तिर्यक आसन: राष्ट्र चिंता का कॉपीराइट


ज्ञानियों के अनुसार- चिंता दहति चिता। अर्थात चिंता, चिता समान होती है। मुझे ऐसा लगता है, ज्ञानियों ने जब ये बात बताई थी, तब धर्म और राजनीति का बाजार नहीं था। आज बाजार में देखता हूँ, तो ज्ञानियों की बात झूठी लगने लगती है। जितनी अधिक चिंता, उतना बड़ा पेट। चौबीस घंटे धर्म और देश की चिंता में जीने का दावा करने वालों के पेट पर ज्ञानियों को शोध करना चाहिए- चिंता का आहार खाने के बाद भी क्यों पेट निरंतर बढ़ता जा रहा है?

ज्ञानियों को वर्गीकरण कर देना चाहिए था कि अमुक-अमुक के लिए चिंता, चिता समान नहीं होती है। बाजार में देखता हूँ तो लगता है, लाभ की चिंता शरीर के लिए नहीं, मस्तिष्क के लिए चिता समान होती है। लाभ की चिंता बुद्धि, विवेक आदि को भस्म कर लालच और स्वार्थ की प्रतिष्ठा कर देती है। 

मोहल्ले की चिंता से शुरू कर, देश की चिंता करने वाली कुर्सी पा गए नेता से मिलने गया।

जब वे मोहल्ले के नेता थे, तब से ही देश के लिए चिंतित रहते। उनके पास शिकायत आती-नाली बनाने में भ्रष्टाचार हो रहा है। ये सुनकर अपनी मुट्ठियाँ भींच वे जोश में कहते- तुम्हें मोहल्ले की नाली की पड़ी है! राष्ट्र में भ्रष्टाचार की नाली बह रही है। उस नाली में राष्ट्र बजबजा रहा है। तुम्हें उसकी चिंता नहीं है? मेरा उद्देश्य महान है। उसे मोहल्ले की नाली में मत उलझाओ। भ्रष्टाचार की नाली साफ कर लेने दो।

उनके ओजस्वी विचारों और महान उद्देश्य को जान, शिकायतकर्ता को ग्लानि होती- कैसा अधम हूँ मैं? मुझे अपने देश से प्रेम ही नहीं! ग्लानि से शिकायत दम तोड़ देती। शिकायतकर्ता में जोश भर देती- राष्ट्र में बह रही भ्रष्टाचार की नाली साफ करने के लिए मैं भी नेता का साथ दूँगा। 

नेता के पास शिकायत आती- सीवर वाली पाइप पतली बिछाई जा रही है। रोज जाम होगी। फिर नई बिछानी पड़ेगी। शिकायत सुन नेता अपनी मुट्ठियाँ भींच जोश में कहते- तुम सिर्फ मोहल्ले के सीवर के बारे में सोच सकते हो! मैं राष्ट्र के बारे में सोचता हूँ। पूरे राष्ट्र में एक सीवर होगा। उस सीवर से सभी मोहल्ले जोड़े जाएंगे। उस सीवर की पाइप बहुत मोटी होगी। मेरा उद्देश्य महान है। उसे पतली पाइप में मत उलझाओ। नेता द्वारा किए गए समाधान से शिकायत तत्काल दम तोड़ देती।

उनके पास शिकायत आती- मेरी जमीन पर जबरन कब्जा किया जा रहा है। वे जोशीले अंदाज में कहते- तुम्हें अपनी जमीन की पड़ी है! विदेशी ताकतें राष्ट्र की जमीन पर कब्जा कर रही हैं। राष्ट्र का क्षेत्रफल कम हो रहा है। तुम्हें उसकी चिंता नहीं है? मेरा उद्देश्य महान है। उसे अपनी जमीन के टुकड़े में मत उलझाओ। मेरे साथ एकता बनाओ। राष्ट्र की जमीन मुक्त करानी है। जमीन कब्जा करने वाली शिकायत भी दम तोड़ देती।

उनके घर पहुँचा।

मोहल्ले की चिंता वाली कुर्सी पर थे, तब उनके घर का क्षेत्रफल कम था। चिंता की सीमा बढ़ने के साथ उनके घर का क्षेत्रफल भी बढ़ता गया। उनके घर की चहारदीवारी की नींव उनके मस्तिष्क से जुड़ी थी। जैसे ही उनकी चिंता मोहल्ले की सीमा पार करती, चहारदीवारी भी घर का क्षेत्रफल दो-चार फीट बढ़ा देती। देश की चिंता वाली कुर्सी मिलने के बाद चहारदीवारी, घर का क्षेत्रफल मीटर में बढ़ाने लगी। चहारदीवारी के बुलडोजर की गति से सहमीं आजू-बाजू वाली इमारतें, विस्थापन की र्इंट ढोने लगीं।

देश सेवा की योजनाएँ बढ़ने के साथ चहारदीवारी के अंदर की जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी थी। उर्वरा शक्ति ने घर के भीतर अलग-अलग कोनों में गमलों में उगे पौधों में एकता का संचार किया था। गमलों में उगे पौधों ने एकजुट होकर लॉन का रूप ले लिया था।

जब वे मोहल्ला स्तर के नेता थे, तब से ही उनके द्वारा की जा रही देश सेवा का साक्षी बनने के लिए मैं व्याकुल रहता था। इसका लाभ भी मिलता। चहारदीवारी के बड़े फाटक पर बिना रोक-टोक, पूछताछ घर के अंदर प्रवेश मिल जाता था। उस दिन फाटक पार कर घर के अंदर आते देख एक कमरे के दरवाजे पर खड़े उनके निजी सहायक ने होंठ पर अँगुली रख मुझे चुप रहने का इशारा किया। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने दूसरे हाथ से आपातकाल लिखी दफ्ती भी दिखाई। मैं समझ गया-अप्रत्यक्ष रूप से जो न समझे, उसे प्रत्यक्ष रूप से समझाने का निर्देश मिला है।

निजी सहायक मोहल्ले के दिनों से ही अपने पद पर बना हुआ है। देश की चिंता की कुर्सी पाने के बाद भी नेता ने उसे पदोन्नति देकर किसी योजना का अध्यक्ष नहीं बनाया।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, जब नेता के घर पर मुझे चुप रहने के लिए कहा गया हो। मेरे साथ ये पहली बार हुआ। सहायक की बात मान मैं चुपचाप बैठ गया। बैठकर सोचता रहा- आपातकाल! गंभीर मसला लग रहा है। सोचता रहा। नेता का इंतजार भी करता रहा। काफी देर तक उनकी आहट नहीं मिली। रहा नहीं गया तो भौंह उचकाकर, हाथ की अँगुलियाँ नचाकर सहायक से इशारों में पूछा- कौन से कमरे में हैं? सहायक जिस कमरे के दरवाजे पर खड़ा था, उसी कमरे की तरफ अँगुली से इशारा कर बताया- इसी कमरे में हैं। सहायक से फिर उसी तरह पूछा- क्या कर रहे हैं? कब तक बाहर निकलेंगे? सवाल का जवाब देने की बजाय सहायक ने मुझे लॉन की तरफ जाने का इशारा किया। मेरे साथ ये भी पहली बार हो रहा था, जब सवाल पूछने पर बाहर जाने को कहा जा रहा है। अब तक घटित परिस्थितियों के प्रभाव के कारण सहायक के इशारे से आहत नहीं हुआ। उसका कहना मान लॉन की तरफ गया। 

लॉन में चलती-फिरती, बोलती-सुनती कई शिकायत पेटिकाएँ उपस्थित थीं। वे अपने-अपने मोहल्ले की शिकायतें सुनतीं। फिर नेता को उनसे अवगत करातीं। शिकायतों के आधार पर नेता उनका ओजस्वी और महान समाधान करते। सभी शिकायतकतार्ओं से नेता का मिल पाना सम्भव नहीं था। इसके समाधान के लिए नेता ने शिकायत पेटिकाओं को अपना ओजस्वी और महान समाधान समझा दिया था। शिकायत पेटिकाएँ ही समाधान कर देती थीं। 

लॉन में पेटिकाएँ शिकायतकतार्ओं से घिरी हुई थीं। एक पेटिका शिकायतकतार्ओं को समझा रही थी- माननीय भाई अमुक जी राष्ट्र की तरक्की के लिए हवन कर रहे हैं। उनके हवन में बाधा उत्पन्न कर आप पाप के भागी बन रहे हैं। 

शिकायत पेटिका द्वारा किया गया समाधान सुन मुझे सहायक द्वारा किए गए इशारे का अर्थ भी समझ आ गया- आपके सवालों के जवाब लॉन में मिलेंगे।

समाधान सुन नेता द्वारा की जा रही देश सेवा का एक बार और साक्षी बनने के लिए व्याकुल हो उठा। देश की चिंता करने वाली कुर्सी मिलने के बाद नेता का मोहल्ले से नाता लगभग टूट गया था। मोहल्ले के किसी रसूखदार के घर विवाह या तेरहवीं के दिन नाता जुड़ जाता था। इस ‘टर्म एंड कंडीशन’ के कारण उनके द्वारा की जा रही देश सेवा का साक्षी बनने का अवसर दुर्लभ हो गया था। अखबार और टीवी में उनके द्वारा की जा रही सेवा की खबरें प्रतिदिन पढ़ने को मिलतीं।

साक्षी बनने के लिए उनके कमरे की तरफ बढ़ा। इस बार मैंने मुँह पर अँगुली रख सहायक को चुप रहने का इशारा किया। कमरे के दरवाजे पर टँगे पर्दे की ओट लेकर साक्षी बन गया। देखा कि वे कागज का एक टुकड़ा पानी के साथ निगलने की कोशिश कर रहे हैं। आश्चर्य से मुँह बाये मैंने सहायक को भी साक्षी बनने के लिए बुलाया। पर्दे की ओट से वो भी साक्षी बना। कागज के टुकड़े को निगलने में हो रही पीड़ा मुझसे देखी नहीं जा रही थी। सहायक से इशारे में ही कहा- मैं कमरे में जा रहा हूँ। आपातकाल की दफ्ती देखने के बाद भी मैं निष्क्रिय नहीं हो रहा था। मजबूरन सहायक ने मुझे रोकने के लिए मेरी बाँह पकड़, मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा- पूणार्हुति! पूणार्हुति! 

कागज का टुकड़ा निगल उन्होंने हवन की पूणार्हुति की। पूणार्हुति के बाद सहायक ने मेरी बाँह छोड़ी दी। लॉन की तरफ चलने को कहा।

रास्ते में रखे कूड़ेदान में सहायक ने आपातकाल लिखी दफ़्ती फेंक दी। मैंने पूछा- ये क्या किया? उसने बताया- पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। अब इसकी आवश्यकता नहीं। 

लॉन में पहुँचा तो देखा शिकायतकर्ता जा चुके थे। शिकायत पेटिकाएँ कुर्सी पर आराम की मुद्रा में थीं। सहायक उनके आराम में खलल नहीं डालना चाहता था। वो मुझे लॉन के एक कोने में ले गया। कोने में जाते ही मैंने सहायक से पूछा- वे कागज क्यों निगल गए? सहायक ने बताया- भाई साहब राष्ट्र की रक्षा कर रहे हैं! देश की रक्षा के लिए कागज निगलने का तरीका मुझे समझ नहीं आया। मेरी उलझन सहायक ने सुलझाई- वो साधारण कागज नहीं था। उस कागज पर राष्ट्र का नक्शा बना हुआ था। देश की रक्षा का उपाय सुन चौंकते हुए मैंने पूछा- अरे! तो वे देश को ही खा गए? सहायक ने मुस्कुराते हुए बताया- खाया कहाँ? खाना रहता तो चबा-चबा कर खाते। उन्होंने तो राष्ट्र को अपने पेट में सुरक्षित रख लिया।

देश की रक्षा के उपायों से मेरी उलझन बढ़ती जा रही थी। सहायक सुलझाता जा रहा था- भाई साहब हैं राष्ट्र के सेवक। उनके नीचे और भी कई राष्ट्रसेवक नियुक्त हैं। भाई साहब उन्हीं से राष्ट्र को बचा रहे हैं। वे भी भाई साहब से माँग करते हैं कि जैसे आप राष्ट्र की चिंता कर रहे हैं, वैसे ही हमें भी करने का अवसर दिया जाए। एक नौकरशाह कहता है- दस प्रतिशत राष्ट्र मैं भी पेट में सुरक्षित रखना चाहता हूँ। एक इंजीनियर कहता है- पाँच प्रतिशत मैं भी सुरक्षित रखना चाहता हूँ। एक ठेकेदार कहता है- दो प्रतिशत मैं भी सुरक्षित रखना चाहता हूँ। ये सब सुरक्षा के नाम पर राष्ट्र को खा जाने की साजिश कर रहे हैं। पर भाई साहब ऐसा होने नहीं देंगे। राष्ट्र को बचाने के लिए उन्होंने राष्ट्र को अपने पेट में रख लिया है। राष्ट्र की चिंता पर अब सिर्फ भाई साहब का ‘कॉपीराइट’ रहेगा। उनकी पारखी नजर में जो खरा उतरेगा, उन्हें जो ईमानदार लगेगा, उसे चिंता का कुछ प्रतिशत सुरक्षित रखने के लिए देंगे।

सहायक द्वारा अपनी उलझनों का ओजस्वी और महान समाधान सुन मुझे अपनी समझ पर तरस आया। मैं सोचता था कि नेता की पारखी नजर ने निजी सहायक की ईमानदारी का ईनाम अब तक नहीं दिया है। समाधान सुन समझ आ गया- सहायक की पदोन्नति हुई है। वह शिकायत पेटिकाओं का पोस्टमास्टर बन गया है। 

सहायक को पदोन्नति की बधाई दूँ, उससे पहले ही अंदर से नेता ने उसे बुला लिया। सहायक ने मुझसे भी अंदर चलने को कहा। मैं देश सेवा का साक्षी बन चुका था। नेता से मिलने का और कोई उद्देश्य नहीं था। तो मैंने मना कर दिया।

नेता के घर से वापस अपने घर को चला। लॉन में आराम की मुद्रा में बैठी शिकायत पेटिकाएँ हवन का प्रसाद मोहल्ले में वितरित करने के लिए आराम की मुद्रा त्याग चुकी थीं। मुस्कुराकर उनसे विदा ली। रास्ते में सोचता रहा, मैं किस सेवक के पेट में हूँ?

मेरे पीछे शिकायत पेटिकाएँ प्रसाद लेकर मोहल्ले में आईं। प्रसाद को मोहल्ले में समाधान की तरह वितरित किया। उसी शाम नेता भी मोहल्ला छोड़ विभागीय दौरे पर चले गए। उनके जाने के बाद मैं एक बार और साक्षी बनने के लिए, उनकी वापसी की राह तकने लगा। इसी दौरान मोहल्ले में एक दुर्घटना हुई। 

देश की चिंता का आहार खाकर मोटे हो रहे राष्ट्रीय नेताओं को अपना आदर्श मानने वाले मोहल्ले के एक नेता की अचानक मृत्यु हो गई। परिजन, मोहल्ले वाले और पार्टी वाले दुखी, हैरान, परेशान- कल तक तो मोहल्ले की चिंता में भले चंगे थे। अचानक ये क्या हो गया?

नेता का पोस्टमार्टम हुआ। पोस्टमार्टम के दौरान आँत से कागज का एक टुकड़ा बरामद हुआ। कागज पर देश का नक्शा बना था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार- पाचन क्षमता से अधिक खा लेने के कारण मृत्यु हुई।



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