महामारी से बचने के लिए वैश्विक संधि को मुनाफ़ाख़ोरों से कैसे बचाएं?

यदि प्रभावकारी वैश्विक संधि बनानी है जिससे कि महामारी प्रबंधन कुशलता से हो और आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न ही न हो, तो इस पूरी प्रक्रिया में मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले और मुनाफ़ाख़ोरी में लिप्त कम्पनी और व्यक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक लगाना ज़रूरी है। पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व ने ज़ोर दिया है कि इस संधि प्रक्रिया में सभी की ‘भागीदारी’ हो जो मुनाफ़ाख़ोरी करने वालों के लिए खुला निमंत्रण है।

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तन मन जन: बदलते भू-उपयोग और जीवों से हमारे रिश्ते में छुपा है महामारियों का भविष्य

नये अध्ययन में पश्चिमी यूरोप से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक के देशों को शामिल किया गया। अध्ययन बताता है कि जहां-जहां जमीन के उपयोग का तरीका बदल रहा है और हॉर्स शू चमगादड़ों की प्रजातियां मौजूद हैं वहां से और भी खतरनाक प्रकार के कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की पूरी आशंका है।

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छान घोंट के: 60 फीसदी मौतों के पीछे छुपी दूसरी महामारी NCD पर बात करने का यही सही वक्त है!

देश में एफओपीएल विनियमन लाने का इससे बेहतर समय कोई नहीं होगा जब कोविड महामारी ने बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य के सार्वजनिक बहस के केंद्र स्तर पर ला दिया है, साथ ही हर भारतीय की कल्पना को पकड़ लिया है। बच्चों और युवा आबादी में बढ़ते मोटापे और एनसीडी के उच्च प्रसार को देश दूसरी महामारी के रूप में देख रहा है।

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मिलायी की पर्ची के इंतज़ार में साल भर से खामोश कैदियों के लॉकडाउन पर कब बात होगी?

क्या हम जेल बन्दियों के अधिकारों को जानते-समझते हुए भी खामोश रहें? हम इसलिए न बोलें कि कि हमें जेलों में ठूंस दिया जाएगा? जेल बंदियों की मिलायी पर जब पूरी तरह रोक लगी हुई है, इन परिस्थितियों में उनकी जो बुनियादी ज़रूरतें हैं इस पर ध्यान दिया जाना आज फौरी ज़रूरत है।

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सात साल में भाजपा देवकान्त बरुआ के लाखों-करोड़ों क्लोन वाली इंदिरा काँग्रेस बन गयी है!

मोदी ने भाजपा को 1975 से 1984 के बीच की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बदल दिया है जिसमें देवकांत बरुआ जैसे चारणों ने इंडिया को इंदिरा और इंदिरा को इंडिया बना दिया था। पिछले सात साल में भाजपा में बरुआ के लाखों-करोड़ों क्लोन खड़े कर दिए गए हैं।

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असली देशभक्ति क्या है? महामारी के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद की याद

स्वामी जी द्वारा तय किये गये देशभक्ति के पैमाने पर उन पर दावे करने वाली और उनके नाम की माला जपने वाली संस्थाएं कहां खड़ी नजर आती हैं?

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महामारी के बीच सम्पन्न हुए चुनाव, लेकिन चुनाव आयोग और न्यायपालिका की भूमिका पर बात बाकी है!

जिस तरह से मद्रास हाईकोर्ट द्वारा चुनाव आयोग पर की गई तल्ख टिप्पणियों को मीडिया में स्थान मिला है और जनता के एक बड़े वर्ग द्वारा इनका स्वागत किया गया है इससे यह स्पष्ट होता है कि आम जनमानस भी कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रसार के लिए चुनाव आयोग के अनुत्तरदायित्वपूर्ण आचरण को उत्तरदायी समझता है।

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बेकाबू हो चुकी महामारी और मिस्टर मोदी: भारत पर The Guardian का संपादकीय

भारत एक ऐसा विशाल, जटिल और विविध देश है जिसे सबसे शांत दौर में भी चला पाना मुश्किल होता है, फिर राष्‍ट्रीय आपदा की तो क्‍या ही बात हो। आज यह देश कोरोना वायरस और भय की दोहरी महामारी से जूझ रहा है।

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विफल राज्य, मजदूरों के पलायन और तबाही के बीच 150 साल के लेनिन को याद करने के संदर्भ

लेनिन को याद करने का अर्थ सिर्फ मजदूर क्रांति के सपने को साकार करना नहीं है। अपने समाज को समझने का रास्ता भी है। राज्य की प्रकृति समझना है तो लेनिन को जरूर पढ़िए।

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क्या महामारी की आड़ में भारत के ‘कम जनतंत्र’ की ओर उन्मुख होने के रास्ते को सुगम किया जा रहा है?

क्या एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने में उनकी कथित भूमिका को लेकर तथा उनके हाशियाकरण को लेकर कभी हुक्मरानों को या उनसे संबंधित तंजीमों को कभी जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा? क्या वह अपने इन कारनामों को लेकर कभी जनता से माफी मांगेंगे?

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