जम्मू: इस गांव में केवल एक ही कुआं है, पी लो चाहे धो लो!

इस गंदे और दूषित पानी का इस्तेमाल करने से कई बार बीमारी का खतरा बना रहता है लेकिन यह सब जानते हुए भी ग्रामीण मजबूर हैं। वह कहती हैं कि यदि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेगी तो इसका खामियाज़ा गांव वालों को अपनी सेहत से चुकानी पड़ सकती है।

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कैंसर बढ़ाने वाले कारणों पर बिना रोक लगाये कैसे होगी उसकी रोकथाम?

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य में दुनिया की सभी सरकारों ने वादा किया है कि कैंसर समेत अन्य असंक्रामक रोगों के दर और मृत्यु दर में 2030 तक 33 प्रतिशत गिरावट और 2025 तक 25 प्रतिशत गिरावट आएगी। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 भी इन्हीं लक्ष्यों को दोहराती है, पर विभिन्न कैंसर दर हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं।

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गांधी ने कहा था- अखबारवाले बीमारी के वाहक बनते जा रहे हैं!

काम के अतिशय बोझ के चलते उन्हें देर रात तक या फिर सुबह से ही काम करना पड़ता था। वे अकसर चलती ट्रेन में लिखते थे। जब उनका एक हाथ लिखने से थक जाता तो वे दूसरे हाथ से लिखने लगते। तमाम व्यस्तताओं के बीच भी वे रोजाना तीन से चार लेख लिखते थे।

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महात्मा गांधी के नाम एक विद्यार्थी का पत्र

बापू! आज के समय की बात यह है कि कोई पीछे हटना ही नहीं चाहता, लोग पीछे हटना एक प्रकार से स्वयं के लिए अपमान समझते हैं; कहीं न तो कहीं दूसरों के सुख-दु:ख की उपेक्षा करते हुए हार-जीत सर्वोपरि बनते जा रही है।

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आजादी का भुला दिया गया नायक ‘मास्टर दा’

भारत की आज़ादी के लिए जितने लोगों ने बलिदान दिया उन्हें गिना जाना या सबके नाम याद रख पाना भले कठिन प्रतीत होता हो पर सूर्य सेन या मास्टर दा (सुर्जो सेन), कल्पना दत्ता, प्रीतिलता वाडेकर जैसे लोगों के नाम जिन्होंने भारत की आज़ादी का नेतृत्व किया, वर्तमान में ये आज़ादी के नायक-नायिकाओं की सूची में संभवत: ढूंढने पर ही मिल पाएं।

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‘भारत जोड़ो यात्रा’ कैसे बन गयी है संविधान बचाओ यात्रा? सौ दिन पूरे होने पर एक यात्री के विचार

भारतीय अंतर्मन की बाहरी अभिव्यक्ति हमारा संविधान है। इसीलिए भारत जोड़ने की यह यात्रा अपने आप संविधान बचाओ यात्रा में तब्दील होती गयी है क्योंकि आप जब गांधी, नेहरू, कलाम, अंबेडकर या भगत सिंह की याद लोगों को दिलाएंगे तो उसकी सर्वोच्च बाहरी अभिव्यक्ति संविधान में ही होती है, चूंकि वे जिस इतिहासबोध को निर्मित करते हैं वह संविधान में आकर ही पूर्णता पाता है।

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नेल्सन मंडेला के बगैर दुनिया: नौवीं बरसी पर एक स्मृति

नेल्सन मंडेला आधुनिक जगत में एक विलक्षण राजनेता रहे हैं। दक्षिणी अफ्रीका गणराज्य के जीवन में उन्होंने जो राजनीतिक भूमिका अदा की, उस तक ही उनका महत्त्व सीमित नहीं है।वह विशेष नैतिक सिद्धांतों को मानते थे। उन्होंने नस्लों और सामाजिक वर्गों के बीच संबंधों में नैतिकता को फिर से उसका स्थान दिलाया।

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शिक्षा में तत्कालीन चुनौतियां और महात्मा गांधी

देश में व्याप्त तत्कालीन जितनी भी समस्याएं हैं, उनके निवारण हेतु महात्मा गाँधी द्वारा 1937 (वर्धा शिक्षा योजना) में प्रस्तावित शिक्षा नीति जिसे ‘बेसिक शिक्षा’ के नाम से जाना जाता है, बहुत ही उपयुक्त है।

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डॉ. रामविलास शर्मा और भारत का इतिहास

इतिहास की समस्याओं से जूझना मानो उनकी पहली प्रतिज्ञा हो। वे भारतीय इतिहास की हर समस्या का निदान खोजने में जुटे रहे। उन्होंने जब यह कहा कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं, तब इसका विरोध हुआ था। उन्होंने कहा कि आर्य पश्चिम एशिया या किसी दूसरे स्थान से भारत में नहीं आए हैं, बल्कि वे भारत से पश्चिम एशिया की ओर गए हैं। वे लिखते हैं – ‘‘दूसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व बड़े-बड़े जन अभियानों की सहस्त्राब्दी है।‘’

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‘यूपी की सत्ता में बहुजन राजनीति का किला दोबारा खड़ा करना ही नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि’!

बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने विध्वंसक राजनीति को उकसाया। उस दौर में कांशीराम-मुलायम सिंह के गठजोड़ ने इसे थोड़े वक़्त के लिए ही सही मुकाबला किया। तब नारे लगते थे ‘लोहा कटे लोहरे से सोना कटे सोनारे से, जब मुलायमा हाथ मिलाए कांशीराम से’।

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