हम ‘दिवस’ मना रहे हैं, हमारे शिक्षक मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं, ठेला लगा रहे हैं!

सरकारी और बड़े गैर-सरकारी स्कूलों के शिक्षक और छात्र दोनों डिजिटल हो चले थे, लेकिन छोटे गैर-सरकारी स्कूल और कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले शिक्षक की वैसी किस्मत नहीं थी। राज्य सरकारें स्कूल खोलने का आदेश दे चुकी हैं पर कोरोना की मार ने कई स्कूलों को हमेशा के लिए बंद कर दिया है। इसके साथ ही लाखों शिक्षक बेरोजगार हो चुके हैं। आप यकीन नहीं करेंगे कि खुद को और परिवार को जिंदा रखने के लिए वे कितनी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

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दो दूनी चार, 1600 से ज़्यादा की क़तार: मारे गए शिक्षकों के नाम बच्चों का एक सबक!

हर बार जब वह गिनती में लगे होते, तो खोई हुई आत्माओं की इस अंतहीन सूची में कुछ और नाम जुड़ चुके होते. उन्होंने सोचा कि अगर वह इन भटकती आत्माओं को पाताललोक में अपने ऑफ़िस के बाहर क़तार में खड़ा कर दें, तो यह लाइन सीधा प्रयागराज तक पहुंच जाती.

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कोरोना से मृत 1621 शिक्षकों के परिवारों को एक करोड़ मुआवजा और नौकरी दे सरकार: शाहनवाज़

अल्पसंख्यक कांग्रेस के ज़िला, शहर और प्रदेश पदाधिकारियों ने चुनाव ड्यूटी के दौरान कोरोना से संक्रमित हो कर मरे 1621 शिक्षकों और कर्मचारियों को एक करोड़ मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की माँग उठायी है.

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ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि लाशों के ढेर पर सम्पन्न कराया गया यूपी का पंचायत चुनाव?

वहां किसी तरह की कोई सोशल डीस्टेंसिंग नहीं थी, बहुत सारे लोग वहां बिना मास्क के घूम रहे थे, सामग्री वितरण, हस्ताक्षर करते समय लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़ जा रहे थे। मैं क्या कोई भी चाह कर भी किसी तरह की सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रख सकता था। यहीं से मुझे कोरोना से मरने वाले शिक्षकों के कारण नजर आने लगे।

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क्या कोविड-19 का अंतराल अध्यापकों के लिए नया अंधेरा लेकर आया है?

चुनाव में तैनात शिक्षकों के प्रशिक्षण से लेकर चुनाव किस तरह संपन्न कराए गए, अगर किसी ने इन्हें देखा होता तो वह बता सकता है कि राज्य चुनाव आयोग के अधिकारियों ने इन चुनावों के दौरान कितनी लापरवाही एवं बेरुखी का परिचय दिया।

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