यह कहना बहुत मुश्किल है।

पहले चरण की वोटिंग को दो दिन हो गए हैं और अगले में दो दिन बाकी हैं, ऐसे में यह बिल्कुल मुफीद मौका है कि तेजस्वी अपनी पिच संभाल लें, जो बेकाबू हो रही है। तेजस्‍वी की सभाओं में उमड़ी भीड़ को देखकर- भोजपुरी में कहें तो ‘गील’ होकर की गयी रिपोर्टिंग का असर था कि दो गलतियां उन्होंने ताबड़तोड़ कीं। एक तो ‘राजपूत’ समुदाय के खिलाफ टिप्पणी कर दी। दूसरे, समर्थकों के साथ खींचातानी की। अब, गांव-गांव उनके यही दोनों वीडियो वायरल किए जा रहे हैं।

आप जब ये पंक्तियां पढ़ रहे होंगे, तो मुंगेर में नए डीएम और एसपी पदस्थापित हो चुके होंगे। लिपि सिंह और मीणा को निलंबित किया जा चुका है। जनता को अपना गुस्सा निकालने का भी अवसर दिया जा चुका है- जनता ने तीन पुलिस थानों को फूंक दिया है, डीएम और एसपी जब पदभार लेने आए, तो उनके हेलिकॉप्टर को भी क्षति पहुंचायी गयी और उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की गयी।

इससे हालांकि मुंगेर और उसके आसपास की सीटों पर एनडीए को तत्काल हुए नुकसान की भरपाई मुश्किल है, फिर भी हिंदू बहुसंख्यक जनता को सांत्वना का झुनझुना तो पकड़ा ही दिया गया है।

इन सब के बीच ‘प्रधान सेवक’ का तूफानी दौरा पासापलट साबित हुआ है। उन्होंने दरभंगा, मुज़फ्फरपुर और पटना में ताबड़तोड़ सभाएं कर मिथिलांचल और मगध को साध दिया है। मतदान के दिन 28 अक्‍टूबर को वह ऊर्जावान भी लगे औऱ अपने प्रिय कार्ड ‘हिंदुत्व’ को उसी सफाई से खेल गए, जिसके वो मास्टर हैं। उन्होंने दरभंगा की सभा में विराट औऱ भव्य राम मंदिर का श्रेय लिया और माता सीता को याद करते हुए मैथिलों को राम मंदिर का पहला हकदार बता दिया। मुजफ्फरपुर में वह उद्योग-धंधे की बात करते हुए तेजस्वी को ‘जंगलराज का युवराज’ बोल गए, तो पटना में अपनी कश्मीर नीति पर गरजे।

भाजपा आइटी सेल के भी तेवर बदल गए हैं। जो आइटी सेल लोकसभा चुनाव में ‘जंगलराज’ लिखने तक से परहेज कर रहा था, वह अब बाकायदा ‘जंगलराज का युवराज’ नाम से हैशटैग चला रहा है। पीएम की सभा के बाद आइटी सेल ने परमानेंट डिप्टी सीएम सुशील मोदी के साथ मिलकर आरजेडी औऱ तेजस्वी पर कार्टून की श्रृंखला तो चलायी ही, उन पर प्रश्नों की बौछार करते हुए ताबड़तोड़ हमला भी किया।

यह देखने से अधिक समझने की बात है कि नीतीश और परमानेंट डीसीएम के खिलाफ लोगों में भयानक गुस्सा होते हुए भी मोदी-मैजिक पहले की तरह ही काम कर रहा है। गांवों में इसका असर अधिक है, जहां महिलाएं मोदीजी के लिए बैटिंग औऱ फील्डिंग दोनों कर रही हैं। बिजली, शौचालय, गैस चूल्हा और मकान जैसे दृश्यगत् होने वाले उपहार ज़मीन पर हैं, दिख रहे हैं, इसलिए हवा में रहने वाले समीक्षकों को मुंह की खाने के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बार बिहार के मुसलमान और यादव समुदाय पूरी आक्रामकता के साथ वोटिंग कर रहे हैं। इसीलिए रिपोर्ट की शुरुआत में ही कह दिया गया है कि हो सकता है कि बिहार, छत्तीसगढ़ का नज़ारा पेश कर दे, वरना उत्तर प्रदेश तो विकल्‍प है ही। क्या पता, भाजपा गठबंधन सचमुच तीन-चौथाई बहुमत ले आए, जैसा दावा जेपी नड्डा से लेकर संजय जायसवाल तक कर रहे हैं।



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