भारतीय आधुनिकता, स्वधर्म और लोक-संस्कृति के एक राजनीतिक मुहावरे की तलाश

इस कड़वे सच को स्वीकार करना होगा कि पिछले 25-30 साल की हार, खासतौर से राम जन्मभूमि के आंदोलन के बाद की हार, सिर्फ चुनाव की हार नहीं है, सत्ता की हार नहीं है, बल्कि संस्कृति की हार है। हम अपनी सांस्कृतिक राजनीति की कमजोरियों की वजह से हारे हैं।

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चौरी चौरा के सरकारी पुनर्पाठ के ज़रिये गांधी और उनकी अहिंसा को खारिज करने की कवायदें

प्रधानमंत्री जी का यह भाषण और इस भाषण के बाद बुद्धिजीवी वर्ग में व्याप्त चुप्पी दोनों ही चिंताजनक हैं। हिंसा का आश्रय तो हम पहले से ही लेने लगे थे किंतु क्या अब यह स्थिति भी आ गई है कि हम सार्वजनिक रूप से अहिंसा को खारिज कर गौरवान्वित अनुभव करने लगेंगे? क्या प्रधानमंत्री आंदोलनरत किसानों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे चौरी चौरा की घटना को अपना रोल मॉडल मानें?

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गाहे-बगाहे: या इलाही ये मुहल्ला क्या है!

उत्तर भारत का यह खास धार्मिक परिदृश्य है और हजारों की संख्या में ऐसे ही मंदिरों से ऐसे ही भजन प्रतिदिन छह-आठ घंटे बजाये जाते हैं। जबरन। और कोई भी ऐतराज करे तो दंगा करने के लिए तैयार बैठे धर्मप्राण।

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क्‍या आपको ख़बर है कि गरीबों के हक़ के लिए चार माह से एक सत्‍याग्रह चल रहा है?

अफ़सोस इस बात का है कि 5 जून से शुरू हुए इस सत्‍याग्रह में सौ से ज्‍यादा लोग गांधीजी के भारत की वापसी की भावना लिए उपवास पर बैठ चुके हैं लेकिन मीडिया से लेकर दूसरे मंचों पर कहीं कोई चर्चा नहीं है।

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भारत छोड़ो आंदोलन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सैद्धांतिक असहमतियाँ क्या थीं?

सावरकर गांधी जी की अहिंसक रणनीति से इस हद तक असहमत थे कि गांधी जी की आलोचना करते करते कई बार वे अमर्यादित लगने वाली भाषा का प्रयोग करने लगते थे। सावरकर की पुस्तक गांधी गोंधल पूर्ण रूप से गांधी की कटु आलोचना को समर्पित है।

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आदर्शों का लोप: राष्‍ट्रीय आंदोलन के दौरान भारत के भविष्‍य की परिकल्‍पना: संदर्भ नेहरू और गांधी

एक औद्योगीकृत देश के रूप में भारत के संवैधानिक उभार व विकास की अंग्रणी राष्‍ट्रवादियों द्वारा सराहना को गांधीजी पूर्णत: खारिज करते थे। उनका उद्घोष था कि ”बिना अंग्रेज़ों के अंग्रेज़ी शासन” की कोई जगह ही नहीं थी।

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गांधी की धरती पर सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी और गांधी के विचारों का विस्मरण

जिस समय गांधी के विचारों को जमीन पर सबसे ज्यादा उतारे जाने की जरूरत थी ठीक उसी समय सरकार ने गांधी के विचारों का दिखावा करना भी बंद कर दिया

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बनारस में कचौड़ी-जलेबी और मुंबई में ‘गांधी कथा’ के बहाने इरफ़ान की याद

अंत में इस समझ को लेकर कि हमें गांधी की ओर लौटना होगा, हमने इरफ़ान से जल्द मिलने के वादे के साथ विदा ली। मुझे क्या पता था कि ये अंतिम विदाई साबित होगी।

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