पंचतत्व: ये बनारस में गंगा पर जमी काई है या नदियों के प्रति हमारी सामाजिक चेतना का अक्स?

आपको याद होगा जब पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था तब महामारी की पहली लहर के दौरान गंगा का पानी साफ हो गया था। कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगों ने तब बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे थे। हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं।

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जिन्हें दफना दिया गया, वे कौन से हिन्दू थे?

राम की विशालता और करूणा को इससे समझा जा सकता है कि राम ने एक गिद्ध को भी पिता का दर्जा दिया लेकिन बेहिसाब संपत्ति के मालिक मंदिर और मठों में बैठे धर्माधिकारी अपने ही धर्मावलम्बि‍यों के मरने और फिर उन्हें दफनाते हुए देखकर भी बहरे और अंधे बने रहे।

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दक्षिणावर्त: क़त्ल पर जिन को एतराज़ न था, दफ़्न होने को क्यूं नहीं तैयार…

दरक चुके अपने समाज की आलोचना हम कब करेंगे? अपने सामाजिक-सांस्‍कृतिक दायित्व का बोध हमारे भीतर कब होगा और हम संविधान में वर्णित अधिकारों को रटने के साथ सामाजिक ‘कर्त्तव्यों’ को भी कब जानेंगे?

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गंगा में बहते शवों को नोचती मछलियों और कुत्तों ने बजाया निषादों के लिए खतरे का अलार्म!

लाशों के मिलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। उन शहरों में खौफ और हड़कंप ज्यादा है जहां से होकर गंगा गुजरती है। अधिसंख्य लाशें कोरोना संक्रमितों की हैं जिन्हें लाचारी के चलते नदियों में बहा दिया गया था, अब इन्‍हें नदी के अंदर मांसाहारी मछलियां और किनारे पर आवारा कुत्ते नोच खा रहे हैं। इससे नदी किनारे रहने वाले और उसी से अपनी आजीविका चलाने वाले समुदायों पर स्‍वास्‍थ्‍य का गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

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पंचतत्व: गंगा मैया की सवारी को मारने का दोष पूरे समाज के सिर पर है

उनके गांव कोई पोस्टर थोड़े ही लगा था कि यह जीव लुप्तप्राय है और इसको न मारें… और क्या गंगा की डॉल्फिन पर आपने उनकी किताबों में कुछ पढ़ाया था?

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पंचतत्व: गंगाजल को गया तक ले जाना बिहार सरकार का विकट दृष्टिदोष है

खुद गंगा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. अगर गर्मियों में उससे 50 एमसीएम पानी निकाल लिया जाएगा तो खुद इसके परितंत्र पर क्या असर पड़ेगा, इसका क्या कोई अध्ययन बिहार सरकार ने कराया है?

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