बेकाबू हो चुकी महामारी और मिस्टर मोदी: भारत पर The Guardian का संपादकीय

भारत एक ऐसा विशाल, जटिल और विविध देश है जिसे सबसे शांत दौर में भी चला पाना मुश्किल होता है, फिर राष्‍ट्रीय आपदा की तो क्‍या ही बात हो। आज यह देश कोरोना वायरस और भय की दोहरी महामारी से जूझ रहा है।

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यह विस्तीर्ण श्मशान है मेरा देश! क्यों?

क्या इतनी मौतें सच में बही-खाते में लिखी थीं? क्या ये मौतें पहले से तय थीं (थोड़ा भाग्यवादी होने की छूट लेते हुए)? एकदम से नहीं. जान बूझ कर मौत-मौत का तांडव और भयानक खेल चल रहा है. कौन रच रहा है ये मौत का खेल?

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विफल नेतृत्व की गलतियों का असर कम करने के लिए कब तक त्याग करती रहेगी जनता?

प्रधानमंत्री जी ने इस भीषण संकट काल में भी अपने मन की बात ही की। हो सकता है कि उनके काल्पनिक भारत की आभासी जनता को उनका यह एकालाप रुचिकर लगा होगा, लेकिन मरते हुए रोगियों और उनके हताश परिजनों के लिए तो यह एक क्रूर परिहास जैसा ही था।

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तन मन जन: कोरोना की दूसरी लहर का कहर और आगे का रास्ता

यदि वैक्सीन लगाने की रफ्तार नहीं बढ़ाई गई तो 70 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाने में दो साल से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अब तक लगभग 30 करोड़ लोग कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अभी 100 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं और उन्हें बचाना सबसे बड़ी चुनौती है।

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बात बोलेगी: वबा के साथ बहुत कुछ आता है और जाता भी है!

महामारी की पैदाइश से लेकर आज की विभीषिका के इतिहास को जब लिखा जाएगा तो उनका भी नाम यहां आना चाहिए जो इसे लेकर आलोचनात्मक और तार्किक नज़रिये से बात करते आए। तब भी उन्हें संख्या बल के सामने हुज्जत झेलनी पड़ी, लेकिन गत एक सप्ताह के दौरान हम देख रहे हैं कि उन्हें लगभग बेइज्जती नसीब हो रही है।

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तन मन जन: लाकडाउन का एक साल और निराशा के कगार पर खड़ी 130 करोड़ की आबादी

स्कूल बंद हैं। यातायात बाधित है। व्यापार लगभग ठप है। युवा तनाव में है। लोगों के आपसी रिश्ते दरक रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की निरंकुशता ज्यादा देखी जा रही है। लोगों की ऐसी अनेक आशंकाओं को यदि ठीक से सम्बोधित नहीं किया गया तो 130 करोड़ की आबादी में जो निराशा फैलेगी उसका इलाज इतना आसान नहीं होगा।

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तन मन जन: कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन या मौत से डराने का नया धंधा?

कोरोना वायरस के संक्रमण का डर जब भी कम होने लगता है तभी कोई न कोई तकनीकी डर खड़ा कर लोगों को दहशत में डाल दिया जाता है। यह अध्ययन का विषय है कि वायरस वास्तव में खतरनाक है या इसके डर को खतरनाक बना कर पेश किया जा रहा है।

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