बात बोलेगी: मास्क लगाएं, हाथ धोएं, देह दूरी बनाए रखें, वैक्सीन का इंतज़ार करें, और क्या?


अपने जैसे और भी होंगे ज़रूर इस एक सौ तीस करोड़ की आबादी में जो मास्क लगाने, हाथ धोते रहने और आपस में दूरी बरतते हुए कोरोना पर नकेल कसने के अभ्यस्त  हो चुके हैं; और जिन्हें लग रहा था  था कि आज कुछ ऐसा तूफानी होगा कि मतलब तमाम एहतियातों का एक ‘सुपर एहतियात’ निर्मित होगा; और ये उम्मीद बेसलेस तो थी नहीं! आखिर एक संप्रभु राष्ट्र के प्रधानमंत्री, नौ पूर्ण और एक अर्ध–पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री सघन विमर्श करने बैठे थे!

कोरोना की दूसरी लहर के मारे लोग हालांकि इस बात से खुद को तसल्ली देते रहते हैं कि अब भी आधिकारिक रूप से ‘सामुदायिक संक्रमण’ के चरण की घोषणा नहीं हुई है। अब लहर का क्या है? वो तो आती है, चली जाती है। अगर सामुदायिक संक्रमण हो जाता, तब वाकई मुश्किल होती।

बहरहाल, इस बैठक की समस्त कार्यवाहियां तो बाहर नहीं आयीं, हालांकि लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने उन तस्वीरों को ट्वीट किया जो उन्होंने अपने सहयोगियों से तब खिंचवायी होंगी जब ज़ूम या एनआइसी के किसी पोर्टल पर उनकी मीटिंग प्रधानमंत्री से हो रही थी। यह भी क्या कम तसल्ली की बात है कि राज्यों के मुख्यमंत्री कोरोना पर प्रधानमंत्री से विमर्श कर रहे हैं? कल जिस तरह से हिंदुस्तान कोरोना के मामले में एक संघीय गणराज्य के रूप में दिखा, वह इधर के दिनों में दुर्लभ जैसा हो गया था। आखिर शुरू में पढ़े-लिक्खों को इसी बात पर एतराज़ हुआ जा रहा था कि प्रधानमंत्री अकेले सब किये जा रहे हैं और इसमें राज्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए। तो कल की बैठक में यह भी हो गया! बड़ा ही मनोरम दृश्य था…

बैठक में जो बातें हुईं होंगी और कतिपय कारणों से बाहर नहीं आ पायीं, उनका विवरण यहां प्रदान किया जा रहा है।

सबसे पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कोरोना के कारण राज्य व्यवस्था के संचालन में कई तरह के व्यवधान पैदा हो रहे हैं। आपकी मीडिया बार-बार भयदोहन करने लगती है, मजबूरन हमें भी सख्ती से कदम उठाने पड़ते हैं। इससे सारा ध्यान फिर कोरोना की तरफ चला जाता है। जैसे तैसे हम बोधघाट परियोजना, राम पथगमन जैसी मिथ्या परियोजनाओं को ट्रैक पर लाते हैं, कि फिर हमें कोरोना में लग जाना पड़ता है।

इसी बीच प्रधानमंत्री जी ने उनसे पूछा– आप उन कदमों के बारे में बताइए जो आपने उठाये हैं और आप जिन्हें कहते हैं कि सख्त हैं?

जी! एक छोटा सा विराम लेकर मुख्यमंत्री जी बोलते हैं- हमने राज्य की राजधानी यानी रायपुर शहर में प्रवेश लेने वाले हर व्यक्ति की रैपिड टेस्टिंग अनिवार्य कर दी है। शादी या सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या घटायी है और कुछ विशेष जगहों पर जहां परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय जन सुनवाइयां होनी हैं वहां धारा 144 लगा दी है। फिर हम आजकल नेशनल मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं ताकि उनकी खबर आपकी मीडिया तक पहुँचे और हमें कम से कम पैनिक किया जाय।

प्रधानमंत्री जी ने एक हल्की सी स्मित के साथ उनसे पूछा– क्या यही सख्त कदम हैं? खैर, आपने ये कदम उठाते वक़्त जनता से राय तो नहीं ली? इस पर मुख्यमंत्री जी ने भी हल्की स्मित से उनकी तरफ से देखा।

अब बारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की थी। उन्होंने भी यही रोना रोया कि कोरोना की वजह से वे राजकाज की ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं। आखिर जनता ने हमें राज चलाने को चुना था, कोरोना से दो-चार होने को तो नहीं न? बीच में किसी ने टोका- शायद विपक्षी दल के किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री ने- कि तब कोरोना था ही नहीं, तो जनता आपको कोरोना से दो-चार होने के लिए क्यों चुनती? इस पर एक कुटिल मुस्कान उभरी, लेकिन गला साफ करके फिर से बोलने के क्रम में किसी ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया।

उन्होंने आगे कहा कि इस वक़्त हम लव-जिहाद से निपटें या नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन कर चुके लोगों के घरों की कुर्की कराएं? उस पर से हमारे प्रदेश का हाइकोर्ट नाक में दम किये हुए है। उन्होंने प्रधानमंत्री की तरफ कातर दृष्टि से देखा, जैसे कह रहे हों कि बदली करवा दीजिए न… इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की! प्रधानमंत्री ने हालांकि देखकर भी उन्हें अनदेखा कर दिया। बाकी दलों के मुख्यमंत्री भी वहीं जो थे! खैर…

उन्होंने आगे बताया कि वो भी सख्त कदम उठाने जा रहे हैं- जैसे मरते हुए व्यक्ति का ही कोरोना टेस्ट होगा। अगर मर गया तो कोरोना के खाते में जाएगा और 23 करोड़ की आबादी में हर रोज़ उतने तो मर ही जाते हैं जितने पूरे देश में कोरोना से नहीं मरते। आपकी मीडिया को मस्त मसाला मिलेगा और इसी बीच हम वक़्त निकालकर लव जिहाद करने वालों को राम नाम सत्य की यात्रा पर भी भेजते रहेंगे। जुर्माने के मामले में तो खैर आप जानते ही हैं- हमारे यहां ज़ीरो टॉलरेंस है। जब से एनकाउंटर को अपने प्रदेश में लाये हैं तब से लोग एडवांस जुर्माना भरने के अभ्यस्त हो चुके हैं। उसकी परवाह हमें नहीं है, बल्कि कोरोना को एक राजस्व मॉडल की तरह स्थापित करने वाला पहला राज्य हम बनेंगे। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त मुस्कान से काम लिया।

गुजरात के मुख्यमंत्री ने अपने से ऊंचे सिंहासन पर रखी खड़ाऊं की तरफ देखा और हाथ जोड़ते हुए उसे ही संबोधित किया- इस राज्य के बारे में आप को मैं क्या ही बतला सकता हूं? बाबा जानें मन की बात!! जप नाम करके वो अपनी वाणी को विराम दे ही रहे थे कि प्रधानमंत्री जी ने पूछा- अरे, वो नाइट कर्फ़्यू का क्या हुआ? काम ठीक चल रहा है न? उसके जवाब में गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा- जी, अब तक मुख्य शहरों में 5जी के टावर लग चुके हैं। अब यही मॉडल हम गांवों में भी ले जाएंगे। काफी सफल प्रयोग रहा। छिटपुट चर्चा हुई लोगों में, लेकिन आप तो जानते ही हैं हम गुजरात वालों के संस्कार- यहां तो दस दिनों तक  दिनदहाड़े तांडव मचा दीजिए पर मजाल कि कहीं उफ़्फ़ तक हो जाए!

अब बारी पंजाब की थी। पंजाब ने सारी बात किसान आंदोलन पर रख दी- कोरोना से पहले किसान नये क़ानूनों से दो-चार होने का मन बना चुके हैं और राज्य सरकार किसानों के साथ है। पहले वहां से एक मंत्री आपकी कैबिनेट में थीं तो पंजाब की अवाम को भी लगता था कि कोई तो है जो उनकी बात आप तक लाएंगी पर शायद उनके ऐसा करने पर भी आपने नहीं सुनी और वो वापिस पंजाब आ गयीं। उसके बाद किसानों का भरोसा कोरोना के साथ केंद्र सरकार से भी उठ गया। अब हमारे लिए उनके हक-अधिकार इसलिए ज़रूरी हैं कि जब लोग होंगे तब कोरोना होगा, जब कोरोना होगा तब उससे निपटेंगे। खैर, जैसा सभी ने अलग-अलग उपाय और सख्त कदमों के बारे में बताया है, हम भी कोशिश करेंगे सीखने की। एक बात उन्होंने और कही कि अगर आप वाकई पंजाब को लेकर गंभीर हैं तो ज़रा राष्ट्रपति से कहिए न… एक बार मुलाक़ात का समय दे दें। कम से कम पंजाब के किसान थोड़ा शांत हो जाएंगे। प्रधानमंत्री ने बाद के कहे पर थोड़ा ध्यानाकर्षण दिया।

अब बहुप्रतीक्षित पश्चिम बंगाल की बारी थी। लेकिन ये क्या? उन्होंने तो कोरोना के बजाय जीएसटी की बात छेड़ दी। केंद्र पर तोहमतें पैजार कर दीं। उनका तर्क बहुत सिम्‍पल था कि जो भी काम कोरोना के लिए करना है वो फ्री में तो होगा नहीं और एक बड़ा राज्य चलाने के खर्चे भी बहुत हैं। ठीक है कि लोग सादगी पसंद हैं, फिर भी जो सालाना बजट है उसे तो खर्च करना ही है ज्यों का त्यों। कोरोना तो अतिरिक्त खर्च है। इसके लिए पीएम केयर्स से कुछ मिलता नहीं। जो सहयोग हमें लोगों से अपने राज्य के लिए मिल सकता था वो आपने अपने ट्रस्ट में ले लिया है। तो बताइए, जब पैसा ही नहीं तो योजनाएं कैसे बनाएं? सख्त कदम उठाने से क्या होगा? उसके लिए भी तो पैसा लगता है। जिसके पास मास्क खरीदने का पैसा नहीं है उस पर जुर्माना लगाने से भी क्या होगा? उल्टा उसको मास्क देना चाहिए ताकि वह कोरोना की चेन को तोड़ सके। अंतिम बात उन्होंने कही कि सबसे पहले केंद्र हमें हमारा जीएसटी लौटाए, फिर हम सोचेंगे कि कोरोना का क्या करना है। उनकी बात खत्म होने पर प्रधानमंत्री ने नहीं, बल्कि गृह मंत्री ने अपनी दोनों भृकुटियां खींचकर हलचल पैदा करते हुए उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया।

दिल्ली जैसे अर्धसामंती, पूर्ण पूंजीवादी और प्रशासनिक दृष्टि से अर्धकेंद्रीय राज्य के मुख्यमंत्री ने सबसे पहले तो शिकायत की- आपकी ही तर्ज़ पर हमने इस बार दीवाली-पूजन किया। उसे शानदार जश्न बनाया। दिल्ली के लोगों से अपील की कि अगर फ्री का पानी, फ्री की बिजली ली है तो हमारे साथ शाम के सात बजकर चालीस मिनट पर पूजा करना। इससे दिल्ली के चारों तरफ तरंगें उत्पन्न होंगीं और कोरोना भाग जाएगा। कुछ लोगों ने ऐसा किया। कुछ ने नहीं किया। हमारी सरकार पता कर रही है कितने घरों में सात बजकर चालीस मिनट पर पूजा हुई। खैर, तो भी दिल्ली में कोरोना कोरोना का हौवा आपकी मीडिया ने मचा ही दिया। जब तक हम फिर कोरोना पर फोकस करते, तब तक हमें मीडिया से ही पता चला कि दिल्ली में आइसीयू बेड्स नहीं हैं। हमने पता किया तो काफी खाली थे, लेकिन आपने ही कह दिया कि अब फालतू बयानबाज़ी न करो। एक मीटिंग करके कुछ बोला जाएगा। फिर माननीय गृहमंत्री ने एक मीटिंग की और केवल इतना कहा कि ‘हमें कोरोना से सख्ती से निपटना है’। मीटिंग खत्म करके जैसे ही बाहर निकले, आपकी पार्टी ने बड़े-बड़े बैनर लटका दिये चौराहों पर कि कोरोना से लड़ाई में केजरीवाल फेल और अमित शाह ने कमान संभाली।

अब बताइए, इस मीटिंग से पहले ही मास्क न पहनने पर हम 2000 का जुर्माना लगा चुके थे। सरहदों पर टेस्टिंग की व्यवस्था भी कर चुके थे। प्रदूषण को हमने रेड लाइट की तकनीकी से लगभग आधा कर ही दिया था। अब क्या और किया जा सकता था? अब लोग हम पर फिर भी हंस रहे हैं कि अंतत: गृहमंत्री ही दिल्ली संभालेंगे! आप तो वैसे भी सँभाल ही रहे हैं। दिल्ली हिंसा के मामले में फर्जी मुकद्दमों और गिरफ्तारियों ने वैसे भी अलग पार्टी होने का भ्रम तोड़ ही दिया है। अब जितनी इज्ज़त बची है, कम से कम वो तो बचे रहने दीजिए।

इसी तरह बाकी मुख्यमंत्रियों ने भी कुछ न कुछ बोला। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का ज़िक्र इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि तकनीकी खराबी से उनकी आवाज़ स्पष्ट नहीं थी। शेष मुख्यमंत्रियों ने बहुत कुछ उल्लेखनीय नहीं कहा और दोहराव ही ज़्यादा था।

अब बारी प्रधानमंत्री की थी जिन्होंने बताया कि इस बैठक का क्या निष्कर्ष बाहर जाना चाहिए। उन्होंने एक शानदार घटिया किस्म की सड़कछाप शायरी से अपनी बात शुरू की और कहा- ‘आपदा के गहरे समंदर से निकलकर हम किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसा न हो जाए कि हमारी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था। हमें वैसी स्थिति नहीं आने देनी है’।

फिर उन्होंने कुछ लक्ष्य दिए- कोरोना से मृत्यु दर अब 1 प्रतिशत से कम बतायी जानी चाहिए। वैक्सीन के वितरण को लेकर हम लगातार मंथन कर रहे हैं, लेकिन वैक्सीन कब और कैसे आएगी, कितनी डोज़ लगेगी कोई नहीं जानता। अगर कोरोना वैक्सीन आ भी गयी तो उसकी कीमत क्या होगी और अगर उसके साइड एफेक्ट हुए तो राज्यों के पास क्या तैयारियां होंगी, क्योंकि फिर केंद्र कुछ नहीं करेगा। इसलिए कोरोना वैक्सीन को लेकर हेडलाइन प्रबंधन तो किया जा सकता है पर राज्यों पर ज़िम्मेदारी डाली जाएगी। अब सोच लो!

एक तरह से यह चेतावनी ही थी। फिर उन्होंने यह भी कहा कि हम सब एक उपमहाद्वीप का हिस्सा हैं जिसमें एक सरकार है जिसमें हम हैं और जिसकी प्रत्यक्ष कोई जनता नहीं है। जिस जनता ने हमें यहां पहुंचाया है वो अंतत: किसी न किसी राज्य में रहती है। लिहाजा मौलिक ज़िम्मेदारी राज्य की है कि वो कैसे अपनी जनता को समझाये कि अब से मास्क, देह की दूरी, हाथ धोने के साथ-साथ कोरोना वैक्सीन का इंतज़ार करने से कोरोना से बचा जा सकता है। बाकी तो सब राज्य अपने-अपने मुताबिक राजस्व जुटाने के लिए स्वतंत्र हैं ही!

मीटिंग यहीं समाप्त हो गयी।



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