बात बोलेगी: चढ़ी हुई नदी के उतरने का इंतज़ार लेकिन उसके बाद क्या?

असम, बिहार से ऐसी तस्वीरें ज़्यादा आ रही हैं। इन दो राज्यों में हालांकि यह वार्षिक कैलेंडर का हिस्सा हैं इसलिए फिर भी कुछ न कुछ मानसिक तैयारी लोगों की होती होगी, लेकिन पिछले कई साल से ऐसी ही तस्वीरें देखते हुए लगता है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद ये लोग शून्य से ज़िंदगी शुरू करते होंगे तभी तो इनका हर बार उतना ही नुकसान होता है जितना उससे पिछले बरस हुआ था!

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बात बोलेगी: सहृदय बनाने के सारे प्रशिक्षण केन्द्रों पर जबर ताले लटके हुए हैं!

मारे जीवन में राजनीति के विराट रंगमंच पर अब ऐसे सहृदय प्रेक्षकों की भारी कमी होती जा रही है। इसीलिए राजनीति के नाटक का पूरा संचालन एक निर्देशक के हाथों में आ गया है। हमने दखल लेने की अर्हताएँ खो दी हैं। अब हम केवल दर्शक हैं। जो दिखाओ, हम देख लेंगे। जो सुनाओ, हम सुन लेंगे।

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सत्ता और जरायम की समकालीन दुरभिसंधियों के बीच दो अतिकथनों पर खड़ा ‘पाताल लोक’

मूल वस्तु, बड़े स्टार्स, कंटेन्ट, निवेश आदि से निर्मित किए गए इस अतिकथन को हिन्दी के बड़े कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ की एक बहुत छोटी सी कविता की सामयिक व्याख्या से समझा जा सकता है। अज्ञेय की मूल कविता है- “साँप/तुम सभ्य तो हुए नहीं/ नगरों में बसना/ तुम्हें नहीं आया/ एक बात पूछूं/ ये डसना कहाँ से सीखा/ ये विष कहाँ से पाया?”

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बात बोलेगी: ‘लोया हो जाने’ का भय और चुनी हुई चुप्पियों का साम्राज्य

तोड़ भी दीजिए चुप्पी! बोलिए, कहिए, सुनिए, सुनाइए, चिल्लाइए! दोस्तों के बीच, घर में, फोन करते वक़्त, दफ्तर में! और अगर इसका अभ्यास नहीं है तो आईने के सामने खड़े होकर खुद से खुद के लिए बोलिए… देखिएगा, अच्छा लगेगा फिर। हवा चलने लगेगी! रूत, बदलने लगेगी!

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बात बोलेगी: किरायेदारों के ज़ाती मकान नहीं होते…

आप तो इससे भी खुश हो जाएंगे कि किसी ने गुड फ्राइडे को गुड गवर्नेंस डे बना दिया। मज़ा आ गया। जबकि न आपको गुड फ्राइडे से मतलब था न गुड गवर्नेंस से। बस आपको कुछ ऐसा मिल गया जो आपको बताया गया कि यही आपके लिए सबसे अच्छा है। ब्रोकर यूं तो बाज़ार का हिस्सा हैं लेकिन यहाँ दिये गये उदाहरण में फिलहाल वो केवल आपको मकान दिलाने के काम आ रहे हैं।

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रफ़्तार: पिता दिवस पर एक लघुकथा

ट्रेन अपनी गति पकड़ चुकी थी। अब तक मुझे अपनी सीट नहीं मिल पायी थी। जो सीट मेरे लिए मुकर्रिर थी वो दूसरे कोच में थी। स्टेशन पर जब तक गाड़ी खड़ी रही मैं अपनी उसी सीट पर बैठा था। कुछ देर बाद एक बूढ़ा दंपत्ति मेरे पास आया…

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बात बोलेगी: बेग़म सावधान! मिर्ज़ा कल हवेली का सौदा करने जा रहा है…

गुलाबो सिताबो 12 जून को रिलीज़ हुई बहुचर्चित और बहुप्रशंसित फिल्म है जो प्राइम वीडियो पर दर्शकों के लिए उपलब्ध है। इसमें एक आलसी, लालची, काइयाँ किस्म का व्यक्ति है …

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बात बोलेगी: स्मृतियाँ जब हिसाब मांगेंगीं…

एक ज़िंदगी कई घटनाओं का बेतरतीब संकलन होती है। हर रोज़ कुछ घटता है। उस घटने को लोग देखते हैं, महसूस करते हैं, उसके अच्छे-बुरे परिणाम भुगतते हैं। घटनाएँ बीत …

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