तन मन जन: इम्यूनिटी क्या वैक्सीन से ही आएगी?

वैक्सीन का इन्तजार कर रहे लोगों को भी मेरा यही संदेश है कि इम्यूनिटी का वैक्सीन डोज यदि सुरक्षित है तो जरूर लीजिए लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि आप प्राकृतिक इम्यूनिटी के लिए प्राकृतिक जीवन शैली में लौटिए। आपकी टिकाऊ इम्यूनिटी प्रकृति ही दे सकती है। इसलिए प्रकृति को बचाइए ताकि आप भी बच सकें।

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तन मन जन: कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन या मौत से डराने का नया धंधा?

कोरोना वायरस के संक्रमण का डर जब भी कम होने लगता है तभी कोई न कोई तकनीकी डर खड़ा कर लोगों को दहशत में डाल दिया जाता है। यह अध्ययन का विषय है कि वायरस वास्तव में खतरनाक है या इसके डर को खतरनाक बना कर पेश किया जा रहा है।

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क्या महामारी की आड़ में भारत के ‘कम जनतंत्र’ की ओर उन्मुख होने के रास्ते को सुगम किया जा रहा है?

क्या एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने में उनकी कथित भूमिका को लेकर तथा उनके हाशियाकरण को लेकर कभी हुक्मरानों को या उनसे संबंधित तंजीमों को कभी जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा? क्या वह अपने इन कारनामों को लेकर कभी जनता से माफी मांगेंगे?

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हम कितने स्वस्थ हैं, यह अंततः राजनीति से तय होता है: डॉ. बाम

कोविड-19 महामारी ने एक और बड़ी सीख यह दी है कि वैश्विक विज्ञान और स्वास्थ्य नीति जितनी ज़रूरी हैं, उतना ही अहम है स्थानीय नेतृत्व जो वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नीतियों को प्रभावकारी कार्यक्रम में परिवर्तित कर सके और जन स्वास्थ्य परिणामों में बदल सके।

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COVID-19 लॉकडाउन के कारण 2020 में कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन में 7% की रिकॉर्ड कमी

एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर पियरे फ्राइडलिंगस्टीन ने कहा -“हालांकि वैश्विक उत्सर्जन पिछले साल इतना अधिक नहीं था पर अभी भी लगभग 39 बिलियन टन CO2 की मात्रा में है ।जबकि वातावरण में CO2 में और वृद्धि हुई है वायुमंडल में CO2 स्तर और परिणाम स्वरूप विश्व की जलवायु केवल तभी स्थिर होगी जब वैश्विक CO2 उत्सर्जन जीरो के आस पास होगा।

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बात बोलेगी: अब मामला उघाड़ने और मनवाने से नाथ घालने तक आ चुका है!

रिलायंस जियो के बहिष्कार के बाद शायद निकट इतिहास में यह पहला मौका है जब अंबानीज़ इस तरह बौखलाए हुए हैं, हालांकि यह बौखलाहट अच्छी है। सर्फ एक्सल कहता है कि दाग बुरे नहीं हैं। कोरोना की तरह किसान आंदोलन को इस ‘उजागर करो अभियान’ का भरपूर श्रेय दिया जाना चाहिए।

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तन मन जन: क्या आपको लगता है कि वैक्सीन लगाते ही ‘कोरोना प्रूफ’ हो जाएंगे? आप गलतफहमी में हैं!

जिसे भी देखिए वह थोड़े लापरवाह स्थिति में वैक्सीन के नाम से ही आश्वस्त है कि, ‘‘अब डर काहे का, वैक्सीन तो आ ही रही है।’’ ऐसा कहते चक्‍त यह भी जानिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन वैक्सीन को लेकर क्या कह रहा है। संगठन के हेल्थ इमरजेन्सी डायरेक्टर माइकल रेयान का वक्तव्य तो डराने वाला है। वे कहते हैं कि ‘‘हो सकता है हमें वायरस के साथ ही जीना पड़े।’’

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बात बोलेगी: मास्क लगाएं, हाथ धोएं, देह दूरी बनाए रखें, वैक्सीन का इंतज़ार करें, और क्या?

उन्होंने एक शानदार घटिया किस्म की सड़कछाप शायरी से अपनी बात शुरू की और कहा- ‘आपदा के गहरे समंदर से निकलकर हम किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसा न हो जाए कि हमारी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था। हमें वैसी स्थिति नहीं आने देनी है’।

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तन मन जन: COVID-19 पर संसदीय समिति की रिपोर्ट सरकार की नाकामी पर एक गंभीर टिप्पणी है

कोविड-19 के संदर्भ में सरकार की कार्यप्रणाली पर किसी संसदीय समिति की यह पहली रिपोर्ट है। देश में 138 करोड़ आबादी की स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च को बहुत कम बताते हुए संसदीय समिति ने कहा है कि देश की जर्जर स्वास्थ्य सुविधाएं कोविड-19 महामारी से निबटने में सबसे बड़ी बाधा है।

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COVID-19 से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए जलवायु को खतरे में डाल रहे हैं G-20 के देश

कोविड से पहले जहाँ दुनिया भर में पर्यावरण अनुकूल नीतिगत फैसलों के नतीजे दिखना शुरू ही हुए थे, वहीँ कोविड की आर्थिक मार से उबरने के नाम पर दुनिया की कुछ चुनिन्दा अर्थव्‍यवस्‍थाएं अब जीवाश्‍म ईंधन से जुड़े उद्योगों पर अच्छा ख़ासा निवेश कर रही हैं। इससे न सिर्फ़ पिछले फैसलों के नतीजों पर पानी फिर रहा है, बल्कि अगले दस सालों में रिन्यूएबिल ऊर्जा अपनाने के रास्ते पर ख़ासी रुकावटें भी पैदा होंगी।

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