इंदौर: प्रलेस के स्थापना दिवस पर पॉल रॉब्सन और राहुल सांकृत्यायन को याद किया गया


इंदौर। प्रगतिशील लेखक संघ के 90 वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में सज्जाद ज़हीर और अन्य लेखकों से प्रारंभ होकर हरिशंकर परसाई तक पहुंची प्रतिबद्ध सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया। इस अवसर पर विख्यात, क्रांतिकारी नीग्रो गायक पाल राब्सन और हमारे समय के महान यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन का जन्म दिवस होने पर उन्हें याद किया गया।

प्रगतिशील लेखक संघ की पत्रिका वसुधा के 102 वें अंक पर हुई गोष्ठी को संबोधित करते हुए पत्रिका के संपादक विनीत तिवारी ने कहा कि हरिशंकर परसाई द्वारा प्रारंभ पत्रिका का वर्तमान तक की अवधि में स्तर बदला है और पाठक वर्ग भी। हम पर पठनीयता के स्तर को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। इसलिए पत्रिका में कथित मनोरंजक सामग्री नहीं दी जा सकती। यह संगठन की पत्रिका है इसकी सीमा है। विनीत ने कहा कि तकनीक ने लोगों की रुचियां को बदला है। वर्तमान का समय रील्स का है। पाठक और दर्शक न अधिक पढ़ना न देखना और नहीं सुनना चाहते हैं। हमें धारा के विरुद्ध बहना होता है। किसी भी किताब को पढ़ लेना ही काफी नहीं होता वह पाठक के अंतर मन को कितना छूती है यह जानना भी जरूरी है। प्रेमचंद हुस्न का मेयार बदलना चाहते थे। उन्होंने और निराला ने श्रम में सौंदर्य को तलाशा। वर्तमान में भूख, गरीबी सम्मानजनक जीवन जीने की आकांक्षा पर लिखने की जरूरत है। खाए- पिए, अघाए लोग शारीरिक चरम सुख की रचनाओं को ही प्रगतिशील साहित्य बता रहे हैं। हमारे शब्द अगर धमाकों, भीड़ तंत्र द्वारा मारे गए लोगों, नर्मदा बांध से उजड़े लोगों, हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी गरीबी में जीवन बिताने पर विवश लोगों की पीड़ा व्यक्त करें उन्हें जबान दे यह हमारी जिम्मेदारी है।

वसुधा 102 पर अपनी विस्तृत पाठकीय टिप्पणी में हरनाम सिंह ने पत्रिका में प्रकाशित लेखों, कविताओं, कहानियों,संस्मरण साक्षात्कार पर विचार रखें। उन्होंने गणेश देवी के लेख में संविधान के ध्वस्त होने पर “लोगों की बहरा कर देने वाली चुप्पी” को रेखांकित किया है। ऐसी ही चिंता अदनान कफ़ील दरवेश की कविताओं में भी आई है, गाजा में हो रहे जुल्म पर गोदी मीडिया को लताड़ते हुए वे कहते हैं “गाजा और दुनिया भर में क्या हो रहा है। यहां का गोदी मीडिया युद्धोउन्माद से लिथड़ा प्रोपेगंडा और अफवाहें बेचकर, आने वाले चुनाव के लिए मुस्लिम घृणा का माहौल बनाने में मशगूल हैं।”



महिलाओं की स्थिति पर तस्लीमा नसरीन से लेकर अनेक कवियत्रियों ने अपनी चिंता जाहिर की है। डॉक्टर अस्मिता सिंह का यह कथन महत्वपूर्ण है जिसमें वे कहते हैं “पूंजीवाद और पितृ सत्ता ने मिलकर उपभोक्तावाद को जन्म दिया इसका शिकार महिलाएं हो रही है। पत्रिका के अंत में प्रलेसं के प्रांतीय अध्यक्ष सेवाराम त्रिपाठी का यह कथन की सत्ता ने तरह-तरह के डर सृजित किए हैं, देश का मनोविज्ञान उन्मादी रूप से गढ़ने की कोशिश की जा रही है इसी से लेखकों को निपटना है , महत्वपूर्ण है। हरनाम सिंह के अनुसार वसुधा का यह अंक वर्तमान का दस्तावेज है। इसका आकलन आने वाले समय में भी होता रहेगा।

अभय नेमा के अनुसार मध्य प्रदेश में प्रलेसं की विरासत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य किया है गया है्। ख्वाजा अहमद अब्बास के साक्षात्कार में साहित्य और राजनीति के संबंध और साझेदारी सामने आई है।1930 में अल्पसंख्यक समाज की रशीद जहां ने प्रगतिशील विचारों के साथ संगठन स्थापित करने का काम किया। संगठन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाए जाने की जरूरत है। वसुधा के इस अंक में अधिकांश सामग्री अनुवादित है। पत्रिका में सदस्यों की भागीदारी बढ़ाए जाने की जरूरत है।
वर्षों से वसुधा की पाठक रही वयोवृद्ध दुर्गा श्रीवास्तव ने पत्रिका में कोरोना पर आधारित कविताओं, लॉकडाउन के अनुभव से खुद को जोड़ते हुए अपने विचार साझा किये । उन्हें नेहरू जी का साक्षात्कार रोचक और ज्ञानवर्धक लगा। दुर्गा जी के अनुसार पत्रिका में कविताएं अधिक है। वे महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई का समर्थन करती हैं।

सारिका श्रीवास्तव में अपने संबोधन में राहुल सांकृत्यायन को याद किया। उनके अनुसार राहुल में यात्राओं और ज्ञान के प्रति ललक अभूतपूर्व थी। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए चुन्नीलाल वाधवानी ने कहा कि कोई भी पत्रिका उसके आकार से नहीं उसमें प्रकाशित सामग्री से पहचानी जाती है। शासकीय संस्थान अपने धन बल से लेखकों को भ्रष्ट कर रहे हैं, इसे समझने की जरूरत है।

नीग्रो भाई हमारे पाल राब्सन

कार्यक्रम में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) इंदौर इकाई द्वारा महान क्रांतिकारी, सांस्कृतिक व्यक्तित्व पाल राब्सन के जन्म दिवस के उपलक्ष में नाट्य प्रस्तुति का आयोजन हुआ। कलाकारों शर्मिष्ठा बनर्जी, विनीत तिवारी, विवेक सिकरवार, उजान, रवि शंकर तिवारी, अथर्व शिंत्रे, ने पाल राबसन के जीवन परिचय के साथ उनके गीत गाए, पाल राब्सन से प्रेरित भूपेन हजारीका का गीत “ओ गंगा तू बहती क्यों है…” प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में बड़ी तादाद में प्रबुद्ध जन शामिल हुए। संचालन विवेक मेहता ने किया, आभार माना सारिका श्रीवास्तव ने।


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