“मोदीराज: नाम किसान विधेयक, फायदा पूंजीपतियों का”: कृषि कानूनों पर जनज्वार की जनता बुकलेट


देशभर के किसान नये कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले लंबे समय से राजधानी दिल्ली के बाॅर्डर्स पर आंदोलन कर रहे हैं, जिसे जनता का व्यापक समर्थन भी मिल रहा है। मगर अभी तक देश की ज्यादातर जनता को यह पता ही नहीं है कि आखिर किसानों का नये कृषि कानूनों से विरोध क्या है और इसके खिलाफ वो क्यों खड़े हैं, क्या यह सिर्फ पंजाबी किसानों का आंदोलन है।

नया कृषि कानून क्या है? इसे बहुत ही सरल भाषा में समझने-बताने के लिए ‘जनज्वार फाउंडेशन’ ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है, जो दिल्ली में हो रहे आंदोलन स्थलों पर वितरित की जा रही है। अब तक इसकी लगभग 10 हजार प्रतियां आंदोलनकारियोंऔर देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के बीच जा चुकी हैं।

जनज्वार के संवाददाताओं और साथियों ने 3 कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे व्यापक किसान आंदोलन को देश के अलग-अलग हिस्सों से कवर करते हुए महसूस किया कि सत्तापोषित मीडिया घरानों और सरकारी प्रचार तंत्र ने किसान विधेयक को लेकर अधकचरी और गलत जानकारियां बड़े स्तर पर प्रचारितण्प्रसारित कर रखी हैं। देश की आम जनता को सही तरीके से पता नहीं है कि असल में इस कानून से भविष्य में क्या दिक्कतें आने वाली हैं। ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह केवल पंजाब और पंजाबी किसानों का मुद्दा है, बाकी देश पर इन तीनों विधेयकों का कोई असर नहीं पड़ेगा।

छात्र, नौजवान या आम शहरी, नौकरीपेशा लोग तो सरकारी प्रचारतंत्र के इस कदर प्रभाव में हैं कि अतार्किक तरीके से इन कानूनों के फायदे गिनाने लगते हैं, जैसे एक समय में सत्तापोषित और सरकारी प्रचार तंत्र के बहकावे में आकर नोटबंदी के फायदे गिनाया करते थे। फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर हों या गांवों-देहातों में रहने वाली गैर किसान आबादीए उन्हें भी लगता है कि इन कानूनों से हमारा क्या नुकसान!

ऐसे में हमारी चिंता थी कि सही जानकारी देश के व्यापक हिस्से में कैसे पहुंचायी जाए। उसी मकसद से इस पुस्तिका को तैयार किया गया है। इस पुस्तिका में वह सभी जरूरी जानकारियां देने की कोशिश हुई है, जिनसे सही जानकारी आम लोगों तक पहुंचे और वह ये तय कर सकें कि असल में यह कानून कैसे खेती किसानी के नफे-नुकसान को नहीं, बल्कि पूरी संस्कृति और सभ्यता पर चोट करेगा। इस पुुस्तिका को लिखा है एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट से जुड़े सहायक प्रोफेसर डाॅ. विद्यार्थी विकास और वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय ने।

पुस्तिका तैयार करने में जनता के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार और पटियाला यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बलविंदर सिंह तिवाना का विशेष सुझाव रहा है। हमारी कोशिश होगी कि जनता से जुड़े मसलों पर जानकारीपरक पुस्तिकाएं अलग-अलग मुद्दों पर आप सबकी मदद से निकलती रहें।

जनज्वार फाउंडेशन अपने अभियानों-आयोजनों के जरिये जन-जागरुकता और जनपक्षधरता के लिए प्रतिबद्ध  है। हमारी वैचारिक पक्षधरता का आधार देश की व्यापक जनता के मुद्दे हैं, जो उसकी रोजी-रोटी, आजीविका-सम्मान और एक सक्षम नागरिक बनने से जुड़े हैं। जनज्वार की कोशिश है कि समाज और अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े विभिन्न तबकों में सकारात्मक भागीदारियों के जरिये देश के नागरिकों को हर स्तर पर जागरुक और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया जाये। आम नागरिकोें की मजबूती ही एक बराबरी और सम्मान वाले राष्ट्र की पहली पहचान है और यही पहचान देश के हर नागरिक की राष्ट्रीय उन्नति में भागीदार बनाती है।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जनज्वार फाउंडेशन डिजिटल, प्रिंट और सामूहिक आयोजनों के तरीकों को अपनाता है। हमारी कोशिश है कि अपने अभियानों और प्रयासों का लाभ देश के उस अंतिम वंचित व्यक्ति तक पहुंचाया जाये जो अभी भी हाशिये पर पड़ा हुआ है।

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About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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