
हाथियों की लड़ाई : सलीम हिंदुस्तान का शहंशाह कैसे बना
राजनीतिक संघर्षों के बीच पारिवारिक राजनीति और परिवार में अंदरखाने होने वाले संघर्षों को दर्शाती यह कहानी आज के वक्त में मुग़लों पर नए सिरे से शुरू हुई बहस में बेहद फायदेमंद साबित होगी।
Read MoreJunputh
राजनीतिक संघर्षों के बीच पारिवारिक राजनीति और परिवार में अंदरखाने होने वाले संघर्षों को दर्शाती यह कहानी आज के वक्त में मुग़लों पर नए सिरे से शुरू हुई बहस में बेहद फायदेमंद साबित होगी।
Read Moreपश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
Read Moreयह कॉम्पैशन आज कहाँ चला गया है। क्या यह हमारे समाज में है? क्या यह हमारी फ़िल्मों में है? अगर सिनेमा समाज का आईना है तो हम गहरे खतरे में हैं और मेरा मानना है कि सिनेमा समाज का आईना है।
Read Moreबढ़ती असमानता के खिलाफ हो रहे विरोध से निपटने के लिए दुनिया की सरकारें तमाम तरह के कानून बना कर हड़ताल, प्रदर्शन, रैली, धरने पर रोक लगा रही हैं। भारत में भी महंगाई, बेरोजगारी व सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ़ किसानों, मजदूरों, नौजवानों द्वारा लगातार बड़े-बड़े प्रदर्शन किए जा रहे हैं लेकिन आन्दोलनों का मीडिया द्वारा बहिष्कार करके इस पर परदा डालने की कोशिशें जारी हैं।
Read Moreसंवैधानिक मूल्यों पर अपने ऊपर काम करने की प्रक्रिया में अपने भीतर बैठे बंटवारे/पहचानों को संबोधित करना ही सबसे जरूरी बात है। ‘हम’ बनाम ‘वे’ का बंटवारा हल किये बगैर मूल्यों के रास्ते पर कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए अनुभव के रास्ते मूल्यों को आत्मसात करने का काम और अपने भीतर के बंटवारों को संबोधित करने का काम एक साथ चलाया जाना चाहिए।
Read Moreमेरी उम्र के भारतीय, जो आज़ादी के कुछ साल बाद पैदा हुए, उनके भीतर राष्ट्रवाद को किसी शासनादेश के माध्यम से नहीं भरा गया। माहौल ही कुछ ऐसा था कि वह अपने आप भीतर अनुप्राणित होता गया। हमें इस बात को परिभाषित करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी कि हम भारतीय क्यों और कैसे थे, बावजूद इसके कि हमने बिलकुल तभी विभाजन की खूंरेज़ त्रासदी झेली थी जिसे सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के नाम पर अंजाम दिया गया था।
Read Moreआधुनिक युग में सामान्य रूप से राष्ट्र शब्द इंग्लिश शब्द नेशन का हिंदी रूपांतर माना जाता है। राष्ट्र, राज्य, राष्ट्रीयता, संघ सब अलग-अलग शब्द हैं, उनके अलग-अलग अर्थ हैं और उनकी अलग-अलग व्याख्याएं हैं, यह सभी समानार्थी नहीं हैं। सामान्यतया राष्ट्र और राज्य को एक मान लिया जाता है, जबकि दोनों अलग-अलग हैं।
Read Moreसमाज की नेतृत्वकारी भूमिकाओं और शक्ति-संरचना को नियंत्रित करने वाले दायरों में जब नए समूह जैसे दस्तकार, अछूत, महिलाएँ, छोटे किसान और श्रमिक शामिल हुए तो उन्होंने उस दुनिया पर सवाल उठाए जिसके बारे में कहा जा रहा था, इसे बदला नहीं जा सकता। उन्होंने ईश्वर के द्वारा बनायी गयी दुनिया और उसकी व्याख्या में अपने अनुभवों के वृत्तांतों से धक्का मार दिया।
Read Moreयह कैसे हो गया कि आजादी के 75 साल बाद भी देश के नागरिक दो जून की रोटी भी जुटा पाने में असमर्थ है? तो क्या यही आर्थिक रूप से असमर्थ नागरिक लाभार्थी में बदल दिए गए हैं? सवाल है कि क्या हमारे देश के स्वतन्त्र नागरिक अब लाभार्थी हो गए?
Read Moreभाषा, क्षेत्रीयता, धर्म, संप्रदाय, जातिवाद, राजसत्ता के ऐसे हथियार हैं जिसका समय-समय पर प्रयोग करके सत्ताएं जनता की एकता को तोड़ती रहती हैं। महाराष्ट्र और गुजरात में क्षेत्रीयता के नाम पर दूसरे प्रान्तों के मजदूरों के साथ क्या हुआ था? इस घटना को बीते अभी बहुत साल नहीं हुए।
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