तन मन जन: इम्यूनिटी क्या वैक्सीन से ही आएगी?


इम्यूनिटी यानि शरीर की प्रतिरक्षा। कोविड-19 के दौर में इस शब्द की इतनी ज्यादा अहमियत है कि हर व्यक्ति अपने शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने के बारे में सोच रहा है। लगभग हर चिकित्सा प्रणाली का एक दावा यह भी है कि उसकी दवा या उत्पाद से लोगों की इम्यूनिटी बढ़ती है। यह निर्विवाद सत्य है कि विगत एक वर्ष में कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर जिन्दा बच गए तीन करोड़ से ज्यादा लोगों में उनके शरीर की इम्यूनिटी की अहम भूमिका है। जून के महीने में ही मैंने ‘‘जनपथ’’ के अपने इसी कॉलम में इम्युनिटी पर एक आलेख लिखा था लेकिन उसमें जिस सन्दर्भ और तथ्यों का उपयोग किया गया था, यह लेख उससे अलग है। मेरी कोशिश है कि इम्यूनिटी के तकनीकी पक्ष पर इस लेख में चर्चा करूं ताकि आप इम्यूनिटी के नाम पर विभिन्न दवा कम्पनियों या बाजारु चिकित्सकों द्वारा ठगे जाने से बच सकें।

यहां हम समझने की कोशिश करते हैं कि इम्यूनिटी आखिर है क्या? इम्यूनिटी या प्रतिरक्षा दरअसल किसी भी जीव के भीतर होने वाली एक जैविक प्रक्रिया है जो शरीर के अन्दर प्रवेश करने वाले रोगकारी तत्वों को पहचान कर उसे नष्ट कर सके और शरीर को किसी भी संक्रमण से बचा सकें। हमारे शरीर की यह व्यवस्था सूक्ष्मजीवों से लेकर बड़े कीटों तक को पहचान कर उससे शरीर को बचाने में सक्षम होती है।

कोरोनाकाल में जब चिकित्सकों, वैज्ञानिकों को इस वायरस के संक्रमण के बारे में अपुष्ट जानकारी थी और इसके उपचार की स्पष्टता नहीं थी तब चिकित्सकों ने व्यक्तियों को शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने पर जोर देने का सुझाव दिया था। यदि आपको याद हो तो जुलाई 2020 में कई बहुराष्ट्रीय फार्मा व न्यूट्री कम्पनियों ने आकर्षक विज्ञापनों के सहारे अपने उत्पादों को बाजार में लांच किया था जिसमें दावा था कि उनके उत्पादों के सेवन से लोगों के शरीर की इम्यूनिटी बढ़ेगी और वायरस के संक्रमण से बचने में मदद मिलगी। ‘‘इमामी एग्रोटेक’’ नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने एक इम्यूनिटी बढ़ाने वाला खाद्य तेल लांच किया था। उसके विज्ञापन का टैग लाइन था, ‘‘अब बनेगा हर निवाला – इम्यूनिटी वाला।’’ कम्पनी का दावा था कि उसके तेल में कई विटामिन्स जैसे विटामिन ए, सी, डी, ई. के साथ साथ ओमेगा-3 मौजूद है जो शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक हैं।

अगस्त 2020 के अन्तिम सप्ताह में भारत सरकार के केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने कम कीमत पर प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत इम्यूनिटी बढ़ाने वाले कोई आठ उत्पादों को बाजार में उतारा था। इसमें कई तरह के विटामिन्स व माइक्रोन्यूटिएंट्स युक्त उत्पाद थे। देश भर में जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से इसे बेचा और बांटा भी गया था। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने तो अपने उत्पाद साबुनों में ‘‘इम्यूनिटी बढ़ाने’’ की क्षमता को प्रचारित किया, हालांकि भारत के दवा नियंत्रक महानिदेशक ने एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी ‘‘युनिलीवर’’ को फटकार भी लगायी थी क्योंकि कम्पनी अपने ‘‘साबुन’’ को ‘‘त्वचा के इम्यूनिटी का उत्पाद’’ बता रही थी। इस दौरान इम्यून बूस्टर के नाम पर सैकड़ों उत्पादों ने बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

व्यापारिक दृष्टि से देखें तो इम्यून बूस्टर का वैश्विक बाजार लगभग 25 अरब डॉलर का है। बाजार में इम्यून बूस्टर के नाम पर दवाएं विटामिन्स, आयुर्वेदिक, यूनानी दवाएं, शर्बत, अवलेह आदि अब भी भरे पड़े हैं। विगत वर्ष 2020 में कई बड़ी-छोटी कम्पनियों ने लोगों के शरीर के इम्यूनिटी बढ़ाने के दवाओं के दावे किये लेकिन कई वैज्ञानिक इसे गलत बताते हैं। बंगलुरु के इन्डीयन इन्स्टीच्यूट ऑफ साइन्स के प्रोफेसर व वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं कि दवा, कैप्सूल या गोलियां खाने तथा सीरप पीने से शरीर में इम्युनिटी बढ़ सकती है। पूने स्थित इंडीयन इन्स्टीच्यूट ऑफ साइन्स एजुकेशन एण्ड रिसर्च के वैज्ञानिकों ने भी कहा है कि किसी भी एक तत्व को इम्यूनिटी नहीं कहा जा सकता। यह कल्पना भी मुश्किल है कि इम्यूनिटी को बढ़ाया जा सकता है? बंगलुरु के सेन्टर फॉर इंफेक्शि‍यस डिजीज रिसर्च के वैज्ञानिक भी कहते हैं कि इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तत्व ज्यादा से ज्यादा आपके शरीर को थोड़ी स्फूर्ति प्रदान कर सकते हैं। सन् 1908 में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रो. इल्या इब्यीज मेचनिकोव तथा पॉल एर्लिच को दिया गया था। इन लोगों ने मनुष्य के शरीर के इम्यून रेस्पान्स को समझने की काफी हद तक कोशिश की थी।

हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम शरीर के अन्दर ‘‘अपने’’ और ‘‘पराए’’ को पहचानने की क्षमता रखता है। किसी सूक्ष्मजीव की वजह से शरीर में संक्रमण के कारण उत्पन्न परिस्थिति से शरीर को बचाने की जिम्मेवारी भी इम्यून सिस्टम की ही होती है। इस काम के लिए शरीर की कोशिका, ऊतक, विभिन्न अंग आदि शरीर के अन्दर मौजूद प्रोटीन पर निर्भर करते हैं। इस प्रोटीन की मदद से ही हमारा इम्यून सिस्टम लगातार सक्रिय रहता है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में शरीर की इम्यूनिटी या तो जन्मजात होती है या शरीर द्वारा विकसित की जाती है। इसे एक्वायर्ड इम्यूनिटी कहते हैं। जन्मजात इम्यूनिटी ही शरीर में आने वाले सूक्ष्मजीवी खतरे से बचाव की पहली सुरक्षा प्रणाली है। यह व्यवस्था हमारे शरीर के त्वचा, श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र, मुंह, आंख, नाक की श्लेष्मा, रक्त कोशिकाओं आदि में स्वाभाविक रूप से मौजूद होती है। इसके साथ-साथ हमारे शरीर की श्वेत रक्त कोशिकाएं (डब्लूबीसी) भी सुरक्षा गार्ड की तरह किसी भी संक्रमण से शरीर को बचाने के लिए तैयार रहती हैं। ये लगातार क्रियाशील रहते हैं तथा बाहरी एन्टीजन की तलाश करते रहते हैं।

हमारी इम्यून प्रणाली में ऐसी कोशिकाएं भी होती हैं जो बैक्टीरिया या वायरस को खा जाती हैं। इन्हें फैगोसाइट्स भी कहते हैं। आक्रमणकारी सूक्ष्म जीवों की पहचान सुनिश्चित होने पर ये फैगोसाइस कोशिकाएं उन्हें नष्ट कर देती हैं। हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम और रोगाणुओं के बीच का यह युद्ध हमारे शरीर में बुखार उत्पन्न कर सकता है। आपने महसूस किया होगा कि ऐसे सभी संक्रमण में बुखार एक अहम लक्षण है। हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम अपने विशेष कोशिकाओं ‘‘बी एवं टी’’ कोशिका की मदद से शरीर का बचाव करता है। इसी प्रक्रिया में ये बी कोशिकाएं विशिष्ट इम्युनोग्लोबुत्पिन (आईजी) या एन्टीबाडी का निर्माण करती हैं। यही एन्टीबाडी रोगाणुओं के एन्टीजन के साथ मिलकर उसे नष्ट कर देती हैं और हमारा शरीर संक्रमण से बच जाता है।

इस इम्यूनिटी को थोड़ा और समझते हैं। इससे आपको चिकित्सा एवं विज्ञान की शब्दावलियों से आगे कोई दवा या वैक्सीन कम्पनी भरमा नहीं पाएगी। हमारे शरीर पर जब रोगाणुओं का आक्रमण होता है तब उससे जूझने के लिए ‘‘टी’’ कोशिकाएं कारगर होती हैं। इन ‘‘टी’’ कोशिकाओं को साइटोटॉक्सिक टी लिम्फोलाइट्स (सी ढी-8 एवं टी सेल्स) के नाम से जाना जाता है। कुछ ‘‘बी’’ और ‘‘टी’’ कोशिकाओं में ऐसी स्मृति विकसित हो जाती है जो ताउम्र व्यक्ति में बनी रहती है और भविष्य में ऐसे किसी भी संक्रमण से शरीर बचा रहता है। यही इम्यूनिटी की खासियत है। आईजीजी जैसे एन्टीबाडीज़ जब हमारे शरीर में रक्त में अच्छी पहचान वाले हो जाते हैं तब शरीर रोगों के संक्रमण से सुरक्षित रहता है। ऐसा इसलिए भी होता है कि यह एन्टीबाडीज संक्रमण खत्म हो जाने के बाद भी महीनों तक शरीर में बने रहते हैं। सामान्य रूप से हमारे शरीर में प्रतिरोधक तंत्र की सारी कोशिकाएं पाई जाती हैं। किसी भी संक्रमण की अवस्था में इन कोशिकाओं का कार्यात्मक विकास हो जाता है। टीकाकरण के माध्यम से भी यही प्रक्रिया होती है और यदि सही टीकाकरण हो गया तथा हमारा शरीर उक्त संक्रामक रोग से बचा रह सकता है।

अब कोविड-19 संक्रमण के सन्दर्भ में आप अपनी इम्यूनिटी को समझने का प्रयास करें। आपने सुना होगा कि कई शहरों में कोरोना संक्रमण के दौरान सरकार ने ‘‘सीरो सर्वेक्षण’’ के सहारे महामारी को समझने का प्रयास किया है। दिल्ली में सीरो सर्वेक्षण के सहारक यह पता लगाया गया कि यहां की कितनी आबादी कोरोना से संक्रमित हुई। इसमें किसी इलाके में रहने वाले कई लोगों के खून के सीरम की जांच कर यह पता लगाया जाता है कि लोगों ने शरीर में वायरस से लड़ने वाले एन्टीबॉडी मौजूद हैं या नहीं? इस प्रक्रिया से यह पता लग जाता है कि कितने लोग वायरस के संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं? इस सीरो सर्वेक्षण से महामारी के इम्यूनिटी संक्रमण का भी पता लगाया जाता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिल्ली सरकार ने सितम्बर 2020 में सीरो सर्वेक्षण कराया था तब कोई 29 फीसद लोगों में एन्टीबाडी पाई गई थी। दिल्ली सरकार के सीरो सर्वे रिपोर्ट में यह भी देखा गया था कि औसत से सामान्य या कम आय वर्ग के लोगों में ज्यादा एन्टीबाडी मिले थे। जाहिर है कि इम्युनिटी एक प्राकृतिक व्यवस्था है जो प्रकृति द्वारा लोगों में विकसित होती है और प्रवृत्ति इसमें अमीर-गरीब का फर्क नहीं देखती, उल्टे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों का ज्यादा ध्यान रखती है।

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कोरोना वायरस संक्रमण ने इम्यूनिटी के महत्व को इतना बढ़ा दिया है कि जिसे भी देखिए इम्यूनिटी की ही बात करता मिल जाएगा। इसके पहले भी कई वायरल संक्रमण हुए हैं लेकिन इम्यूनिटी की जितनी चर्चा कोरोना काल में ही रही है उतनी पहले नहीं हुई। कोरोना संक्रमण में यह देखा गया है कि संक्रमित व्यक्तियों में सार्स सीओबी-2 से सम्बन्धित टी कोशिका के प्रभाव हल्के कोविड-19 के लक्षण वाले लोगों में भी मौजूद हैं। ऐसा सीरो नेगेटिव लोगों में भी देखा गया। विज्ञान की जानी-मानी पत्रिका ‘‘नेचर रिव्यू इम्यूनोलाजी’’ में प्रकाशित एक शोध लेख में भी जिक्र है कि ज्यादातर कोविड-19 के रोगियों में सीडी 8 तथा सीडी 4 एवं टी कोशिकाओं का स्तर बढ़ा हुआ था, हालांकि यह अपवाद ही माना जाएगा क्योंकि सामान्यतया ऐसा नहीं होता। कोविड-19 के कई मामलों में यह देखा गया है कि संक्रमण के बाद टी कोशिकाएं कमजोर पड़ जाती हैं और जो टी कोशिकाएं ठीकठाक बच भी गईं तो वे अपनी पूरी क्षमता में काम नहीं कर पातीं। शायद इसी वजह से कोरोना संक्रमण से गुजर चुके लोगों में अधिकांश लोग दो तीन महीने बाद ही फेफड़े के संक्रमण की शिकायत कर रहे हैं। काफी लोगों में श्वास सम्बन्धी दीर्घकालीन परेशनी देखी जा रही है।

कोविड-19 के उपचार के नाम पर दवा की जगह चिकित्सक लोगों से उनकी इम्यूनिटी बढ़ाने की बात करते हैं क्योंकि अभी भी वायरसों के शरीर पर प्रभाव का अध्ययन दुनिया भर में बहुत पुख्ता नहीं है। कई अध्ययनों में कोविड-19 के संक्रमण के अलग अलग लोगों में अलग अलग प्रभाव देखे गए हैं। अफ्रीकी लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण का उतना बुरा असर नहीं दिखा शायद इसलिए कि वहां के लोग सूक्ष्मजीवों के सम्पर्क में ज्यादा रहते हैं। नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों का संक्रमण से बावस्ता होना भी शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि भारतीय लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य देशों के लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा है। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के इम्यूनोजेनेटिक्स एण्ड ट्रान्सप्लान्टेशन लेबोरेटरी के निदेशक राजलिंगम राजा के अनुसार क्षय रोग, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और अन्य कई रोगों से लड़ते रहने के कारण भारतीय लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। गर्म मौसम और मसालेदार शाकाहारी भोजन का भी यहां के लोगों के शरीर की बेहतर इम्यूनिटी में बड़ा योगदान है।

जीव विज्ञान में एक शब्द है ‘‘हाइजीन हाइपोथीसिस’’। इसका मानना है कि रोगाणुओं से शुरूआती और लम्बा सम्पर्क प्रतिरोधी (इम्यून) कोशिकाओं को जागृत करता है और एक सशक्त इम्यून रेस्पान्स देता है। यही सम्भावित संक्रमण से मुकाबला करता है। यह प्रमाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता कि असल जीवन में कुछ व्यक्तियों का इम्यून रेस्पांस अन्य व्यक्तियों की तुलना में सशक्त क्यों है? दुनिया भर में इस पर शोध जारी है और यह कहा जा सकता है कि लोगों की अनुवांशिक बनावट, जीवनशैली अथवा उनके परिवेश पर उनकी इम्यूनिटी निर्भर करती है। इम्यूनिटी पर सामान्य रूप से जितनी भी चर्चा करें वह वैज्ञानिकों द्वारा पूरी तरह मान्य नहीं होगी फिर भी आम लोगों के लिए हिन्दी भाषा में इम्यूनिटी की इस चर्चा का मैं यही महत्व समझता हूं कि प्रकृति के प्राणी (केवल मनुष्य ही नहीं) अपने इम्यूनिटी के सहारे ही लम्बे समय तक सुरक्षित जीवित रहते हैं। इम्यूनिटी की बुनियादी समझ हमें यही बताती है कि प्राकृतिक तरीके से हासिल इम्यूनिटी ज्यादा टिकाऊ है और इसके लिए शरीर का प्रकृति के सम्पर्क के ज्यादा से ज्यादा रहना आवश्यक है।

कोविड-19 के इस संक्रामक दौर का सही सबक हम याद रखें तो भविष्य के ऐसे संक्रमणों से हम शरीर को बचा सकते हैं। वैक्सीन का इन्तजार कर रहे लोगों को भी मेरा यही संदेश है कि इम्यूनिटी का वैक्सीन डोज यदि सुरक्षित है तो जरूर लीजिए लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि आप प्राकृतिक इम्यूनिटी के लिए प्राकृतिक जीवन शैली में लौटिए। आपकी टिकाऊ इम्यूनिटी प्रकृति ही दे सकती है। इसलिए प्रकृति को बचाइए ताकि आप भी बच सकें।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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