बीते 22 नवम्बर की बात है। लखनऊ में 69000 शिक्षक भर्ती में हुए आरक्षण घोटाले के ख़िलाफ़ प्रदर्शनरत अभ्यर्थियों ने विधानसभा घेराव का आह्वान किया था। सुबह 8 बजे से ही अभ्यर्थी विधानसभा पहुंचने लगे। पुलिस प्रशासन की भी तैयारियां पूरी थीं। अभ्यर्थियों के इकट्ठा होते ही पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार करके गाड़ियों में भरकर इको गार्डन भेज दिया गया।
आजकल लखनऊ में होने वाले किसी भी विरोध प्रदर्शन, धरने, मार्च आदि का एक पड़ाव इको गार्डन ज़रूर होता है क्योंकि बीते लगभग चार साल से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के भीतर कहीं भी लोकतांत्रिक विरोध ज़ाहिर करने का कोई भी स्पेस बाकी नहीं बचा है सिवाय इको गार्डन के। आप शहर में कहीं भी विरोध प्रदर्शन का आयोजन कीजिये और पुलिस प्रशासन आपको आकर बताएगा- आप ‘इको गार्डन जाकर कीजिये यह सब, आपको इसकी जानकारी नहीं है क्या कि ‘यहां धारा 144 लागू है?’
धारा 144 के दुरुपयोग में रिकॉर्ड कायम करने वाली राज्य सरकार के शासन से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है! बहरहाल, 22 नवम्बर पर लौटते हैं। इको गार्डन पहुंचने के पहले ही सभी अभ्यर्थी गाड़ी से कूद गए और इको गार्डन के गेट के बाहर ही धरने पर बैठ गए। पुलिस प्रशासन की तमाम कवायद के बाद भी कोई भी इको गार्डन के भीतर नहीं गया। थोड़ी देर धरना चलने के बाद ही प्रदेश सरकार का प्रचार वाहन वहाँ से गुज़रा। उस वाहन पर मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी की मुस्कुराती तस्वीरों को देखकर नौजवानों का पारा चढ़ गया और फौरन कई लोगों ने जूते-चप्पल उतार कर उन मुस्कुराती तस्वीरों पर बजाना शुरू कर दिया।
इस तरह की घटना रोज़गार जैसे सवाल पर आंदोलन कर रहे आंदोलनकारियों के बीच नयी थी। इसके पीछे मूल कारण वह विक्षोभ था जो कि बीते तीन महीने से अधिक से समय से आंदोलनरत नौजवानों के भीतर पनप रहा था।
69000 शिक्षक भर्ती में हुए आरक्षण घोटाले के खिलाफ प्रदर्शनरत अभ्यर्थियों का यह दावा ग़ौर करने लायक है कि अगर इस घोटाले की ढंग से जाँच हो जाए तो यह व्यापम से भी बड़ा घोटाला साबित होगा, लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार की बेशर्मी की दाद देनी होगी कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट आ जाने के बावजूद, जिसमें साफ साफ घोटाले की पोल पट्टी खोल दी गयी है, भी वे इस पर मुँह खोलने को तैयार नहीं है।
भर्ती परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर हो रही धाँधली, पेपर लीक, सामाजिक न्याय का मखौल आदि तमाम ऐसी बातें हैं जिनके ख़िलाफ़ प्रदेश भर के सरकारी नौकरी के ख़्वाब देखने वाले युवाओं में आक्रोश है। पांच वर्ष में 70 लाख रोज़गार देने के वादे के साथ सत्ता में आई भाजपा सरकार अब बेशर्मी के साथ 4 साल में 4 लाख रोज़गार देने के अपने दावे पर अपनी पीठ ठोंक रही है।
शिक्षक भर्ती के अलावा विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के अभ्यर्थियों ने कोरोना की दूसरी लहर के बाद कई बार राजधानी में बड़े बड़े प्रदर्शन किए, उन पर लाठी चार्ज हुआ, मुकदमे हुए लेकिन रोज़गार को एक मुख्य राजनीतिक सवाल के रूप में स्थापित करवा पाने में यह आंदोलन लगभग नाकाम रहे। ठोस सांगठनिक आधार की कमी भी इसका एक कारण रही।
इन कमियों-कमज़ोरियों से सीखते हुए 20 से अधिक छात्र-नौजवान संगठनों ने मिलकर जुलाई, 2021 में एक संयुक्त मंच बनाया गया था जिसका नाम है ‘छात्र युवा रोज़गार अधिकार मोर्चा’। इस मोर्चे में वामपंथी विचारधारा से जुड़े संगठनों के अतिरिक्त अन्य रोज़गार आंदोलनों के लोग तथा सभी तरह की वे ताकतें शामिल हैं जोकि वर्तमान भाजपा सरकार से रुष्ट हैं तथा रोज़गार के सवाल को आगामी विधानसभा चुनावों में एक मुख्य सवाल के बतौर स्थापित करने की इच्छा और क़ुव्वत रखती हैं।
मोर्चे का मुख्य उद्देश्य आगामी चुनावों से पहले रोज़गार को एक मुख्य राजनीतिक सवाल बनाना तथा रोज़गार के लिए लड़ रहे सभी संगठनों और लोगों को एक मंच पर लाकर सरकार पर बड़ा दबाव बनाना है। इस मोर्चे की ओर से एक प्रदेशव्यापी अभियान की शुरुआत भी अगस्त में हो चुकी है। इस अभियान को नाम दिया गया है ‘यूपी मांगे रोज़गार’।
इस मोर्चे के बैनर तले अब तक प्रदेश के विभिन्न जिलों देवरिया, चंदौली, महराजगंज, गोरखपुर, लखीमपुर, सीतापुर, बनारस, बस्ती, मऊ, ग़ाज़ीपुर, फैज़ाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, ग़ाज़ीपुर आदि जिलों में रोज़गार अधिकार सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है।
23 सितंबर को लखनऊ में हुए राजस्तरीय सम्मेलन से छात्र युवा रोज़गार अधिकार मोर्चा ने सरकार से 25 लाख रोज़गार सृजित करने मांग की तथा यह घोषणा की कि इस मांग के समर्थन में हम प्रदेश भर में 25 लाख का लक्ष्य लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे। साथ ही प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में रोज़गार अधिकार यात्राओं की भी योजना ली गयी थी। वहाँ से यह भी घोषणा हुई थी कि दिसम्बर में एक राज्य स्तरीय गोलबंदी लखनऊ में कई जाएगी।
रोज़गार अधिकार यात्रा की भी शुरुआत हो चुकी है। यह यात्रा पांच से छह चरणों में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों का दौरा करेगी तथा इस अभियान को मजबूती देगी। यात्रा का पहला चरण 23 नवम्बर को गोरखपुर से आरम्भ हुआ था। पहले चरण का समापन 28 नवम्बर को बनारस में हो गया। अब अन्य चरण भी शुरू होंगे।
इसी सिलसिले में कल गुरुवार 2 दिसम्बर को लखनऊ में विधानसभा मार्च का आयोजन भी यूपी मांगे रोज़गार अभियान की ओर से किया गया है। इस मार्च में प्रदेश भर से हज़ारों की संख्या में छात्रों-युवाओं की भागीदारी की संभावना है। 2 दिसम्बर की यह गोलबंदी विभिन्न राजनीतिक कतारों में एक व्यापक सन्देश देगी। किसान आंदोलन से प्रेरणा लेकर शुरू हुए इस धारावाहिक रोज़गार आंदोलन के भीतर प्रदेश की राजनीति के मुहावरों को बदल सकने की सम्भावनाएं छुपी हुई हैं।