झारखंड: PESA कानून के तहत स्वशासन की आदिवासी परंपरा को पुनर्जीवित करने का मौका


प्रवासी मजदूरों के लिए जो कोई और सरकार न कर पाई वह मौजूदा झारखंड सरकार ने किया है

वीर भारत तलवार (प्रभात खबर, 10-जून-2020)

यह एक प्रतिष्ठित विचारक द्वारा झारखंड सरकार की प्रशंसा में दिया गया वक्तव्य है, और यह सच है। झारखंड सरकार ने झारखंडियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए, जो हजारों और लाखों की तादाद में अपने और अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने के उद्देश्य से हरे चरागाहों की खोज में निकले थे। झारखंड में आने पर उनका फूल-मालाओं के साथ स्वागत किया गया, उन्हें खाने के पैकेट दिए गए और पहले से व्यवस्थित बसों में उनके गृह-जिलों में ले जाया गया।

तथ्य यह है कि उनमें से ज्यादातर अकुशल या अर्ध-कुशल श्रमिक हैं। उनमें से अधिकांश बहुमत अपने दम पर दूरस्थ स्थानों तक नहीं गए थे बल्कि उन्हें वहां बेईमान ठेकेदारों और बिचौलियों द्वारा समूहों में ले जाया गया था, जिन्होंने भावी नियोक्ताओं के साथ उनका सौदा किया था। उन्हें ज्यादातर अंधेरे में रखा जाता था; वे किस विशेष कंपनी में काम करेंगे, उन्हें कितनी मजदूरी मिलेगी, काम के घंटे क्या होंगे, उन्हें किस तरह का रहने का आवास मुहैया कराया जाएगा, कौन सी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी आदि के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं होता था। उन्हें आने के साथ ही काम पर लगा दिया जाता और अनिश्चित परिस्थितियों में अक्सर उनसे अधिकतम श्रम निकाला जाता था। उनके आधार कार्ड, एटीएम कार्ड और अन्य सभी दस्तावेज ठेकेदार के कब्जे में होते थे। ठेकेदार द्वारा उनके पसीने की कमाई में से कितनी लूट ली गई यह कोई नहीं जानता।

24 मार्च 2020 को पूरे देश में पूर्ण तालाबंदी लागू कर दी गई। उनकी नौकरियां अचानक समाप्त हो गईं और उन्हें सड़क पर फेंक दिया गया। उनकी बकाया मजदूरी का भुगतान नहीं किया और ठेकेदार तथा बिचौलिए जैसे गायब ही हो गए। पूरे दो महीनों तक अपने छोटे बच्चों को ले उन्होंने घर वापस आने की कोशिश की, कुछ साइकिल पर और कई पैदल।

प्रवासी मजदूर अब कह रहे हैं कि अगर हमें झारखंड में रोजगार मिले तो हम बेशक कहीं और नहीं जाएंगे। क्या झारखंड सरकार 10 लाख श्रमिकों (5 लाख लौट चुके हैं और 5 लाख पहुँचने ही वाले हैं ) को रोजगार देने में सक्षम है? क्या यह मान लेना उचित है कि सरकार उनके लिए यथासंभव हर प्रयास करेगी?

क्यों न प्रण लेकर कहा जाए: “हम अपने गाँव वापस जाएंगे, अपनी जमीन पर पूरी मेहनत करेंगे चाहे वह भूखंड कितना हीं छोटा क्यों न हो, सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल कर बेहतर सिंचाई की व्यवस्था करेंगे, खुद संयोजित हो कर सहकारी संस्थाएं खोलेंगे, बाहरी बिचौलियों से निजात पा कर सीधे बाजारों तक पहुँच विकसित करेंगे, पूरे गाँव में शिक्षा का प्रसार कर उन्हें समायोजित करेंगे ताकि उन्हें अपने जंगल का अधिकार मिल सके। यह सुनिश्चित करेंगे कि गाँव के बच्चों को विद्यालय की सुविधा मिले जहां वे प्राथमिक शिक्षा अपनी भाषा में ग्रहण कर सकें। यह सुनिश्चित करें कि आँगनबाड़ी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नियमपूर्वक चल रहे हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजातियों पर आधारित सरकारी योजनाओं के बारे में जानेंगे और बिना भ्रष्टाचार उनका लाभ लेंगे। ”

यह पीईएसए अधिनियम के अनुसार स्वशासन की आदिवासी परंपरा को पुनर्जीवित करने का भी एक उपयुक्त समय है, जिसके अनुसार ग्राम सभा सर्वसम्मति से निर्णय लेने में सक्षम,सहकारी कार्यान्वयन का सर्वोच्च निकाय है। चूंकि झारखंड में प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधनों मौजूद है, खनिज मूल्य में हिस्सेदारी (जिसकी जमीन उसका खनिज) प्राप्त की जा सकती है; सर्वोच्च न्यायालय के फैसले- ‘भूमि के मालिक भूमि के नीचे स्थित खनिजों के मालिक भी हैं’ – ने  जिसकी गारंटी सुनिश्चित की है।

अवसर अपार हैं पर अभी तक उनका लाभ नहीं उठाया गया है। यह सही समय है इनके बारे में पता लगाने का जिसके इस्तेमाल से न केवल अलग-अलग परिवारों को लाभ मिलेगा बल्कि इससे पूरा समुदाय लाभान्वित होगा।

ऐसी कुछ योजनाओं की सूची नीचे दी गई है:

जनजातीय मामलों के मंत्रालय की योजनाएं / कार्यक्रम

1.   केंद्र सरकार की योजनाएं :

i.     जन जातीय उप-योजना (एससीए से टीएसएस) के लिए विशेष केंद्रीय सहायता: इस अनुदान का उपयोग एकीकृत जन जातीय विकास के आर्थिक विकास के लिए किया जाता है

ii.    संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत अनुदान-सहायता: राज्य के प्रस्तावों के आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में अंतर को पाटने के लिए

iii.   एसटी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं

iv.   जनजातीय उत्पादों / उत्पादन के विकास और विपणन के लिए संस्थागत समर्थन

v.    न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की सहायता से लघु वन उपज (एमएफपी) के लिए मूल्य श्रृंखला का विकास।

2.   राज्य सरकार की योजनाएं :आदिवासियों के कल्याण के लिए 85 योजनाएँ हैं। इनमें से कुछ बहुत ही व्यावहारिक योजनाएँ:

i.     स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना

ii.    इंदिरा आवास योजना

iii.   सिंचाई कुओं की योजना

iv.   बिरसा मुंडा आवास योजना

v.    आदिवासी छात्राओं के लिए पोषण योजना

vi.   विधवाओं के लिए पेंशन योजना

vii.  पारंपरिक कृषि योजना का विकास

viii. हर एक के गांव में मनरेगा लागू करें

ix.   ग्राम-सड़क योजना

x.    बीज का उत्पादन और वितरण

xi.   भूमि और प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण

xii.  बंजर भूमिका विकास

xiii. वृहद और मध्यम सिंचाई योजना

xiv. चेक-डैम योजना

xv.  माइक्रो लिफ्ट-सिंचाई योजना

xvi. ग्राम जलापूर्ति योजना

xvii. स्वास्थ्य योजना


About फादर स्टैन स्वामी

View all posts by फादर स्टैन स्वामी →

5 Comments on “झारखंड: PESA कानून के तहत स्वशासन की आदिवासी परंपरा को पुनर्जीवित करने का मौका”

  1. Very good article! We are linking to this particularly great content on our site. Keep up the great writing.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *