इतनी हवा बनाने के बाद भी वे डरे रहते थे कि किसी दिन उलटी हवा न चल पड़े…


जिस दौर में हिंदी कविता की रेगुलर दुनिया छंद और मुक्तक की हवाई जंग में फंसी हुई है, उसी दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो चुपचाप अपने समय और सत्ता की विडम्बनाओं पर टिप्पणी कर रहे हैं. गिरोहबंदी में चौतरफा जकड़े हिंदी साहित्य जगत में ऐसे लोगों को बतौर कवि मान्यता तो दूर, इनकी कविताओं की चर्चा करना भी ज़रूरी नहीं समझा जाता गोकि ये अपने समय के सबसे सचेत और संवेदनशील कवि होंगे. इन्हीं में एक हैं राजेन्द्र राजन, जो लम्बे समय से राजनीतिक स्वर वाली कविता लिख रहे हैं. राजेन्द्र राजन जनसत्ता दैनिक से अब अवकाश प्राप्त हैं. किशन पटनायक की समाजवादी धारासे आते हैं और बनारस की पैदाइश हैं. भागमभाग और काटमकाट वाली इस दुनिया में राजेन्द्र राजन का व्यक्तित्व और कविता दोनों ही कबीराना ठहराव और दृष्टि के साथ चुपचाप उपस्थित होते हैं और जो कहना है, कह जाते हैं. जनपथ के पाठकों के लिए राजेंद्र राजन की चार ताज़ा कविताएं प्रस्तुत हैं.

संपादक
राजेंद्र राजन

सबूत

वे जो भी कहते हैं
चुपचाप मान लो
हुक्मरान सबूत नहीं देते

सबूत नागरिकों को देने पड़ते हैं
उन्हें दिखाना पड़ता है हर मौके-बेमौके प्रमाण-पत्र
नागरिक होने का, मतदाता होने का, भारतीय होने का
पते का, बैंक खाते का, कर अदायगी का
जन्म का, जाति का, शिक्षा का, गरीबी का
मकान का, दुकान का, खेत का, मजूरी का
चरित्र का, नौकरी का, सेवानिवृत्ति का
और कई बार खुद हाज़िर होकर
बताना पड़ता है कि आप खुद आप हैं
और जिंदा हैं

सबूत देते रहना
नागरिक होने की नियति है
पर हुक्मरानों की बात कुछ और है
दाल में भले कुछ काला हो
उनका एलान या बयान-भर काफी है
उस पर सवाल मत उठाओ
वरना संदिग्ध करार दिए जाओगे
तुम्हारे देशप्रेम पर शक किया जाएगा
फिर देशभक्ति का सबूत कहां से लाओगे?


हवा के खिलाड़ी

वे हवा पर सवार होकर आए थे
और इस आत्मविश्वास से भरे थे
कि जब चाहे तब
हवा पर सवार हो जाएंगे

और वे ऐसा करते भी थे
अकसर हवा पर सवार हो जाते
हवा हवाई बातें करते
और तब किसी की सुनते नहीं थे।

जो उनसे ज़मीन पर रहने की गुजारिश करते
उनकी बात
वे हवा में उड़ा देते थे।

वे हवा पर सवार होकर आए थे
और हवा का रुख पहचानते थे
हवा का रुख देखकर चलते थे
वे हवा बांधना भी जानते थे
और हवा निकालना भी
वे अपने विरोधियों की सारी हवा निकाल चुके थे
हवा के सारे खेल उन्हें आते थे
वे हवा में जहर घोलकर
लोगों के दिमाग में ऐसी हवा भर देते थे
कि मुल्क की हवा बिगड़ती जाती थी
फिर भी उनकी हवा बनी रहती थी।

इतनी हवा बनाने के बाद भी
वे डरे रहते थे
कि किसी दिन उलटी हवा न चल पड़े।

और एक दिन ऐसा ही हुआ
वे हवा हो गए।


आसान और मुश्किल

कितना आसान है
किसी और मुल्क में हो रहे
जुल्म के खिलाफ बोलना
इस पर वे भी बोलते हैं
जो अपने मुल्क में तमाम सितम
चुपचाप देखते रहते हैं
कभी मुंह नहीं खोलते।

कितना आसान है
दूसरों को उदारता का पाठ पढ़ाना
इस धर्म के कट्टरपंथी भी
करते रहते हैं
उस धर्म के
कट्टरपंथ की निंदा।

कितना आसान है
महापुरुषों की तस्वीरों और प्रतिमाओं पर
फूल चढ़ाकर
अपनी जिम्मेवारियों से बचे रहना
हमारे समय के निठल्ले और कायर भी
गाते हैं पुरखों की वीरता के गीत
सुनाते हैं क्रांतिकारियों के किस्से।

कितना आसान है
अतीत के अत्याचारों से लड़ना
हमारे समय के अत्याचारी भी
करते हैं अतीत के अत्याचारों की चर्चा।

कितना मुश्किल है
अपने गिरेबां में झांकना
खुद को कसौटी पर कसना।


सरकार की चिट्ठी

कल तक उसके पास कुछ भी नहीं था
न हाथ में
न जेब में
न थाली में।

आज उसकी अंजुरी भी भरी है
जेब भी
थाली भी।

अंजुरी में
सुंदर-सुंदर शब्द हैं
जेब में भी
थाली में भी।

सरकार ने
जनता के नाम जो चिट्ठी लिखी थी
वह उसे भी मिली है।


कवर तस्वीर अल्जीरियन बैंड तिनारिवेन के नान्नुफ्ले शीर्षक वाले गीत में दर्शाए गए एनीमेशन का एक शॉट है


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