इजरायली रंगभेद अफ्रीका से अधिक खतरनाक है: इरफान इंजीनियर


इंदौर: फलस्‍तीन और इजरायल दो राष्ट्रों का प्रस्ताव अब बेमानी हो गया है। फलस्तीनियों को अपना राष्ट्र वापस मिले। फलस्‍तीन में मौत से अधिक जिंदा रहना कठिन हो गया है। इजरायली सरकार फलस्तीनियों से भेदभाव करती है। ऐसा तो रंगभेदी अफ्रीका में भी नहीं होता था। सारी दुनिया में इजरायली उत्पादों का बहिष्कार हो रहा है। कोई भी जुल्म इंसानी जज्‍बे को नहीं हरा सकता। ये विचार मानव अधिकारों के प्रबल हिमायती अंतरराष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त इरफान इंजीनियर (मुंबई) ने अभिनव कला समाज सभागृह में “सब की नजर रफा पर” शीर्षक से आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।

संदर्भ केंद्र, स्टेट प्रेस क्लब, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ, शांति एवं एकजुटता संगठन के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में इरफान ने कहा कि दुनिया की बहुसंख्य जनता इजरायल के विरोध में है। अमेरिका और यूरोपीय देशों के विद्यार्थी फलस्तीनियों के संहार से आक्रोशित हैं। वे निरंतर प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में सांप्रदायिक राजनीति के चलते मानव अधिकारों के इस हनन पर सन्नाटा है। उन्होंने कहा कि कई देशों में इजरायल के उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है जिसके कारण इजरायल को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इरफान इंजीनियर

2006 में वेस्ट बैंक में अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए इरफान ने बताया कि इजरायल सरकार ने किस तरह से फलस्तीनियों को गुलाम बनाए रखा है। उनके साथ किया जा रहा पक्षपात दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद से कई गुना अधिक निर्मम है। उन्होंने बताया कि इजरायल में यहूदियों और फलस्तीनियों के लिए अलग-अलग न्याय व्यवस्था है। फलस्तीनियों के सभी मुकदमे फौजी अदालतें ही सुनती हैं और उन्हें कड़े दंड दिए जाते हैं। पानी के वितरण में भी पक्षपात किया जाता है। यहूदी होटलों को नियमित पानी उपलब्ध करवाया जाता है, जबकि फलस्तीनी होटलों को सप्ताह में एक ही दिन पानी दिया जाता है। फलस्तीनियों को यहूदी बस्तियों में आवागमन की इजाजत नहीं है। उन्हें चुनिंदा सड़कों पर ही चलने की अनुमति मिलती है। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए भी उन्हें कड़ी जांच और अनुमति की प्रक्रिया से गुजरना होता है।

फलस्तीनियों को अपनी ही जमीन पर घर बनाने की अनुमति नहीं दी जाती है। वेस्ट बैंक में खाद्यान्न, दवाइयां सरकार की अनुमति से ही पहुंचाई जा सकती है। फलस्तीनी जिल्लत भरा जीवन जीने को अभिशप्त हैं। इजरायल पूरे फलस्‍तीन पर कब्जा करने की योजना पर काम कर रहा है। वह चाहता है कि फलस्तीनी अपना देश छोड़कर सीमावर्ती देशों में चले जाएं। फलस्तीनियों के लिए जिंदा रहने का प्रयास ही अपने आप में जंग है। इरफान ने बताया कि इजरायल, फलस्तिनियों को समूल नष्ट करना चाहता है, इसलिए वह स्कूलों, अस्पतालों, राशन की कतार में खड़े बच्चों पर बम गिरा रहा है। पिछले वर्ष के अक्टूबर माह से जारी इस जंग में अब तक 37 हजार से अधिक नागरिक मारे गए हैं।

इजरायल फलस्‍तीन युद्ध 1948 से जारी है, जब यूरोपीय देशों ने इंग्लैंड के संरक्षण में इजरायल राष्ट्र की स्थापना की थी। सारी दुनिया से यहूदियों को बुलाकर फलस्‍तीन में बसाया गया और वहां के मूल निवासियों को अपना ही देश छोड़ने पर विवश किया गया।



कार्यक्रम का संचालन करते हुए विनीत तिवारी ने कहा कि युद्ध और अंतरराष्ट्रीय विवादों से देश के नागरिक भी प्रभावित होते हैं। इजरायल राष्ट्र के निर्माण का विरोध स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। दुनिया के अनेक प्रतिष्ठित यहूदी इजरायल के यहूदीवाद का विरोध कर रहे हैं। यह विडंबना ही है कि भारत सरकार इजरायल के जासूसी उपकरण पेगासस के माध्यम से अपने विरोधियों को प्रताड़ित कर रही है। इसी इजरायल की एक एजेंसी को बहुचर्चित विश्वविद्यालय जेएनयू की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत सरकार जेएनयू की बौद्धिक प्रखरता से डरी हुई है। फलस्तीनी एक ऐसा लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं जहां सभी धर्म के लोग शांतिपूर्वक रह सकें।

विनीत ने शायर साहिर लुधियानवी एवं फलस्‍तीन के महत्त्वपूर्ण लेखक घसान कनाफ़ानी की गाज़ा से चिट्ठी का अनुवाद सुनाया। कार्यक्रम के प्रारंभ में सारिका श्रीवास्तव, कोमल सिसोदिया, विवेक सिकरवार, आदित्य जायसवाल ने फलस्तीनी बच्चों की कहानियां बड़े ही भावप्रवण तरह से सुनाईं जिनका तर्जुमा मुम्बई के परख थिएटर के तरुण कुमार ने किया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एप्सो के वरिष्ठ सदस्‍य श्याम सुंदर यादव ने की। सभा में सर्वानुमति से प्रस्ताव पारित कर इजरायल द्वारा किए जा रहे नरसंहार को अविलंब रोकने, अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत के फैसलों को क्रियान्वित करने एवं फलस्तीनी लोगों को समुचित दवाओं और जीवनावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने की मांग की गई।


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