लोकतंत्र की अंतिम क्रिया अभी बाकी है!

हम सभी एक सामूहिक, राष्ट्रव्यापी मदहोशी के शिकार हो गए थे. किस चीज़ का नशा कर रहे थे हम? हम तक एनसीबी का परवाना क्यों नहीं पहुंचा? सिर्फ बॉलीवुड के लोगों को ही क्यों बुलाया जा रहा है? कानून की नज़र में हम सभी बराबर हैं कि नहीं?

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गाहे-बगाहे: सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत…

एक बार भी उनके मुंह से बकार नहीं फूटी कि फैसला गलत हुआ है; कि हमने तो धर्म के लिए जोखिम लिया लेकिन यहां तो उस जोखिम और साहस की बेइज्जती हुई जा रही है। एक बार भी किसी ने एक शब्द नहीं कहा कि फैसला गलत हुआ था क्योंकि हमने धर्म के लिए जो राह चुनी थी वह सुनियोजित थी और भारतीय लोकतन्त्र में उसके लिए जो सजा मुकर्रर है उससे वे बरी नहीं होना चाहते।

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हाथरस कांड और बाबरी विध्वंस का फैसला: विभिन्न दलों और संगठनों के निंदा बयान

हाथरस में एक महिला के साथ हुए गैंग रेप के बाद उसकी मौत और आनन-फानन में पुलिस द्वारा उसकी अन्त्येष्टि की घटना तथा सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बाबरी विध्वंस के केस में भाजपा के नेताओं को बरी किए जाने पर कई संगठनों ने अपना बयान जारी किया है। ये बयान एक-एक कर के नीचे पढे जा सकते हैं।

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बात बोलेगी: भारतेन्दु की बकरी से बाबरी की मौत तक गहराता न्याय-प्रक्रिया का अंधेरा

‘गिल्ट बाइ एसोसिएशन’ जैसे आज के दौर की एक मुख्य बात हो गयी है। दिल्ली में हुई हिंसा हो या भीमा कोरेगांव की हिंसा, दोनों में न्याय प्रक्रिया उसी प्रविधि का इस्तेमाल कर रही है जो उस राज्य में प्रचलित थी, जिसकी कहानी हमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सुनायी थी।

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बाबरी मस्जिद गिराने की योजना नहीं थी, अचानक गिरी, सारे आरोपित नेता बरी: CBI कोर्ट

जज एसके यादव ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि आरोपितों के खिलाफ़ पर्याप्‍त साक्ष्‍य नहीं हैं। इस तरह राम जन्‍मभूमि के मामले में सौ साल पुराना दीवानी मुकदमा और बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के मामले में 28 साल पुराना फौजदारी मुकदमा हमेशा के लिए समाप्‍त हो गया है।

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