सावित्री बाई फुले को सिर्फ अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में देखने की जरूरत है

सावित्री बाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है। सावित्री बाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं।

Read More

मराठी साहित्य में दलित अस्मिता के प्रकाश-स्तंभ

जब बाबूराव बागुल की आत्मकथा सबसे पहले उनकी मातृभाषा मराठी में प्रकाशित हुई थी तो उसने मराठी साहित्य और समाज को झकझोर दिया था। भारतीय समाज में जाति पर आधारित दमन और अपमान की साहसभरी कथा कहने कहने वाली यह पुस्तक अब एक क्लासिक मानी जाती है और दलित साहित्य में मील का पत्थर।

Read More

जब राजभवन भी झोपड़ी बन जाए: दलित साहित्य के एक संरक्षक राजनेता माता प्रसाद का जीवन

उन्हें बड़े पदों पर होने और रहने का गुमान भी नहीं था। माता प्रसाद के जीवन में जो भी था, उसमें व्यक्तिगत कुछ था ही नहीं। जो भी था वह पूरे समुदाय के लिए सार्वजनिक था।

Read More