संक्रमण काल: उत्तर-मानववाद की आहट

आज हम उत्तर सत्य और उत्तर मानववाद (Post Truth & Post Humanism) के ज़माने में हैं। समाज में जो हाशिए के लोग हैं, मेहनतक़श लोग हैं, उन्हें ख़त्म कर देने की कोशिशें हो रही हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी रणनीति को नए विचारों और सन्दर्भों में निरंतर मांजते रहें।

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दिल्ली में अबकी आ कर उन यारों को न देखा…

हिन्दी समाज न जाने क्यों आर्थिक प्रश्नों पर बिलार के सामने पड़े कबूतर की तरह आँख मूँद लेता है जबकि हिंदी पट्टी की आबादी अधिक और विकास दर कम है। यह समाज अपने दारिद्र्य को लेकर चीखता-चिल्लाता भी रहा है। आर्थिक दारिद्र्य वैचारिक रूप से भी दरिद्र बना देता है क्या?

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दक्षिणावर्त: बीजेपी आइटी सेल, नैरेटिव निर्माण और लेफ्ट का सरलीकरण

यदि भारत के सवा अरब मनुष्यों में से कोई भी अपनी आइडी से कुछ भी भाजपा के पक्ष में, वामपंथ के खिलाफ लिखता है, तो वह आइटी सेल का नहीं होता। इसी तरह भाजपा का विरोध करने वाला हरेक व्यक्ति ‘लिब्रांडू’, ‘वामी-कौमी’ या ‘सिकुलर’ नहीं होता।

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