पेट्रोलियम कंपनियों का निजीकरण हम सब के हितों के खिलाफ़ क्यों है?


भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.) के 32,000 से अधिक मज़दूर उसके निजीकरण के विरोध में 7 और 8 सितम्बर को देशव्यापी हड़ताल पर गए थे। इसमें 12,000 नियमित मज़दूर और 20,000 ठेका मज़दूर शामिल थे। आल इंडिया कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ बी.पी.सी.एल. वर्कर्स ने इस देशव्यापी हड़ताल का बुलावा दिया था, जिसमें बी.पी.सी.एल. की 22 से अधिक मज़दूर यूनियनें शामिल हैं।

बी.पी.सी.एल. पेट्रोलियम रिफाईनिंग करने वाली एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है और जो लगातार मुनाफे कमाती आ रही है। तेल की रिफाईनिंग करने की क्षमता के मामले में यह तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है और तेल बाज़ार में हिस्सेदारी के मामले में दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है (बाज़ार में इसकी 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी)। मुंबई, कोच्ची, बीना और नुमालीगढ़ इन चार स्थानों पर इसकी रिफाईनरियां हैं।

नवंबर 2019 को केंद्र सरकार ने बी.पी.सी.एल. को बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उस समय से देशभर में तमाम तेल कंपनियों – आयल एंड नेचुरल गैस कमीशन (ओ.एन.जी.सी.), इंडियन आयल कारपोरेशन (आई.ओ.सी.), हिन्दोस्तान पेट्रोलियम कंपनी लिमिटेड (एच.पी.सी.एल.), आयल इंडिया और बी.पी.सी.एल. की सभी मज़दूर यूनियनें इसका ज़ोरदार विरोध करती आ रही हैं। अक्तूबर में निजीकरण की औपचारिक घोषणा से पहले सरकार की निजीकरण की योजना का विरोध और उसका पर्दाफाश करने के लिए मज़दूरों ने मुंबई में संयुक्त अधिवेशन आयोजित किया था। उस समय से पेट्रोलियम उद्योग के मज़दूर देशभर में कई प्रदर्शन आयोजित करते आये हैं।

मज़दूरों के लगातार ज़ोरदार विरोध प्रदर्शनों ने केरल विधानसभा को कोच्ची रिफाइनरी के निजीकरण के विरोध में एकमत से प्रस्ताव पारित करने को मजबूर कर दिया। केरल राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि वह सार्वजनिक कंपनी को इस्तेमाल के लिए दी गयी ज़मीन को निजी कंपनी को हस्तांतरित किये जाने के खि़लाफ़ कानूनी चुनौती देगी।

भले ही केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि वह असम की नुमालीगढ़ रिफाइनरी को बी.पी.सी.एल. से अलग करेगी और उसे सार्वजनिक क्षेत्र की एक अन्य कंपनी को बेचेगी, नुमालीगढ़ के मज़दूरों ने बी.पी.सी.एल. के मज़दूरों के साथ मिलकर अपना संघर्ष जारी रखा है। वे बी.पी.सी.एल. के निजीकरण किये जाने और उसे बर्बाद किये जाने का विरोध कर रहे हैं।

मज़दूरों के एकजुट विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने हिन्दोस्तानी और विदेशी कंपनियों को अपनी रुचि-प्रकट करने का न्योता दिया है। सरकार ने यह भी ऐलान किया है कि बी.पी.सी.एल. की खरीदी में तेल क्षेत्र की किसी भी सार्वजनिक कंपनी को हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने बी.पी.सी.एल. को बेचने के फैसले को वापस लेने से इंकार करते हुए कहा कि “व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है”। उनका यह बयान साफ तौर पर दिखाता है कि बी.पी.सी.एल. का निजीकरण पेट्रोलियम क्षेत्र जैसे देश के रणनैतिक उद्योग को हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के हाथों में देने की दिशा में एक और क़दम है।

बी.पी.सी.एल. केंद्र सरकार को हर वर्ष लाभांश (डिविडेंड) के रूप में 17,000 करोड़ रुपये कमा कर देती है। ऐसा अनुमान है कि बी.पी.सी.एल. का कुल मूल्य करीब 7 लाख करोड़ रुपये है। केंद्र सरकार इस बहुमूल्य सार्वजनिक संपत्ति को उसके कुल मूल्य के केवल 10 प्रतिशत दाम पर बेचने की योजना बना रही है। इससे यह साफ हो जाता है कि केंद्र सरकार यह मानती है कि हिन्दोस्तान के लोगों की सार्वजनिक संपत्ति को देशी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों को बेचकर उनकी तिजोरियां भरना, यही सरकार का “कारोबार” है।

बी.पी.सी.एल. को खरीदने की दौड़ में जो इजारेदार पेट्रोलियम कंपनियां लगी हुई हैं उनमें रिलायंस पेट्रोकेमिकल, अरामको (सऊदी अरब), एक्सान मोबिल (अमरीका), शैल (ब्रिटिश-डच), बी.पी.पी.एल.सी. (ब्रिटेन), कुवैत पेट्रोलियम, टोटल एस.ए. (फ्रांस) और ए.डी.एन.ओ.सी. (अबू धाबी) शामिल है। बताया जा रहा है कि सरकार बी.पी.सी.एल. को रिलायंस को बेचने की योजना बना रही है जिसका एक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ गठजोड़ है। ऐसा लगता है कि अमरीकी साम्राज्यवाद के साथ अपने गठजोड़ को मजबूत करने का सरकार की योजना का यह एक हिस्सा है।

पिछले तीन दशकों से केंद्र में बैठी तमाम सरकारें तेल और गैस की खोज और संशोधन का निजीकरण करने की राह पर चलती आई हैं। इस दौरान कई देशी और विदेशी इजारेदार पूंजीपति कंपनियों ने तेल की खोज, खुदाई के साथ-साथ संशोधन के क्षेत्र में प्रवेश किया है। इसकी शुरुआत सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों के शेयर की बिक्री के साथ हुई। 2016 में पुराने कानूनों को बदलने की आड़ में केंद्र सरकार ने 1976 के अधिनियम को रद्द किया, जिसके तहत ब्रिटिश कंपनी बर्मा शैल और अमरीकी कंपनी एस्सो का राष्ट्रीयकरण किया गया और क्रमशः बी.पी.सी.एल. और एच.पी.सी.एल की स्थापना की गयी। जनवरी 2018 में एच.पी.सी.एल. को सार्वजनिक क्षेत्र की एक अन्य कंपनी ओ.एन.जी.सी. को बेच दिया गया। ऐसी ख़बर है कि बी.पी.सी.एल. की बिक्री के तुरंत बाद सरकार एच.पी.सी.एल. को भी किसी निजी इजारेदार कंपनी को बेचने की योजना बना रही है।

बी.पी.सी.एल. को किसी निजी कंपनी को बेचा जाना, हमारे देश के लोगों के हितों के खि़लाफ़ है, फिर वो निजी कंपनी चाहे हिन्दोस्तानी हो या विदेशी। तेल और प्राकृतिक गैस दोनो ही रणनैतिक संसाधन हैं, जिनपर हमारे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से निर्भर करती है।

बी.पी.सी.एल. का कार्य एल.पी.जी. और बिटूमेन (डामर) के उत्पादन पर केंद्रित है, जबकि इन दोनों ही उत्पादों की क़ीमतों पर सब्सिडी है। जब कोई निजी कंपनी बी.पी.सी.एल पर अपना कब्ज़ा जमाएगी, तो वह एल.पी.जी. और बिटूमेन का उत्पादन नहीं करेगी। अधिकतम मुनाफ़े बनाने के मक़सद से निजी कंपनी केवल उन्ही उत्पादों पर अपना ज़ोर लगाएगी जिनसे सबसे अधिक मुनाफ़े कमाये जा सकते हैं।

आज देश के ईधन व्यापार के बाज़ार का 75 प्रतिशत हिस्सा तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के हाथों में है – आई.ओ.सी., बी.पी.सी.एल., और एच.पी.सी.एल. एक बार इजारेदार पूंजीपतियों के पास इस बाज़ार पर नियंत्रण करने के लिए उसका बहुतांश हिस्सा आ जायेगा, तो पेट्रोल की क़ीमत आसमान छूने लगेगी।

रिफाईनरियों का निजीकरण समाज के सभी तबकों के हितों के खि़लाफ़ है। ऐसा करने से मिट्टी तेल, पेट्रोल, डीजल, एल.पी.जी., इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण ईंधनों की क़ीमत पर देशी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों का नियंत्रण हो जायेगा। निजीकरण के खि़लाफ़ पेट्रोलियम मज़दूरों के संघर्षं को देश के सभी मज़दूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों के समर्थन की ज़रूरत है।

बी.पी.सी.एल के बारे में :

1976 में ब्रिटिश कंपनी बर्मा शैल कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया गया और उसे भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.) नाम दिया गया।

– बी.पी.सी.एल. के पास 15,000 पेट्रोल पम्प और 6,000 एल.पी.जी. वितरक हैं।

– पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण और वितरण के लिए बी.पी.सी.एल. के पास 77 प्रमुख इंस्टालेशन (सुविधाएं) और डिपो हैं।

– उसके पास 55 एल.पी.जी. बोटेलिंग प्लांट हैं।

– बी.पी.सी.एल. के पास 2241 किलोमीटर लंबी बहु-उत्पाद पाइपलाइन है।

– एअरपोर्ट पर बी.पी.सी.एल. के 56 एविएशन ईंधन स्टेशन हैं।

– उसके 4 लुब्रिकेंट प्लांट हैं।

– देश के प्रमुख बंदरगाहों पर कच्चे तेल और अंतिम उत्पादों की ढुलाई के लिए उसके पास सुविधा है।

– बी.पी.सी.एल. की देश और विदेश में 11 सहायक कंपनियां और 22 जॉइंट वेंचर कंपनियां हैं।

– बी.पी.सी.एल. के पास देशभर में 6,000 एकड़ की ज़मीन है और इसमें से 750 एकड़ केवल मुंबई में है जिसकी क़ीमत हजारों करोड़ रुपये है।


CGPI.org से साभार


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