क्यूबा में कास्त्रो युग का अंत और समाजवाद के भविष्य से जुड़े कुछ सवाल

बीते 19 अप्रैल को कानेल राष्ट्रपति के साथ-साथ क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया यानि फर्स्ट सेक्रेटरी भी बन गए, जैसा कि विगत में फिदेल कास्त्रो और राऊल कास्त्रो थे। यह क्‍यूबन कम्युनिस्ट पार्टी का शीर्ष स्थान है। कानेल से क्‍यूबा के लोगों की अलग अपेक्षाएं हैं।

Read More

ज्ञान की खोज में एक महापंडित और यायावर

ज्ञान की इतनी तीव्र पिपासा और जन-चेतना के प्रति निष्ठा ने राहुलजी के व्यक्तित्व को इतना प्रभा-मंडल दिया कि उसे मापना किसी आलोचक की सामर्थ्य के परे है। इसके अलावा जो सबसे बड़ी विशेषता थी- वह यह थी कि यश और प्रशंसा के ऊँचे शिखर पर पहुँचकर भी वे सहृदय मानव थे।

Read More

लगातार धधक रही है उत्तराखंड के जंगलों में आग, चपेट में 11 जिले, वायुसेना काम पर

नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, हरिद्वार और रुद्रप्रयाग जिले ज्यादा प्रभावित हुए हैं। आग बेकाबू होती गई है, जिससे ग्रामीण दहशत में हैं और कई वन्य जीवों का जीवन संकट में है।

Read More

घृणा और विरोध की एक चीख, जो आज भी सुनाई देती है…

जन्म के समय अपनी पहली चीख़ के बारे में स्वयं गोर्की ने लिखा है- ‘मुझे पूरा यकीन है कि वह घृणा और विरोध की चीख़ रही होगी।’ इस पहली चीख़ की घटना 1868 ई. की 28 मार्च की 2 बजे रात की है लेकिन घृणा और विरोध की यह चीख़ आज इतने वर्ष बाद भी सुनाई दे रही है। यह आज का कड़वा सच है और मैक्सिम गोर्की शब्दों का अर्थ भी है – बेहद कड़वा।

Read More

आज के दौर में भगत सिंह को देखने का संदर्भ और दृष्टि क्या हो?

भगत सिंह का यह आह्वान काफी मूल्यवान है- खासकर ऐसे समय में, जब आज भी क्रान्तिकारी ताकतें दलितों पर होने वाले जातीय व व्यवस्था जनित उत्पीड़न के खिलाफ कोई कारगर हस्तक्षेप नहीं कर पा रही हैं।

Read More

दांडी मार्च के 91 वर्ष: जन आंदोलन से आततायी सत्ताओं को झुकाया जा सकता है

आज की युवा पीढ़ी के दिमाग से इस घटना और इसके महत्व को बताने के लिए 91 साल पहले हुई उस ऐतिहासिक यात्रा के केंद्र पर उन स्मृतियों को सहेजने के लिए एक स्मारक बनाया गया है।

Read More

महिला-मुक्ति और सम्मान का सवाल श्रम की मुक्ति के साथ नत्थी है, इसे नहीं भूलना चाहिए

आजादी के बाद समझौतावादी धारा का समर्थक धनी, पूंजीपति वर्ग सत्ता में आने के बाद निहित वर्ग-स्वार्थ के कारण महिलाओं की मुक्ति की दिशा में ठोस कदम उठाने से हमेशा परहेज करता रहा।

Read More

सौ साल के रेणु: मनुष्य की परतदार यातनाओं का कथा-शिल्पी

वे अमूर्त से सैद्धान्तिक सवालों पर बहस नहीं करते थे। उनके विचारों का स्रोत कहीं बाहर-पुस्तकीय ज्ञान में न था, राजनीतिक हस्तक्षेप में उनका विश्वास बढ़ रहा था। उनके मन में एक आशा पनप रही थी। और जब ऐसा कुछ हुआ, तो रेणु अचानक सक्रिय हो गए।

Read More

बंगाल में राजनीतिक हिंसा की ऐतिहासिक जड़ें और भाजपा का उभार

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का एक लंबा व रक्तरंजित इतिहास रहा है। बंगाल की राजनीति का एक खास तरह के उग्र रूप से सदैव वास्ता रहा है। क्रांति और जुनून राज्य के राजनीतिक मानस में शामिल है। स्वतंत्रता आंदोलन, इसके उदाहरणों से भरा पड़ा है।

Read More

डेढ़ सौ साल से चल रहे किसान आंदोलनों की समृद्ध परंपरा में याद रखने योग्य कुछ अहम पड़ाव

भारत के स्वाधीनता आंदोलन में जिन लोगों ने शीर्ष स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई उनमें आदिवासियों, जनजातियों और किसानों का अहम योगदान रहा है। कृषक आंदोलनों का इतिहास बहुत पुराना है और विश्व के सभी भागों में अलग-अलग समय पर किसानों ने कृषि नीति में परिवर्तन करने के लिये आंदोलन किये हैं ताकि उनकी दशा सुधर सके।

Read More