मानवता के जाज्वल्यमान नक्षत्र: गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर

टैगोर की विलक्षण प्रतिभा से नाटक और नृत्य नाटिकाएं भी अछूती नहीं रहीं। वह बंगला में वास्तविक लघुकथाएं लिखने वाले पहले व्यक्ति थे। अपनी इन लघुकथाओं में उन्होंने पहली बार रोजमर्रा की भाषा का इस्तेमाल किया और इस तरह साहित्य की इस विधा में औपचारिक साधु भाषा का प्रभाव कम हुआ।

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सारी विपत्तियों का आविर्भाव निरक्षरता से हुआ: ज्योतिबा फुले

उनको विश्वास था कि छोटी जातियों के लोग सामाजिक समानता के लिए अवश्य संघर्ष करेंगे। ज्योतिबा की तरह और भी वयस्क लोग थे लेकिन ज्योतिबा के पास जो साहस और संकल्प था वह और किसी के पास नहीं था। 21 वर्ष की आयु में ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र को एक नये ढंग का नेतृत्व दिया।

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‘मैं तुमसे और तुम्हीं से बात किया करता हूं’! कवि त्रिलोचन को याद करते हुए…

खुद को कितना बोलने देना है, इस मामले में असंयम बरतने वाले त्रिलोचन, कविता को कितना बोलने देना है, इस मामले में सदैव संयमी रहे। त्रिलोचन जी का वस्तुसत्य व माया और उनकी लंबी बतकही निश्चित ही उनके एक गंभीर नागरिक सोच का जीवंत प्रमाण है।

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अमृतलाल नागर: भारतीय जनजीवन के आशावान स्वप्नों के चितेरे

प्रेमचंदोत्तर हिंदी साहित्य को जिन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से संवारा है, उनमें अमृतलाल नागर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। किस्सागोई के धनी अमृतलाल नागर ने कई विधाओं …

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बनारस ने उन्हें बहिष्कृत किया, लेकिन नामवर ने अपने गुरु का वैचारिक ध्वज कभी झुकने नहीं दिया!

बनारस में बंगला नवजागरण और रवीन्द्रनाथ टैगोर की चेतना से शिक्षित-दीक्षित और संस्कारित होकर हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जब आए तब उन्हें अनेक तरह का विरोध झेलना पड़ा। इसकी झलक नामवर जी की किताब ‘दूसरी परंपरा की खोज’ और विश्वनाथ त्रिपाठी की किताब ‘व्योमकेश दरवेश’ में मिलती है। नामवर सिंह ने ऐसे में यदि द्विवेदी जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया तब यह बतलाने की जरूरत नहीं रह जाती कि उनकी विचारधारा क्या थी।

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दिलीप कुमार: मेरे जीवन भर की प्रेमासक्ति

मैंने कभी इस उम्मीद को नहीं छोड़ा कि एक दिन वो अपने घर के किसी कोने में एक दुबली-पतली शर्मीली लड़की जिसकी आँखों में उनके लिए प्यार था ज़रूर महसूस करेंगे।

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सामाजिक परिवर्तन के लिए सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत पर हमेशा जोर देते थे लालबहादुर वर्मा

जब वर्मा सर इलाहाबाद से दिल्ली आये, थोड़े समय बाद ही उन्हें डेंगू हो गया। उस समय मैं दिल्ली में उनके घर पर ही था। उन्होंने मुझे भी अस्पताल में बुला लिया मिलने पर सबसे पहला वाक्य यह कहा- यह भी एक दुनिया है।

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ग्यारह साल बाद शाहिद आज़मी की याद

सुदूर आज़मगढ़ से मुंबई पहुंचे इस युवा वकील एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता को शायद अन्दाज़ा था कि यह घड़ी कभी भी आ सकती है। इसीलिए उन्होंने पुलिस को कई बार इत्तेला दी थी कि उन्हें धमकियां मिल रही हैं। कहा जाता है कि ऐसे कुछ लोग पुलिस महकमे में भी थे, जिन्हें उनका जिन्दा रहना नागवार गुजर रहा था।

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मेरी यादों में मंगलेश: पांच दशक तक फैले स्मृतियों के कैनवास से कुछ प्रसंग

एक दिन पहले ही मैंने फोन पर किसी का इंटरव्यू किया था और फोन का रिकॉर्डर ऑन था। दो दिन बाद मैंने देखा कि मेरी और मंगलेश की बातचीत भी रिकॉर्ड हो गयी है। उसे मैंने कई बार सुना- ‘‘आनंद अभी मैं मरने वाला नहीं हूं’’ और सहेज कर रख लिया।

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बिटवीन द लाइंस: सृजन और विध्वंस के बीच एक कलाकार की याद

अकादमी परिसर के बाहर आयोजित की गयी सभा के अंत में मुख्य अतिथि जस्टिस शास्त्री ने भावुक होकर नीता जी से अपने घरेलू रिश्तों और तमाम यादगार पलों को साझा किया और इसके बाद कला दीर्घा में प्रज्वलित कर चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। खास बात यह कि गैलरी में रजनीगंधा भी था। यह फूल नीता कुमार का पसंदीदा फूल था।

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