हाथरस कांड और बाबरी विध्वंस का फैसला: विभिन्न दलों और संगठनों के निंदा बयान


हाथरस में एक महिला के साथ हुए गैंग रेप के बाद उसकी मौत और आनन-फानन में पुलिस द्वारा उसकी अन्त्येष्टि की घटना तथा सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बाबरी विध्वंस के केस में भाजपा के नेताओं को बरी किए जाने पर कई संगठनों ने अपना बयान जारी किया है। ये बयान एक-एक कर के नीचे पढे जा सकते हैं।

हाथरस में दलित बेटी की चिता और बाबरी मस्जिद विध्वंस का फैसला यानी इंसाफ की विदाई- रिहाई मंच

रिहाई मंच ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में हाई कोर्ट द्वारा साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों के बरी किए जाने के फैसले पर कहा कि यह मात्र निर्णय है, न्याय नहीं. मंच ने हाथरस में हुए दलित लड़की के सामूहिक बलात्कार मामले में प्रदेश सरकार की आपराधिक भूमिका पर सवाल उठाते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दृश्य को हजारों-लाखों लोगों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देश-विदेश में देखा था. इसके बावजूद देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई करीब 28 साल बाद भी उस आपराधिक कृत्य के दोषियों की पहचान कर पाने में असमर्थ रही. उसने बेशर्मी के साथ अदालत को अपने निष्कर्ष से अवगत कराया और पूरी तत्परता से हाईकोर्ट ने उसे स्वीकार कर देश के न्यायिक इतिहास में एक और काला पन्ना जोड़ दिया. यह पहला अवसर नहीं है जब इस तरह का निर्णय आया है. इससे पहले बथानी टोला जन संहार समेत कई दूसरे मामलों में साक्ष्यों का अभाव कहकर अपराधियों को बरी किया जा चुका है. इससे यह भी जाहिर होता है कि बहुमत की सरकारों में जांच एजेंसियां न्याय के वृक्ष की जड़ में मट्ठा कैसे डालती हैं.

मंच महासचिव ने कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद के मृतप्राय जिन्न को कांग्रेस की प्रचंड बहुमत की सरकार के कार्यकाल में बोतल से बाहर निकाला गया था. आज प्रचंड बहुमत की दूसरी सरकार में उसकी अन्त्योष्ठि कर दी गई. उन्होंने कहा कि यह नहीं भूला जा सकता कि विध्वंस के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में भाजपा का शासन था. केंद्र सरकार द्वारा भूमि को अधिगृहित कर लेने के बावजूद बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ दी थी बहरहाल आज के फैसले से दोनों गुनहगार तत्कालीन सरकारें बरी हो गईं.

राजीव यादव ने कहा कि हाथरस की बेटी की मौत के लिए उत्तर प्रदेश सरकार जिम्मेदार है. 14 सितंबर को हाथरस में सामूहिक बलात्कार के बाद पीड़िता के साथ प्रशासनिक स्तर पर जिस प्रकार व्यवहार किया गया वह निंदनीय ही नहीं बल्कि आपराधिक भी है. पीड़िता बुरी तरह घायल थीं इसके बावजूद उन्हें हाथरस और अलीगढ़ के अस्पतालों के भरोसे छोड़ दिया गया. उन्हें दिल्ली तब भेजा गया जब वह अंतिम स्थिति में पहुंच गईं थीं. पुलिस ने जिस तरह से अंतिम संस्कार किया वह अपराध है. पुलिस ने अपराधियों को बचाने का हर सम्भव प्रयास किया इसीलिए वो शुरू से इसे छेड़खानी की घटना कहती रही.

सीबीआई विशेष कोर्ट के बाबरी मस्जिद से सम्बंधित निर्णय पर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट का वक्तव्य

आज सीबीआई विशेष कोर्ट का बाबरी मस्जिद से सम्बंधित जो निर्णय आया है, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ़) की नजर में वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, जनतंत्रीय लोकतंत्र के लिए एक और धक्का और फासीवादी ताकतों का मनोबल बढाने वाला साबित होगा.

ज्ञातव्य है कि मस्जिद गिराए जाने के पूर्व ही रथ यात्रा निकाल कर संघ/भाजपा परिवार ने बेहद साम्प्रदायिक माहौल बनाया था. देश भर में यह लगने लगा था कि इस बार संघ से सम्बंधित गिरोह के लोग बाबरी मस्जिद को गिरा देंगे और इसको गिराने में उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार पूरी तौर पर मददगार होगी. यहाँ यह भी दर्ज करने लायक है कि आईपीएफ़, सीपीएम, सीपीआई, और वी. पी. सिंह की अगुवाई वाले जनता दल ने दिसंबर, 1992 के प्रथम सप्ताह में लखनऊ में बैठक करके उत्तर प्रदेश सरकार को लिखा था कि बाबरी मस्जिद गिरा देने की पूरी साजिश उत्तर प्रदेश सरकार के सक्रिय सहयोग से चल रही है और यदि उचित सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की गयी तो निश्चय ही बाबरी म्सिजद गिरा दी जाएगी.

इसी अनुक्रम में 5 दिसंबर,1992 को सभी लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष और वाम ताकतों से अपील की गयी थी कि वे लखनऊ पहुंचें और 5 दिसंबर को चारबाग से अयोध्या कूच करें जिससे कि शांति और सम्प्रदायिक सद्भाव वाला वातावरण बनाया जाए और कथित कारसेवकों के हमले से बाबरी मसिजद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा हो सके. तय कार्यक्रम के अनुसार चारबाग से अयोध्या के लिए मार्च किया गया. कल्याण सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, आईपीएफ राष्ट्रीय महासचिव अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, सीपीआई नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री चतुरानन मिश्र, सीपीएम राष्ट्रीय नेता प्रकाश करात सहित सैंकड़ों नेता और कार्यकर्ताओं को बाराबंकी राम स्नेही घाट पर गिरफ्तार कर लिया था. यह भी बता दें कि बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के हज़ारों लोगों के जत्थे ने चारबाग स्टेशन पर जमे आईपीएफ कार्यकर्ताओं के ऊपर हिंसक हमला किया था जिसे कार्यकर्ताओं ने बड़ी दिलेरी और सूझबूझ से विफल कर दिया था. तात्पर्य यह है कि बाबरी मस्जिद अनायास नहीं गिरा दी गयी थी और इसके पीछे की गहरी साजिश पर पर्दा डालना लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.

अतः आईपीएफ का यह राष्ट्रीय प्रस्ताव सीबीआई से यह् मांग करता है कि सीबीआई उच्चतर न्यायालय में पूरे साक्ष्य के साथ अपील करे जिससे लोकतंत्र को नुकसान पहुँचाने वाले गुनाहगारों को सजा मिले ताकि न्याय हो सके.

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर सीबीआई कोर्ट का फैसला न्याय की हत्या है: लोकमोर्चा

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 अभियुक्तों को दोषमुक्त करने का लखनऊ की विशेष सीबीआई कोर्ट का आज 28 साल बाद आया फैसला न्याय, कानून और संविधान की हत्या जैसा है। आज उक्त बयान जारी करते हुए लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव ने कहा कि भाजपा-विहिप-आरएसएस के सभी शीर्ष नेता जो मस्जिद को ध्वस्त करने के आपराधिक कृत्य का मार्गदर्शन कर रहे थे उन्हें अदालत ने निर्दोष माना है तो सवाल उठता है कि क्या मस्जिद खुद ही अपने आप गिर गई।

पूरी दुनिया ने आरएसएस-भाजपा-विहिप के शीर्ष नेताओं को मस्जिद का विध्वंस कराते देखा लेकिन अदालत द्वारा उन्हें बरी कर दिया गया। इससे जाहिर होता है कि अब भारत में न्याय, कानून और संविधान का शासन नहीं रह गया है और  साम्प्रदायिक फासीवादी ताकतों ने संवैधानिक लोकतंत्र की सभी संस्थाओं को अपने कब्जे में ले लिया है। देश में संवैधानिक लोकतंत्र के होने पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। आरएसएस-भाजपा और मोदी सरकार संवैधानिक लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य का मृत्युलेख लिख रहे हैं और देश को फासीवाद के रास्ते पर लेकर बढ़ चले हैं।

आरएसएस-भाजपा के इस फासीवादी प्रोजेक्ट के दो लक्ष्य हैं। पहला उद्देश्य है खेती, किसानी, जल, जंगल, जमीन समेत  देश के संसाधनों, जनता की पूंजी और उससे लगे पब्लिक सेक्टर पर देशी विदेशी बड़े पूँजीघरानों का कब्जा कराना। दूसरा उद्देश्य है सवर्ण सामंती ताकतों का वर्चस्व कायम कराना और अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों महिलाओं, बंचितों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना।भारत के सर्वांगीण विकास के लिए, सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय की गारंटी के लिए जरूरी है कि इस फासीवादी प्रोजेक्ट को परास्त किया जाए और जनता के  धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारतीय गणराज्य के निर्माण की अधूरी यात्रा को मंजिल तक पहुंचाया जाए।

बाबरी के फैसले पर उत्तर प्रदेश कॉंग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शहनवाज़ आलम का बयान

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी दोषियों को बरी करने का विशेष अदालत का निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय व संविधान की परिपाटी से परे है। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की खण्डपीठ के 9 नवम्बर 2019 के निर्णय के मुताबिक बाबरी मस्जिद को गिराया जाना एक गैर कानूनी अपराध था। पर विशेष अदालत ने सभी दोषियों को बरी कर दिया। विशेष अदालत का निर्णय साफ तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के भी प्रतिकूल है।

प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन शाहनवाज आलम ने आज जारी बयान में कहा कि पूरा देश जानता है कि भाजपा, आरएसएस व उनके नेताओं ने राजनैतिक फायदे के लिए देश व समाज के साम्प्रदायिक सौहार्द को तोड़ने का एक घिनौना षडयंत्र किया था। उस समय की उ0प्र0 की भाजपा सरकार भी साम्प्रदायिक सौहार्द भंग करने की साजिश में शामिल थी। यहां तक कि उस समय झूठा शपथपत्र देकर सुप्रीम कोर्ट तक को बरगलाया गया। इन सब पहलुओं, तथ्यों व साक्ष्यों को परखने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद केा गिराया जाना गैर कानूनी अपराध ठहराया था।

संविधान, सामाजिक सौहार्द व भाईचारे में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति उम्मीद व अपेक्षा करता है कि विशेष अदालत के इस तर्कविहीन निर्णय के विरूद्ध प्रान्तीय व केन्द्रीय सरकारें उच्च अदालत में अपील दायर करेंगी तथा बगैर किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह के देश के संविधान व कानून की अनुपालना करेंगीं। यही संविधान और कानून की सच्ची परिपाटी है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस के सभी आरोपियों को बरी करने का सीबीआई अदालत का फैसला धर्मनिरपेक्ष संविधान व सामाजिक ताने-बाने पर एक और हमला है: माले

भाकपा (माले) ने बाबरी मस्जिद तोड़ने के सभी षड्यंत्रकारियों को सीबीआई की अदालत द्वारा साक्ष्यों के अभाव में बरी कर देने के फैसले पर गहरा असंतोष जताते हुए इसे धर्मनिरपेक्ष संविधान और सामाजिक ताने-बाने को एक और झटका बताया है।

राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि मस्जिद की जगह को राम मंदिर ट्रस्ट को सौंपने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आये इस फैसले से घृणा-अपराधों से पीड़ित लोगों के लिए न्याय की आखिरी आशा भी समाप्त हो गयी है। यह फैसला घृणा अपराध करने वालों को प्रोत्साहित व आश्वस्त करता है कि वे इस तरह के अपराधों का राजनीतिक और भौतिक लाभ भयमुक्त होकर ले सकते हैं।

उन्होंने कहा कि छह दिसंबर 1992 को सबकी आंखों के सामने, दिन दहाड़े और आडवाणी, जोशी, ऋतम्भरा व अन्य भाजपा नेताओं की उपस्थिति व तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार के संरक्षण में 16वीं सदी की मस्जिद ढहा दी गयी। ढहाते वक्त ‘एक धक्का और दो के नारे लगे’। उसके पहले आडवाणी ने मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के लिए कुख्यात रथयात्रा निकाली। इन नेताओं के साम्प्रदायिकता फैलाने वाले जहरीले वक्तव्य रिकार्ड पर हैं। 

माले नेता ने कहा कि इसके बावजूद उन्हें साफ बरी कर फैसले ने भाजपा द्वारा बार-बार बोले जाने वाले उस झूठ को ही दोहराया है कि मस्जिद को तोड़ा जाना स्वतःस्फूर्त था, किसी योजनाबद्ध षड्यंत्र का परिणाम नहीं। यह वाकई अफसोसनाक है और धर्मनिरपेक्षता के लिए बड़ा धक्का है।

अरुण कुमार
राज्य कार्यालय सचिव

सिविल सोसाइटी ने हाथरस की घटना की निंदा करते हुए दलित बलात्कार पीड़िता के लिए तत्काल न्याय की मांग की

उड़ीसा, नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश में नागरिक समूहों ने हाथरस सामूहिक बलात्कार की घटना की निंदा करते हुए दलित बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए दोषीयों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

बलात्कार की शिकार 19 वर्षीय दलित युवती जिसका सामूहिक बलात्कार चार उच्च-जाति के लोगों द्वारा किया गया था और उसे छोड़ दिया गया था, जिसका इलाज अलीगढ में चल रहा था और तबियत ज्यादा बिगड़ने पर दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में भरती किया गया था, जहाँ मंगलवार को घटना के एक पखवाड़े बाद वे  मृत्यु को प्राप्त की।

पीडिता को 14 सितंबर को दुपट्टे से उसकी गर्दन के चारों ओर बांध के एक खेत में खींच लिया गया था, जब वह पशुओं के चारे को इकट्ठा करने गई थी, जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। अस्पताल में भर्ती होने के एक हफ्ते बाद, लड़की ने पुलिस को बताया कि उसके साथ चार लोगों ने बलात्कार किया था, जिसका नाम भी उसने लिया था।

नागरिक समाज संगठन महिला श्रमजीवी मंच ओडिशा, आत्मशक्ति ट्रस्ट दिल्ली , सोनभद्र विकास संगठन उत्तर प्रदेश, ओडिशा श्रमजीवी मंच और 20 से अधिक अन्य संगठनों ने पीडिता  के बलात्कार मामले में शामिल दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है  एवं  ट्विटर पर अभियान चलाकर भी सरकार पर दबाव बनाने का कार्य किये |

सीएसओ सदस्यों ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा की “हमारे देश में महिलाओं के खिलाफ इस अपराध का समाधान क्या है, जहां उनकी सुरक्षा दांव पर है? यह वास्तव में हमारे देश के लिए एक दुखद और शर्मनाक दिन है। हम अपनी बेटियों के सुरक्षा के मामले में एक राष्ट्र के रूप में विफल है।

अंजन प्रधान
संयोजक, उड़ीसा श्रमजीवी मंच


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *