अफलातून, पांडे और बुद्धिजीवियों का संकट

बुद्धिजीवियों की हालत बहुत दयनीय है। पूरी जि़ंदगी वे जनता के नाम की माला जपते हुए बिता देते हैं लेकिन जब कभी जनता के बीच जाते हैं तो जनता उन्‍हें …

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‘समयांतर’ के फरवरी 2012 विशेषांक का मूल अतिथि संपादकीय

हिंदी की वैचारिक पत्रिका ‘समयांतर’ का फरवरी विशेषांक ‘विकास बनाम अस्तित्‍व’ निकालने की जि़म्‍मेदारी इस बार मुझे दी गई थी। अंक अब बाज़ार में आ चुका है और उसमें अतिथि …

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आओ देखो, गलियों में बहता लहू…

नवीन जिंदल कल खबर आई कि नवीन जिंदल भारत की सीईओ बिरादरी में सबसे ज्‍यादा वेतन पाने वाले शख्‍स के रूप में लगातार दूसरे साल बाज़ी मार ले गए हैं। …

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खिलौने के गुब्‍बारे सी ठहरी जि़ंदगी: शिंबोर्स्‍का की एक कविता

 विस्‍साव शिंबोर्स्‍का (2 जुलाई 1923-1 फरवरी 2012) मौत की घड़ी में स्‍मृतियों का आवाहन करने के बजाय मैं फरमान दूंगी   ग़ुम हो चुकी चीज़ों की वापसी का। खिड़कियों …

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राफेल कहीं दूसरा बोफोर्स तो नहीं?

आजकल फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे का बडा हल्‍ला है, लेकिन दस महीने पहले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखी गई एक चिट्ठी बताती है कि राफेल सौदा कैसे …

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26 जनवरी स्‍पेशल: क्रांति कैसे आएगी…

संबोधनों पर न जाएं, जो बात कही जा रही है उसमें वज़न है। गणतंत्र दिवस पर इस किस्‍म के प्रेरणादायक भाषण सुनना बहुत ज़रूरी है। शॉट फिल्‍म ‘गुलाल’ से है। …

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प्रेतलीला का वक्‍त हो चला है: अरुंधती रॉय

अरुंधती रॉय ये मकान है या घर? नए हिंदुस्‍तान का कोई तीर्थ है या फिर प्रेतों के रहने का गोदाम?मुंबई के आल्‍टामाउंट रोड पर जब से एंटिला बना है, अपने …

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कॉरपोरेट प्रायोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के खिलाफ एक अपील

पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा …

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