तन मन जन: कोरोना वायरस के इर्द-गिर्द गहराते घरेलू और वैश्विक विवाद
डॉ. ए. के. अरुण का साप्ताहिक कॉलम
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डॉ. ए. के. अरुण का साप्ताहिक कॉलम
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डिस्चार्ज पॉलिसी के नये नियमों के बाद कोरोना के मरीजों की रिकवरी रेट अचानक से बिना किसी इलाज के बढ़ गयी है
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जिस समय गांधी के विचारों को जमीन पर सबसे ज्यादा उतारे जाने की जरूरत थी ठीक उसी समय सरकार ने गांधी के विचारों का दिखावा करना भी बंद कर दिया
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कोरोना त्रासदी हमें याद दिलाती हैं कि कई लोगों का जीवन हमारे मुकाबले कितना मुश्किल है और एक इंसान के रूप में हमारे क्या कर्तव्य हैं
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परिवर्तन यदि समाज के लाभ के लिए हो रहा है तो उसे न स्वीकारना, समाज के विकास में बाधक बनना है
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शेफाली शर्मा की एक कविता
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जितने भी सुविधा के साधन हमने ईजाद किए हैं इस दौरान वे सभी फेल हो गए हैं। पैसे से लेकर मशीनरी तक।
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जब हरेक राज्य का मुख्यमंत्री दावा कर रहा है कि उसने हालात को बिल्कुल संभाल लिया है, तो स्थिति इतनी बेकाबू क्यों है
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जब महामारी से बचाव के उपाय किये जाने थे तब मध्य प्रदेश में सरकार गिराने और बचाने का खेल खेला जा रहा था
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जो दूसरों की नागरिकता के संदिग्ध होने की संभावना और उससे उनके च्युत कर दिए जाने की आशंका पर त्योहार मनाने की सोच रहे थे क्या वे अपने घरों को लौटते इन हजारों-लाखों सड़क पर रेंगते, घिसटते, भूखे प्यासे मजदूरों को इस देश का नागरिक मानते हैं या नहीं?
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