तोलाबाज़ी और तुष्टीकरण: ममता बनर्जी से व्यापक नाराजगी के दो अहम कारण


पांच राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव जारी है, किंतु पूरे देश की नजरें और विशेषकर मीडिया का पूरा ध्यान पश्चिम बंगाल पर है। बंगाल इसलिए क्योंकि बंगाल का जो भी परिणाम होगा वह देश की राजनीति का अगला मोड़ तय करेगा। कहने में कोई हर्ज नहीं कि यहां सीधी टक्कर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच बताई जा रही है, जो कुछ हद तक सही भी है, किंतु भूलना नहीं चाहिए कि यहां सी.पी.एम. और कांग्रेस का गठबंधन संयुक्त मोर्चा भी चुनावी मैदान में है और उसने सबसे अधिक युवा चेहरों को मैदान में उतारा है। परिणाम का पता आगामी 2 मई को चलेगा।

जनपथ की टीम 1 अप्रैल को कोलकाता पहुंची। यहां उतरते ही सबसे पहले हमारी मुलाकात जिन व्यक्तियों से हुई, उनमें एक भाजपा समर्थक व्यवसायी थे। बीजेपी और मोदी समर्थन में वे इतने डूबे हुए हैं कि टीएमसी, कम्युनिस्ट और मुसलमानों के प्रति उनके मन में जो घृणा है उसका खुलासा करते हुए वे अपनी भाषाई मर्यादा तक को भूल गए। उनके लिए टीएमसी भ्रष्ट है, मुसलमान अराजक और क्रूर और कम्युनिस्ट देशहित में न सोचने वाले लोग हैं। बंगाली महिलाओं केबारे में उनके जो विचार हैं उसे यहां शब्दों में बयां करना मेरे लिए संभव नहीं है। सरल शब्दों में कहें तो बंगालियों को, खास कर बंगाली लड़कियों /महिलाओं के प्रति उनकी सोच हद से ज्यादा गिरी हुई है।

सुविधा के लिए उन्हें यदि हम कोलकाता के व्यापारी वर्ग का प्रतिनिधि मान लें, खास कर मारवाड़ी और गैर-बंगाली/ हिंदीभाषी व्यवसायी वर्ग का प्रतिनिधि, तो एक सच यह सामने आता है कि मूल उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाला यह हिन्दू समुदाय ममता बनर्जी और टीएमसी की तोलाबाजी यानी वसूली से वाकई परेशान है। इसलिए वे बीजेपी की सरकार चाहते हैं।

इसके ठीक उलट इसी कोलकाता में जो हिंदीभाषी मुस्लिम समुदाय है वे ममता दीदी के कट्टर समर्थक हैं। यानि तोलाबाज़ी के साथ तुष्टीकरण का जहर भी सियासत में घुला हुआ है। चूंकि, यदि टीएमसी की ‘तोलाबाजी’ से सभी नाराज़ हैं तो व्यवसाय करने वाले मुस्लिम क्यों ममता के पक्ष में हैं? क्या तोलाबाजी भी समुदाय विशेष के आधार पर होती है?

मुस्लिम इलाके इकतरफा तृणमूल के साथ हैं

जाहिर है, ऐसे में बीजेपी के पास चुनाव लड़ने के लिए यहां यही दो मुद्दे हैं – ममता राज में भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टीकरण। इन दो मुद्दों को जनता के बीच उतारने में भाजपा सफल रही है, ऐसा दावा किया जा सकता है।

जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो खुद बीजेपी ने बंगाल चुनाव में कितना पैसा खर्च किया इसका कोई आधिकारिक हिसाब किसी के पास उपलब्ध नहीं है। खुद बीजेपी के समर्थक व्यवसायी कहते हैं कि पार्टी ने विधायक उम्मीदवारों को एक एक करोड़ रुपये दिए हैं। उनके मुताबिक इतना पैसा बंगाल के लिए बहुत होता है। इसीलिए एक डर भी है कि सब उम्मीदवार पैसा दबा के कहीं बैठ न जाएँ और बीजेपी की लुटिया ही न डूब जाए!

फिलहाल, बीते तीन दिनों से कोलकाता में लोगों से मिलने और बातचीत करने के बाद अब यह लगने लगा है कि यहां अंडर करेंट बहुत बदल गया है और ममता दीदी के लिए सत्ता बचाये रखना उतना सरल नहीं है जितना अब तक लग रहा था। तृणमूल के प्रति कोलकाता के लोगों खासकर व्यवसायी वर्ग में नाराज़गी है। गांव स्तर पर यह नाराजगी किस हद तक है इसकी सटीक जानकारी अभी हमारे पास नहीं है।

दूसरी ओर बीते दस वर्षीं में यहाँ कोई नया उद्योग नहीं खुला है, जिससे रोजगार के अवसर और कम हो गये हैं, अध्यापक से लेकर पुलिस कांस्टेबल तक की भर्ती में भ्रष्टाचार की बात भी सामने आई है।

ध्रुवीकरण का जो मसला है उस पर भी अभी पक्के तौर पर नहीं कह सकते, किंतु किसी भी दल के लंबे शासन के बाद जो एन्टी-इनकंबेंसी उभरती है वो तो है ही। अब तक हुए दो चरणों के मतदान के बाद मतदान जो प्रतिशत रहा उसे देखते हुए अमूमन यह कहा जाता है कि जब भी भारी मतदान होता है वह वर्तमान सत्ता के खिलाफ जाता है। बंगाल के बारे में यह कितना सही होगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी छह चरणों का मतदान बाकी है।

इस दौरान कोलकाता के जिन टैक्सी चालकों से हमारी बात हुई उनमें टीएमसी से और खासकर परिवहन मंत्री मदन मित्रा के खिलाफ बहुत नाराज़गी है और वे खुलकर टीएमसी का विरोध कर रहे हैं। तो क्या बीजपी को वोट देने के बाद डीजल पेट्रोल और गैस के दाम यहां कम हो जाएगा? इस सवाल के जवाब में उनके पास खामोशी है और कुछ अजीबोगरीब तर्क हैं जो जाहिर है व्हाट्सप्प फॉरवर्ड से निकले जान पड़ते हैं।

मसलन, दो टैक्सी चालकों से हमारी बात हुई, दोनों ही ममता सरकार से नाराज हैं, कारण भी एक ही है कि पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ गया और उनकी आमदनी कम हो गयी! और इसके लिए वे मोदी को नहीं ममता को दोषी मानते हैं! उनका कहना है कि राज्य सरकार अपना 12 फीसदी टैक्स हटा लें! जब हमने उनसे कहा कि तेल का दाम तो केंद्र तय करता है और उसका टैक्स राज्य से अधिक है! इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि मोदी कुछ भी करें, दीदी टैक्स कम करें या किराया बढ़ा दें! दोनों ही टैक्सी ड्राइवर बिहार से थे!

बहरहाल, सवाल कई हैं- क्या टीएमसी को पूर्ण बहुमत मिलेगा और वह सत्ता पर कायम रहेगी? यदि सिर्फ सरकार बनाने लायक सीटें टीएमसी को मिलती हैं तो उस सरकार को बीजेपी कितने दिनों तक कायम रहने देगी? इन सवालों का जवाब हम खोजने की कोशिश आने वाले दिनों में करेंगे।


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