‘यथास्थितिवाद के विरोधी थे विलास, इसलिए नए संगठन बनाना उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन गया’


हम कहना चाहते हैं कि साम्राज्यवाद का नया युग आज जब अत्यंत शोषणकारी साम्राज्यवाद के फासीवादी समय में पहुंच गया है और सारी दुनिया में कोविड-19 उसकी सेवा में जुटकर दुनिया भर के लोगों को बदहाली में पहुंचा रहा है वैसी हालत में फासीवादी समय और कोविड के कहर का मुकाबला करने के लिए सीपीआई(एमएल)- न्यू प्रोलेतारियन को कॉमरेड विलास सोनवणे जैसे लड़ाकू और समझदार नेताओं की शख्त जरूरत है। ऐसी हालत में महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे 69 वर्षीय कॉमरेड विलास सोनवणे का जाना केवल हमारी पार्टी ही नहीं दूसरे संगठनों और व्यापक समाज के लिए भारी क्षति है।

बतलाना जरूरी है कि कॉमरेड विलास ने अपनी राजनीतिक यात्रा सीपीआई(एम) के छात्र संगठन एसएफआई की महाराष्ट्र इकाई से शुरू की थी और इसके राज्य सचिव के रूप में छात्र आंदोलन को नई दिशा देने का प्रयास किया लेकिन कॉमरेड विलास के प्रश्न सीपीएम नेतृत्व के लिए असुविधाजनक बनते गए और सीपीएम नेता शरद पाटिल के विचार के प्रति उनका खिंचाव बढ़ता गया, किन्तु उनके इस विचार से कि देश में जनवादी क्रांति जाति इत्यादि सामाजिक प्रश्नों को भी हल कर देगी विलास को रास नहीं आता था इसलिए उनका सीपीएम के अंदर और बाहर साथ देने के बजाय प्रश्नाकुल बने रहे और सीपीआई(एमएल) के एक गुट सीआरसी में 1980 के दशक के आरंभिक दिनों में शामिल हो गए और उस दशक के ही 1987 तक महाराष्ट्र यूनिट के स्टेट सेक्रेटरी बने रहे।

सीपीएम में रहते हुए और उसकी राजनीति करते हुए जिस तरह वे सामाजिक प्रश्नों के समाधान के लिए चिंतित रहते थे ठीक उसी तरह सआरसी की कार्यनीतिक और रणनीतिक राजनीति करते हुए सामाजिक प्रश्नों के प्रति चिंतित रहने लगे और जैसे ही मंडल आंदोलन शुरु हुआ उन्होंने ओबीसी कमेटी बनाई और इस आंदोलन को सामाजिक स्तर पर नई दिशा देने लगे और लगभग पूरे देश का दौरा किया और समाज के हर तबके के पिछड़े लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय हो गए। पिछड़े मुसलमानों के प्रति भी उन्होंने चिंता प्रकट की और समाधान के लिए सामाजिक और राजनीतिक दरवाजों को खटखटाया।

जाति के सवाल पर बनी पहली कम्युनिस्ट पार्टी के संदर्भ में ‘माफुआ’ का विश्लेषण व सीमाएं

इसी दरमियान उन्होंने लखनऊ से संवाद प्रक्रिया की शुरुआत की जिसने उन्हें युवा भारत के गठन के लिए प्रेरित किया। फलस्वरूप मार्क्सवादी और गैर-मार्क्सवादी सभी प्रकार के युवा तबके को इसमें शामिल किया और साम्राज्यवाद विरोधी अभियान शुरू किया और उसका कार्यक्रम इस तरह का बनाया जैसा किसी डेमोक्रेटिक पार्टी का होता है। यह संगठन आज भी सक्रिय है।

2005 में नई दिल्ली में आयोजित मॉस्को विद्रोह समारोह में बोलते हुए विलाश सोनवणे ने नव सर्वहारा की अवधारणा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का ऐलान किया और उसके बाद अपने संगठन के साथियों को नव सर्वहारा के संगठनों में शामिल करना शुरू कर दिया और अघोषित रूप से सीपीआई(एमएल)- न्यू प्रोलेतारियन पार्टी में सक्रिय होते चले गए और महाराष्ट्र में स्टडी सर्कल चलाना और स्टेट यूनिट का गठन शुरू कर दिया। इसी दौरान पार्टी द्वारा गठित आईसीटीयू के सेंट्रल वर्किंग चेयरमैन का पद संभाला और आईसीटीयू से अपनी अस्वस्थता के बावजूद आजीवन जुड़े रहे।

ध्यान देने की बात है कि जिस समय रायगढ़ में डाउ केमिकल्स कंपनी स्थापित हो रही थी उस समय कॉमरेड विलास ने लाखों लाख वारकरियों को गोलबंद कर उसकी मशीनरी को जलवा दिया तो स्टेट सुरक्षा एजेंसियों को संदेह हो गया कि इसके पीछे कोई पार्टी है नहीं तो इतना बड़ा कदम किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा उठाया जाना संभव नहीं है। इस आंदोलन में उन्होंने जस्टिस सावंत और जस्टिस कोलसे पाटिल का भी सहयोग लिया और एन्टी सेज़ मूवमेंट में भी जस्टिस सावंत और पार्टी का सहयोग उनके साथ था। इसके साथ ही जो भी राजनीतिक और सामाजिक गतिविधि उन्होंने की और जो जो संगठन उन्होंने बनाए उनमें पार्टी का सहयोग हासिल करते होते थे।

समता और स्वतंत्रता के प्रयोगधर्मी योद्धा विलास सोनवणे

यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कॉमरेड विलास पार्टी की गैर-जरूरी नीतियों की जरूरी आलोचना जरूर करते थे और 2016 में पार्टी सम्मेलन में चाह कर भी अस्वस्थता की वजह से शामिल नहीं हो पाए किन्तु कुछ महीनों बाद पार्टी सेंट्रल कमेटी ने कॉमरेड विलास को उनके न चाहते हुए भी महासचिव के पद पर चुना लेकिन अस्वस्थ्यता के कारण उन्होंने अपने आप को 9-10 महीनों में ही इस पद से मुक्त कर लिया। फिर भी सीपीआई(एमएल)- न्यू प्रोलेतारियन के विस्तार में योगदान करते रहे जिसका पूरा विवरण फिलहाल हम यहां नहीं रख पा रहे हैं।

सर्वहारा और नव सर्वहारा की जीत पर उनका पूरा भरोसा था। रूसी क्रांति शताब्दी समारोह पर मुसविदे में उन्होंने यह शामिल कराया था कि “हम जीते हैं और फिर जीतेंगे।” इससे जाहिर होता है कि वे कम्युनिस्टों की आलोचना करते हुए उनसे बेहतर विकल्प की परिकल्पना नहीं करते थे। वे जो कुछ भी करते थे और जिस जिस कम्युनिस्ट पार्टी में रहे वहां से ऑक्सीजन लेकर अपने द्वारा बनाए गए हर संगठन को गतिशील किया और सकारात्मक दिशा दी।

वे यथास्थितिवाद के विरोधी थे इसलिए भी संगठन बदलना और नए संगठन बनाना उनकी कम्युनिस्ट जीवनशैली का हिस्सा बन गया। इस स्थापना के साथ ही मैं यह कह देना जरूरी समझता हूं कि शताब्दियों से चली आ रही भूमंडलीकरण, कोविड-19 और पेगासस की चेन को तोड़ना जरूरी हो गया है जिसको कार्यान्वित करना कॉमरेड विलास के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मेरा अटूट विश्वास है कि यदि कॉमरेड विलास स्वस्थ होते तो मौजूदा जारी किसान आंदोलन को अपनी शहादत देते जो लगभग 500 किसानों की शहादत में एक ज्वलंत कड़ी बनता। इन्हीं शब्दों के साथ हम कॉमरेड विलास की स्मृति को लाल सलाम भेंट करते हैं और नए सवेरे का आह्वान भी।

कॉमरेड विलास के निजी परिवार के साथ नव सर्वहारा परिवार सदा रहेगा।

शिवमंगल सिद्धांतकर
चेयरमैन, सीपीआई(एमएल)- न्यू प्रोलेतारियन
पुणे में श्रद्धांजलि सभा में शशि सोनवणे को प्रेषित वक्‍तव्‍य


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *