प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल से ज्यादा बड़ा है पत्रकारिता के वजूद का संकट!
प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराते संकट की चर्चा तो हो रही है किंतु प्रेस के अस्तित्व पर जो संकट है उसे हम अनदेखा कर रहे हैं। अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के मुद्रण आधारित या इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति या संस्थान को प्रेस की आदर्श परिभाषा में समाहित करना घोर अनुचित है विशेषकर तब जब वह पत्रकारिता की ओट में अपने व्यावसायिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हो।
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