सरकार ‘कमेटी’ पर सोचेगी, किसान धरना चालू रखेंगे, अदालत क्रिसमस की छुट्टी पर जा रही है


सुप्रीम कोर्ट में मुख्‍य न्‍यायाधीश की बेंच के समक्ष आज दो तरह की याचिकाओं पर सुनवाई तय थी। पहली श्रेणी में वे याचिकाएं थीं जो तीन किसान कानूनों को रद्द करने के लिए लगायी गयी थीं। दूसरे किस्‍म की याचिकाएं वे थीं जो दिल्‍ली में किसानों का धरना समाप्‍त करवाने के अनुरोध से लगायी गयी थीं। कोर्ट ने किसान कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका सुनने से इनकार कर दिया और दूसरे पर टिप्‍पणी की।  

दिल्‍ली के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के विरोध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि जब तक इस याचिका पर सुनवाई चल रही है क्‍या तब तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को क्रियान्‍वयन से रोक सकती है।

मुख्‍य न्‍यायाधीश बोबडे ने अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा, ‘’क्‍या सरकार यह कह सकती है कि बातचीत को सहज बनाने के लिए वह कानूनों के तहत कोई कार्यकारी कदम नहीं उठाएगी?” वेणुगोपाल ने कहा कि वे सरकार से बात कर के इसका जवाब देंगे।

सुनवाई में उन आठ किसान यूनियनों के वकील नहीं आए थे जिन्‍हें प्रतिवादी के तौर पर जोड़ा गया था। केवल भारतीय किसान यूनियन भानू गुट के वकील एपी सिंह मौजूद थे। इसलिए बेंच ने याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं दिया और मामले को अगली तारीख तक टाल दिया।

कोर्ट ने अन्‍य यूनियनों को नोटिस भेजने को कहा है ताकि मामला कल के बाद या फिर अवकाश बेंच पर सूचीबद्ध किया जा सके।कल सुप्रीम कोर्ट की क्रिसमस की छुट्टियां शुरू हो रही हैं। मुख्‍य न्‍यायाधीश के मुताबिक उनकी संभावित अनुपस्थिति में इस मामले को कोई और बेंच सुनेगी।

अधिवक्‍ता हरीश साल्‍वे एक याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे थे और उन्‍होंने मांग की थी कोर्ट दिल्‍ली पुलिस और अधिकारियों को निर्देशित करे कि किसानों के बंद से दिल्‍ली का जनजीवन प्रभावित न हो। बेंच ने ऐसा कोई फैसला देने से इनकार कर दिया।

मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा, ‘’विरोध का उद्देश्‍य तभी पूरा होगा जब बातचीत हो। केवल विरोध के लिए विरोध के अलावा अगर और कोई उद्देश्‍य है तो हम उसमें मध्‍यस्‍थता कर सकते हैं।‘’

सरकार और किसानों के नुमाइंदों के बीच बातचीत को मुमकिन बनाने के लिए एक कमेटी के गठन पर बेंच ने दिलचस्‍पी दिखायी है। इस मामले पर बुधवार को भी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एक वार्ता कमेटी बनाने की बात कही थी।      

बोबडे ने कहा कि विरोध को अहिंसात्‍मक तरीके से ही जारी रहना चाहिए और पुलिस हिंसक तरीके इस्‍तेमाल नहीं कर सकती।

कृषि कानूनों को खत्‍म करने संबंधी याचिकाओं पर शुरुआत में ही बेंच ने कहा, ‘’इन कानूनों की वैधता पर आज हम फैसला नहीं करेंगे। आज हम सबसे पहले किसानों के विरोध प्रदर्शन के संबंध में नागरिकों की चुनौती पर बात करेंगे। कानूनों की वैधता का सवाल बाद में देखा जा सकता है।‘’


Live Law से साभार


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *