पंखे उतार देने से खुदकुशी नहीं टलती! असल सवाल मानसिक समस्या की स्वीकारोक्ति का है

भौतिक रूप से हमने काफ़ी तरक्की की है परन्तु वैचारिक रूप से हम अब भी यही मानते हैं कि मानसिक समस्याएं सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों की समस्याएं हैं। इसी वैचारिक ढाँचे की वजह से हम युवाओं की मानसिक समस्याओं को स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं। स्वीकारोक्ति किसी भी समस्या के समाधान की पहली सीढ़ी है।

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दक्षिणावर्त: शायद तुम्हारी उपस्थिति है वाहियात तुम्हारी अनुपस्थिति से…

होश का पैमाना किसे बनाओगे, कैसे बनाओगे और इन सबसे बढ़कर क्यों बनाओगे? क्या तुम जॉन नैश के उस होश को पैमाना बनाओगे, जिसने नोबल प्राइज जीत लेने लायक थियरी दी, लेकिन वह तो उस समय पागलपन के दौरे में था? क्या तुम गांधी के उस होश को पैमाना बनाओगे, जब देश जश्न-ए-आजादी मना रहा था और वह बूढ़ा नोआखाली घूम रहा था? तुम्हारा होश, मेरे होश का निकष क्यों हो, या वाइसे-वर्सा ही। मैं एक मनुष्य हूं, तुम एक मनुष्य तो हम-तुम एक-दूसरे को अपने हाल पर क्यों न छोड़ दें?

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दिल्ली की सीमा पर डटे आंदोलन में एक ग्रंथी ने खुद को मारी गोली, एक किसान ने पी लिया जहर

कड़ाके की ठंड और बारिश में भी किसान धरने पर बैठे रहे. इससे दुखी ग्रंथी नसीब मान ने बीस दिसंबर को गुरुद्वारे में अरदास की थी कि अगर केंद्र सरकार तीनों कृषि कानून वापस नहीं लेती तो वे शहादत दे देंगे.

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धान न खरीदे जाने से नाराज़ एक किसान ने मिर्जापुर में खाया जहर, दूसरे ने सोनभद्र में फूंक दिया धान

किसान तेजबली यादव ने आरोप लगाया, “कोऑपरेटिव के अध्यक्ष और सचिव केवल अपने चेहेते लोगों का धान खरीद रहे हैं। यहां कोई नियम कानून नहीं है। वे टोकन नंबर से किसी भी व्यक्ति का धान नहीं खरीद रहे हैं। यहां बस मनमानी कर रहे हैं।”

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किसानों का दुख देखा न गया तो बाबा राम सिंह ने मोर्चे पर ही अपनी जान दे दी

मोदी कैबिनेट की पूर्व मंत्री और अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने ट्वीट कर लिखा है कि केंद्र सरकार की जिद और किसानों की हालत को नजरअंदाज करने के कारण सिंघरा वाले बाबा राम सिंह जी ने ख़ुदकुशी कर ली।

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गाहे-बगाहे: मशीनों के आगोश में बुनकरी है, तबाही के पहलू में कारीगरी है!

लॉकडाउन ने बुनकरों को भुखमरी और मौत के कगार पर ला खड़ा किया है. काम चलने का कोई आसार नहीं है. ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली का दाम बहुत ज्यादा बढा दिया है. पहले जहाँ हज़ार-डेढ़ हज़ार रुपये बिजली का बिल आता था वहीं अब मनमाने ढंग से कहीं तीस हज़ार तो कहीं चालीस हज़ार आ रहा है. कहीं कोई सुनवाई नहीं है.

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ट्रेन से कट कर जान देने वाली आयुषी में देखिए महिला सशक्तिकरण के ‘योगी मॉडल’ का सच!

उत्तर प्रदेश में 181 रानी लक्ष्मी बाई आशा ज्योति विमेन हेल्पलाइन के उन्नाव जिले में काम करने वाली 32 वर्षीय आयुषी सिंह ने कानपुर में ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। वजह यह थी कि उसे ग्यारह महीने से वेतन नहीं मिला था और उसे नौकरी से निकालने का नोटिस 5 जून को दे दिया गया था। आयुषी की पांच साल की बेटी है और उसका विकलांग पति है।

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तन मन जन: कोविड-19 से भी बड़ी महामारी का रूप ले सकता है तनाव

कोरोना वायरस का जब कहर कम होने लगे तो हम सभी संवेदनशील चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों एवं समाजकर्मियों को लोगों के तनाव व अन्य मनोव्याधियों के उपचार में लगना चाहिए। उपचार यानि दवा ही नहीं, उनके तनाव के कारणों को दूर करना। यह चिकित्सकीय कम, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विशुद्ध राजनीतिक मामला है।

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तन मन जन: आत्महत्या दरअसल ‘सांस्थानिक हत्या’ है!

सुशान्त राजपूत या देश के किसान या विश्वविद्यालय के छात्र या कोई प्रोफेशनल- यदि आप आत्महत्या के लिए मजबूर हैं तो समझिए कि आपकी हत्या की सुपारी व्यवस्था ने पहले ही दे रखी है।

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छान घोंट के: मानसिक अवसाद के राजनैतिक मायने और कुछ सहज उपाय

अपने भीतर मित्रों के प्रति मित्रतापूर्ण संघर्ष और शत्रुओं (जो अवसाद को पैदा करने के बुनियादी कारण हैं) के खिलाफ शत्रुतापूर्ण संघर्ष को चलाये रखना सबसे ज़रूरी है

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