मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कांग्रेस को लेकर अपनी स्थिति साफ़ कर दी है. बीते 30-31 अक्टूबर को सीपीएम की केन्द्रीय समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस व अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ मिलकर तृणमूल और बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेगी. इसकी जानकारी देते हुए पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि बंगाल की तरह तमिलनाडु, केरल और असम में भी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन किया जाएगा किन्तु केरल में कांग्रेस के साथ कोई चुनावी समझौता नहीं किया जायेगा.
येचुरी ने कहा, ‘केरल में हम एलडीएफ का हिस्सा रहते हुए चुनाव लड़ना जारी रखेंगे. माकपा तमिलनाडु में द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा होगी. असम में हम कांग्रेस समेत सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ सहयोग करते हुए चुनाव लड़ेंगे.’ उन्होंने कहा कि माकपा और वाम दल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस समेत सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ चुनावी तालमेल के साथ उतरेंगे ताकि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस को पराजित किया जा सके.
केरल में मुख्यमंत्री पिनरई विजयन इन दिनों लगातार विवादों में घिरे हुए हैं. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के प्रिंसिपल सेक्रेटरी आईएस अधिकारी एम.शिवशंकर का घोटाले में नाम आने का मामला अभी चल ही रहा था कि अब प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने राज्य के पार्टी सचिव के बेटे को ड्रग्स के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया है.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों ने बेंगलुरु ड्रग मामले में सीपीआई (एम) नेता कोडियरी बालाकृष्णन के बेटे बिनेश को गिरफ्तार कर लिया है. पीएमएलए कोर्ट ने आरोपित को 2 नवम्बर तक के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया है.
ईडी प्रवक्ता के अनुसार केरल के सीपीआई (एम) के राज्य सचिव कोडियरी बालाकृष्णन के बेटे बिनेश कोडियरी को गुरुवार की शाम बेंगलुरु ड्रग मामले में गिरफ्तार किया गया है, वहीं वयोवृद्ध सीपीएम नेता एम एम लॉरेंस के बेटे अब्राहम भाजपा में शामिल हो गये. पेशे से वकील रहे अब्राहम लॉरेंस ने शनिवार को भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि वह पार्टी में हालिया घटनाओं से तंग आ चुके हैं.
पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद आज वहां 294 सीटों वाली विधानसभा में सीपीएम के पास केवल 26 सीटें हैं. सिंगुर-नंदीग्राम में 2007 में पुलिस की फायरिंग में 14 ग्रामीणों की मौत के बाद यहां दो साल तक हिंसा का दौर चला. इसी घटना फायदा ममता बनर्जी ने उठाया और यहीं से तृणमूल के लिए सत्ता तक जाने का रास्ता साफ़ हुआ था. साल 2011 में ममता बनर्जी ने लेफ्ट से सत्ता छीन ली.
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से राज्य में वाम दलों की स्थिति लगातार कमजोर होती चली गयी. वहीं दूसरी ओर राज्य में बीजेपी जैसी साम्प्रदायिक पार्टी की जमीन मजबूत होती चली गयी. इसका असर बंगाल के बाहर त्रिपुरा में भी पड़ा और वहां से भी माणिक सरकार की सरकार सत्ता से बाहर हो गयी जबकि माणिक सरकार देश के सबसे गरीब और ईमानदार मुख्यमंत्री मंत्री के तौर पर जाने जाते रहे हैं.
बंगाल में सत्ता परिवर्तन होने के बाद से सैकड़ों वाम समर्थकों ने पहले तृणमूल की तरफ पलायन किया था और 2014 के बाद से बहुतों ने बीजेपी की तरफ जो पलायन शुरू किया था 2019 के चुनाव आते ही उसमें तेजी आ गयी और सैकड़ों वाम समर्थकों और जिले स्तर के वाम कैडरों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. जिला और ग्रामीण स्तर पर वाम दलों के जो कार्यालय और बैठकखाने थे उन पर अब तृणमूल और बीजेपी के झंडे लगे हुए हैं. सीपीएम महासचिव खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं.
2014 के लोकसभा चुनावों में वाम मोर्चे को केवल 2 सीटें मिली थी और उसका वोट प्रतिशत घटकर 17 फीसदी रह गया था. जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में बंगाल में मुख्य मुकाबला तृणमूल और बीजेपी में था.