सरकार अपना मानवीय पक्ष सामने लाए: अनशनरत किसानों के पक्ष में लेखकों-कलाकारों की अपील


हम गणतंत्र भारत के लेखक, आर्टिस्ट और विभिन्न कलाओं से जुड़े लोग पिछले दिनों हुईं घटनाओं से अत्यंत क्षुब्ध हैं। भारत देश कभी विश्व में इसीलिए विश्व गुरु माना गया था क्योंकि यहाँ शास्त्रार्थ की परंपरा थी, अपने प्रतिद्वंद्वी को हमेशा रचनात्मक उत्कर्ष का प्रतीक माना गया था। किंतु इधर कुछ समय से देश में जो वातावरण बन रहा है वह कतई लोकतांत्रिक नहीं है।

हम चाहते हैं कि कृषि कानूनों की गुणवत्ता पर दोबारा निर्मम विचार हो। किसानों की बात ससम्मान सुनी जाए और कानूनों को रद्द किया जाए।

हम इस समय साधारण किसानों की दुर्दशा पर आप सबका ध्यान खींचना चाहते हैं, जो पिछले 2 महीने से दिल्ली के भिन्न बार्डरों पर कड़क ठंड में बैठे हैं। प्रायः हर दिन उनके ट्राली-आश्रयों से 2 किसान लाशें निकली हैं। ये लाशें संवैधानिक रूप से शांतिपूर्ण अनशन कर रहे हमारे अपने लोगों की हैं, जिनके लिए शोक-संवेदना का एक भी शब्द किसी सरकारी पक्ष से नहीं आया है।

लोकतंत्र में सरकार के बनाये कानूनों को अस्वीकार करने का अधिकार हमारा संविधान देता है, और उसके विरुद्ध शांतिपूर्ण अनशन का भी। अनशन के लिए बैठना साधारण जन का मौलिक अधिकार है।

आज हमारी युवा बेटियां, छात्राएं, बड़ी संख्या में इन मोर्चों में बैठी हुई हैं। इनमें से कई गंदगी से होने वाले मूत्र रोगों से ग्रसित होने के बाद भी आंदोलन में बने रहने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ऐसे समाचार पिछले दिनों मीडिया ने दिखाए हैं।

ऐसे असहनीय वातावरण में हम संवेदनशील सर्जक किस तरह सुकून से बैठ सकते हैं। प्रतिरोध की जमीन हमारी रचनात्मकता से कैसे वंचित रह सकती है। मानव गरिमा के इस यज्ञ में हम कलाकार, बौद्धिक इस सत्याग्रह में खुद को समर्पित करते सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह हठ त्यागे व अपने देशवासियों की पीड़ा समझे।

हम यह रेखांकित करना चाहते हैं कि ये अनशन न सरकार, न किसी पार्टी के विरुद्ध है। ये केवल उन कानूनों के विरुद्ध है, जिन्हें किसानों का एक बड़ा समुदाय आमान्य करता है। ऐसी विकट स्थिति में हमारी मांग है कि सरकार अपना मानवीय पक्ष सामने लाए।

जय हिंद।

हम हैं इस देश के नागरिक:-

प्रयाग शुक्ल, रमेशचंद्र शाह, गिरधर राठी, उषाकिरण खान, ममता कालिया, गगन गिल, शैल मायाराम, पुरुषोत्तम अग्रवाल, प्रेरणा श्रीमाली, लीलाधर मंडलोई, कुमार अंबुज, ओम थानवी, सारा राय, कृष्ण मोहन झा, दीपक शर्मा, कनुप्रिया, आशुतोष भारद्वाज, कृष्ण कल्पित, विनोद भारद्वाज, विकास कुमार झा, रुस्तम सिंह, तेजी ग्रोवर, प्रतिभा राय, अनिरुद्ध उमट, आशुतोष दुबे, चरण सिंह पथिक, गोपाल माथुर, रामकुमार तिवारी, ब्रजरतन जोशी, मनीष पुष्कले, सुमन केशरी, गीता श्री, ईशमधु तलवार, सत्यनारायण, तसनीम, महेंद्र गगन, अविनाश मिश्र, लक्ष्मी शर्मा, नन्द भारद्वाज, विनोद पदरज, मोहन कुमार डहेरिया, अरुण देव, अजंता देव, सीमांत सोहेल, रोहिणी अग्रवाल, रासबिहारी गौड़, मायामृग, दीपचंद साँखला, अनुपमा श्रीनिवासन, प्रेमचंद गांधी, देवयानी भारद्वाज, माधव राठौड़, रूपा सिंह, पीयूष दइया, शम्पा शाह, स्मिता सिंह, विपिन चौधरी, अरुण माहेश्वरी, सरला माहेश्वरी, रंजना अरगड़े, रविन्द्र व्यास, दयानन्द शर्मा,रश्मि भारद्वाज, सुशीला पुरी, गीता गैरोला, संध्या सिंह, सुधीर सक्सेना, ऊषा राय, राम प्यारे राय, निहारिका बंसल जिंदल, मंजुला चतुर्वेदी, मिनी अग्रवाल, सुनीता घोष, नीलम शंकर, रश्मि रविजा, मधु गर्ग, सीताराम, अमृता वेरा, कविता, सुधा अरोड़ा, आनंद गुप्ता, सुभाष सिंघानिया, विवेक मिश्र, चन्द्रकला त्रिपाठी, पंकज चतुर्वेदी, सुमति लाल सक्सेना, मनीषा जैन, अली जावेद, अभिनव सव्यसाची, राजीव मित्तल, मधु कांकरिया, विभा रानी, प्रभु जोशी, विभावरी, देवदीप, राजीव ध्यानी, राजेश जोशी, शुभा शुभा, ऋचा साकल्य, पवन करण, उपासना, अनुराधा अनन्या, अनिल जनविजय, राम मुरारी, संध्या सिंह, सरोजनी विष्ट, स्वप्निल श्रीवास्तव, बंशीलाल परमार, ज़ाकिर अली, सुरेंद्र राजन, राजेश कुमार, प्रदीप सौरभ, वीरेंद्र सोनी, रश्मि एच ठाकुर, प्रियमवद अजात, नजिया अख्तर अंसारी, वाजदा खान, हुस्न तब्बसुम निंहा, मनीष मुनि, मनोज कुलकर्णी, दिवाकर मुक्तिबोध, मिनाछी चौधरी, मुखर कविता, प्रवीन सिंह, संजय श्रीवास्तव, आभा खरे, सतीश जायसवाल, नरेश सक्सेना, अनामिका, अरविंद चतुर्वेद, मीता दास, रीता राम दास, संजीव कौशल, अनवर शमीम, सैयद शहरोज कमर, रईस अहमद लाली, वरयाम सिंह, मधु कांकरिया, ए के अरुण, महेश कटारे, रीतू कलसी, राम किशोर, वसंत त्रिपाठी, चंद्रप्रकाश राय, आनंद स्वरूप वर्मा


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जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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