बढ़ा है लूट का कारोबार, ऐ ज़ुल्म! आ मुझे मार : दुनु रॉय की एक कविता

ऐ ज़ुल्म मुझे मार, कई-कई बार गैस से बहा आंसू ज़ारो कतार, लहू से रंग दे अपनी तलवार चीर दे योनी फोड़ ये कपार ऐ ज़ुल्म आ मुझे मार कर …

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इतनी हवा बनाने के बाद भी वे डरे रहते थे कि किसी दिन उलटी हवा न चल पड़े…

राजेन्द्र राजन जनसत्ता दैनिक से अब अवकाश प्राप्त हैं. किशन पटनायक की समाजवादी धारासे आते हैं और बनारस की पैदाइश हैं. भागमभाग और काटमकाट वाली इस दुनिया में राजेन्द्र राजन का व्यक्तित्व और कविता दोनों ही कबीराना ठहराव और दृष्टि के साथ चुपचाप उपस्थित होते हैं और जो कहना है, कह जाते हैं.

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