मोर्चा संभालो अपना, वीरेनदा!


पलाश बिस्‍वास 

कविता कैसे लिखी जाए या कोई व्‍यक्ति कवि कैसे कहलाए, इससे कहीं ज्‍यादा अहम बात यह है कि जो लिखा जा रहा है उसमें कविताई कितनी है। वह आपको कितना जोड़ पा रहा है। उसमें पढ़ने वाले को खुद से जोड़ने की संवेदना कितनी है। पलाश बिस्‍वास उर्फ पलाशदा बरसों से कलकत्‍ता में रह रहे हैं और जनसत्‍ता में नौकरी करते हुए बामसेफ आदि मंचों से लगातार सरोकार के विषयों पर स्‍वतंत्र हस्‍तक्षेप करते रहे हैं। खूब लिखते हैं, खूब मेल करते हैं और रोज़ रात को हमारे मेलबॉक्‍स इनकी मेल से भर जाते हैं। लेकिन इस बार इन्‍होंने जो लिखा है, वह न सिर्फ अद्भुत है, जबरदस्‍त प्‍यार और संवेदना को दर्शा रहा है, वैश्विक चिंताओं को आवाज़ दे रहा है और साथ ही निजी स्‍मृतियों का आवाहन भी कर रहा है। किसी प्रियजन पर कैसे एक बेहतरीन कविता लिखी जा सकती है, कवि वीरेन डंगवाल पर पलाशदा की लिखी इन दुर्लभ पंक्तियों से इसे समझा जा सकता है। संदर्भ है आगामी 5 अगस्‍त को वीरेनदा के 67वें जन्‍मदिन पर दिल्‍ली में होने वाला एक जुटान।  (मॉडरेटर) 


वीरेनदा के लिए 


क्या वीरेनदा, ऐसी भी नौटंकी क्या जो तुमने आज तक नहीं की
गये थे रायगढ़ कविता पढ़ने और तब से
लगातार आराम कर रहे हो
अस्वस्थता के बहाने
कब तक अस्वस्थ रहोगे वीरेन दा
यह देश पूरा अस्वस्थ है
तुम्हारी सक्रियता के बिना
यह देश स्वस्थ नहीं हो सकतावीरेन दा
राजीव अब बड़ा फिल्मकार हो गया
फिल्म प्रभाग का मुख्य निदेशक है इन दिनों
फोन किया कि वीरेनदा का जन्मदिन मनाने दिल्ली जाना होगा
बल्कि, सब लोग जुटेंगे दिल्ली में
भड़ास पर पगले यशवंत ने तो विज्ञापन भी टांग दिया
किमो तो फुटेला को भी लगे बहुत
देखो कैसे उठ खड़ा हुआ
और देखो कैसे टर्रा रहा है जगमोहन फुटेलावीरेन दा!
आलसी तो तुम शुरू से हो
कंजूस रहे हो हमेशा लिखने में
अब अस्वस्थ हो गये तो क्या
लिखना छोड़ दोगे?
ऐसी भी मस्ती क्या?
मस्ती मस्ती में बीमार ही रहोगे
हद हो गयी वीरेनदा!
एक गिरदा थे
जिसे परवाह बहुत कम थी सेहत की
दूजे तुम हुए लापरवाह महान
सेहत की ऐसी तैसी कर दी
अब राजधानी में डेरा डाले होंबरेली को भूल गये क्या वीरेन दा?
अभी तो जलप्रलय से रूबरू हुआ है यह देश
अभी तो ग्लेशियरों के पिघलने की खबर हुई है
अभी तो सुनायी पड़ रही घाटियों की चीखें
अभी तो डूब में शामिल तमाम गांव देने लगे आवाज़
बंध नदियां रिहाई को छटफटा रही हैं अभी
लावारिस है हिमालय अभी
गिरदा भी नहीं रहा कि
लिखता खूब
दौड़ता पहाड़ों के आर-पार
हिला देता दिल्ली-लखनऊ-देहरादून
अभी तुम्हारी कलम का जादू नहीं चला तो
फिर कब चलेगा वीरेनदा?
कुछ गिरदा के अधूरे काम का ख्याल भी करो वीरेनदा!
तुमने कोलकाता भेज दिया मुझे
कहा कि जब चाहोगे
अगली ट्रेन से लौट आना
सबने मना किया था
पर तुम बोले, भारत में तीनों नोबेल कोलकाता को ही मिले
नोबेल के लिए मुझे कोलकाता भेजकर
फिर तुम भूल गये वीरेनदा!
अभी तो हम ठीक से शुरू हुए ही नहीं
कि तुम्हारी कलम रुकने लगी है वीरेनदा!
ऐसे अन्यायीबेफिक्र तो तुम कभी नहीं थे वीरेनदा!
चूतिया बनाने में जवाब नहीं है तुम्हारा वीरेनदा!
हमारी औकात जानते हो
याद है कि
नैनी झील किनारे गिरदा संग
खूब हुड़दंग बीच दारू में धुत तुमने कहा थावीरेनदा!
पलाशतू कविता लिख नहीं सकता!
तब से रोज़ कविता लिखने की प्रैक्टिस में लगा हूं वीरेनदा
और तुम हो कि अकादमी पाकर भी खामोश होने लगे हो वीरेनदा!
तुम जितने आलसी भी नहीं हैं मंगलेश डबराल
उनकी लालटेन अभी सुलग रही है
तुम्हारा अलाव जले तो सुलगते रहेंगे हम भी वीरेनदा!
नज़रिया के दिन याद हैं वीरेन दा
कैसे हम लोग लड़ रहे थे इराक युद्ध अमेरिका के खिलाफ
तुम्हीं तो थे कि वह कैम्पेन भी कर डाला
और लिख मारा `अमेरिका से सावधान
साम्राज्यवादविरोधी अभियान के पीछे भी तो तुम्हीं थे वीरेनदा!
अब जब लड़ाई हो गयी बहुत कठिन
पूरा देश हुआ वधस्थल
खुले बाजार में हम सब नंगे खड़े हैं आदमजाद!
तब यह अकस्मात तुम
खामोशी की तैयारी में क्यों लगे हो वीरेनदा?
आलोक धन्वा ने सही लिखा है!
दुनिया रोज़ बनती है, सही है
लेकिन इस दुनिया को बनाने की जरूरत भी है वीरेनदा!
दुनिया कोई यूं ही नहीं बन जाती वीरेनदा!
अपनी दुनिया को आकार देने की बहुत जरूरत है वीरेनदा!
तुम नहीं लिक्खोगे तो
क्या खाक बनती रहेगी दुनिया, वीरेनदा!
इलाहाबाद में खुसरोबाग का वह मकान याद है?
सुनील जी का वह घर
जहां रहते थे तुम भाभी के साथ?
तुर्की भी साथ था तब
मंगलेश दा थे तुम्हारे संग
थोड़ी ही दूरी पर थे नीलाभ भी
अपने पिता के संग!
इलाहाबाद का काफी हाउस याद है?
याद है इलाहाबाद विश्वविद्यालय?
तब पैदल ही इलाहाबाद की सड़कें नाप रहा था मैं
शेखर जोशी के घर डेरा डाले पड़ा था मैं
100, लूकरगंज में
प्रतुल, बंटी और संजू कितने छोटे थे
क्या धूम मचाते रहे तुम वीरेनदा!
तब हम ख्वाबों के पीछे
बेतहाशा भाग रहे थे वीरेनदा!
अब देखोहकीकत की ज़मीन पर
कैसे मजबूत खड़े हुए हम अब!
और तुम फिर ख्वाबों में कोन लगे वीरेनदा!
अमरउ जाला में साथ थे हम
शायद फुटेला भी थे कुछ दिनों के लिए
तुम क्यों चूतिया बनाते हो लोगों को?
हम तुम्हारी हर मस्ती का राज़ जानते हैं वीरेनदा!
कोई बीमारी नहीं है
जो तुम्हारी कविता को हरा दे, वीरेनदा!
अभी तो उस दिन तुर्की की खबर लेने बात हुई वीरेनदा!
तुम एकबार फिर दम लगाकर लिक्खो तो वीरेनदा!
तुमने भी तो कहा था कि धोनी की तरह
आखिरी गेंद तक खेलते जाना है!
खेल तो अभी शुरू ही हुआ है, वीरेनदा!
जगमोहन फुटेला से पूछकर देखो!
उससे भी मैंने यही कहा था वीरेन दा!
अब वह बंदा तो बिल्कुल चंगा है
असली सरदार से ज्यादा दमदार
भंगड़ा कर रहा है वह भी वीरेनदा!
यशवंत को देखो
अभी तो जेल से लौटा है
और रंगबाजी तो देखो उसकी!
जेलयात्रा से पहले
थोड़ा बहुत लिहाज करता था
अब किसी को नहीं बख्शता यशवंत!
मीडिया की हर खबर का नाम बन गया भड़ासवीरेनदा!
अच्छे-अच्छों की बोलती बंद है वीरेनदा!
हम भी तो नहीं रुके हैं
तुमने भले जवानी में बनाया हो चूतिया हमें
कि नोबेल की तलाश में चला आया कोलकाता!
अपने स्वजनों को मरते-खपते देखा तो
मालूम हो गयी औकात हमारी!
यकीन करो कि हमारी तबीयत भी कोई ठीक
नहीं रहती आजकल
कल दफ्तर में ही उलट गये थे
पर सविता को भनक नहीं लगने दी
संभलते ही तु्म्हारे ही मोरचे पर जमा हूंवीरेनदा!
तुम्हारी जैसी या मंगलेश जैसी
प्रतिभा हमने नहीं पायी
सिर्फ पिता के अधूरे मिशन के कार्यभार से
तिलांजलि दे दी सारी महत्वाकांक्षाएं
और तुरंत नकद भुगतान में लगा हूंवीरेनदा!
दो तीन साल रह गये
फिर रिटायर होना है
सर पर छत नहीं है
हम दोनों डायाबेटिक
बेटा अभी सड़कों पर
लेकिन तुमहारी तोपें हमारे मोर्चे पर खामोश नहीं होंगी वीरेनदा!
तुमने चेले बनाये हैं विचित्र सारे के सारेवीरेनदा!
उनमें कोई खामोशी के लिए बना नहीं है वीरेनदा!
तुम्हें हम खामोशी की इजाज़त कैसे दे दें वीरेनदा!
बहुत हुआ नाटक वीरेन दा!
सब जमा होंगे दिल्ली में
सबका दर्शन कर लो मस्ती से!
फिर जम जाओ पुराने अखाड़े में एकबार फिर
हम सारे लोग मोर्चाबंद हैं एकदम!
तुम फिर खड़े तो हो जाओ एकबार फिर वीरेनदा!
फिर आजादी की लड़ाई लड़ी जानी है
गिरदा भाग निकला वक्त से पहलेवीरेनदा!
और कविता के मोर्चे पर तुम्हारी यह खामोशी
बहुत बेमज़ा कर रही है मिजाज़ वीरेनदा!
तुम ऐसे नहीं मानोगे
तो याद है कि कैसे अमर उजाला में
मैंने जबरन तुमसे अपनी कहानी छपवा ली थी!
अब बरेली पर धावा बोल तो नहीं सकता
घर गये पांच साल हो गये
पर तुमने कहा था कि
पलाशतू कविता लिख ही नहीं सकता!
तुम्हारी ऐसी की तैसी वीरेनदा!
अब से एक से बढ़कर एक खराब कविता लिक्खूंगा वीरेनदा!
भद तुम्हारी ही पिटनी है
इसलिए बेहतर हैवीरेनदा!
जितना जल्दी हो एकदम ठीक हो जाओ,वीरेनदा!
और मोर्चा संभालो अपनावीरेनदा!
हम सभी तुम्हारे मोर्चे पर मुस्‍तैद हैं वीरेनदा!

और तुम हमसे दगा नहीं कर सकते वीरेनदा!



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4 Comments on “मोर्चा संभालो अपना, वीरेनदा!”

  1. बोर और बकवास कविता है । वीरेन जी का बड़प्पन बेशक न जाहिर हुआ हो लेकिन कवि का चूतियापा हद दर्जे तक जाहिर हुआ है । भला ऐसे भी किसी पर कोई कविता लिखी जा सकती है । न संवेदना न समझ केवल चापलूसी !

  2. बोर और बकवास कविता है । वीरेन जी का बड़प्पन बेशक न जाहिर हुआ हो लेकिन कवि का चूतियापा हद दर्जे तक जाहिर हुआ है । भला ऐसे भी किसी पर कोई कविता लिखी जा सकती है । न संवेदना न समझ केवल चापलूसी !

  3. ras lene wale kabhi kavita ki samvedna nahi dhoond paate ….. wo chaplus bhale ho sakte hai hume isme pyaar dikha hai jo dil ki gehrai se hoti hai wahi kavita me bhi jhalak rahi ……

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