राग दरबारी: यह कांग्रेस का संकट है या सभी पार्टियों का बराबर संकट?

सवाल यह है ही नहीं कि कांग्रेस को बचाया जा सकता था. यहां सवाल यह था कि कांग्रेस किस जाति या समुदाय के साथ गठबंधन करती जिससे कि उसकी डूबती हुई लुटिया को बचाया जा सकता था? क्या उस डूबती हुई नैया को पूरी तरह डुबाने का श्रेय राहुल गांधी को दिया जाना चाहिए? शायद यह कहना राहुल गांधी के साथ नाइंसाफी होगी.

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मिनटों में न्याय, न्याय व्यवस्था की हत्या है इसलिए अगला नंबर किसी का भी हो सकता है!

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने तो उसकी हत्या की ही है, यहां के सामान्य लोगों में हत्या को लेकर कोई सवाल नहीं है बल्कि पुलिस-प्रशासन के लिए प्रशंसा के भाव हैं. उस उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए, जिसके बारे में एक बार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस ‘डकैत’ है!

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राग दरबारी: विकास दूबे की कथा में भारतीय सवर्ण मध्यवर्ग के वर्चस्व और पतन का अक्स

दूबे ने सबसे ज्यादा ब्राह्मणों की हत्या की है, लेकिन बहुसंख्य ब्राह्मण समाज को विकास दूबे से कोई परेशानी नहीं हो रही होगी, बल्कि उसमें समाज के मसीहा का अक्स देख रहा होगा!

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राग दरबारी: नरसिंह राव में पटेल का अक्स तलाशती भाजपा

आखिर क्या कारण है कि जिसे कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री बनाया, उसे आज के दिन सबसे ज्यादा प्यार कांग्रेस से नहीं बल्कि बीजेपी से मिल रहा है? बीजेपी के बारे में जो बात समान्यतया कही जाती है, वह यह कि बीजेपी इकलौती ऐसी पार्टी है जिसके पास एक भी वैसा इतिहास पुरूष नहीं है जिसकी बदौलत जनता में अपनी पुरानी विरासत का दावा वह पेश कर सके. वर्तमान में जो राजनीतिक स्थिति है, उसके हिसाब से तो बीजेपी को हालांकि इसकी बहुत जरूरत अब रह नहीं गयी है फिर भी पता नहीं क्यों बीजेपी को पुराने कांग्रेसी या फिर शुद्ध कांग्रेसी की तरफ लालायित होकर देखना पड़ रहा है?

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राग दरबारी: भारतीय मीडिया, संपादक और उसकी नैतिकता

आज के अधिकांश संपादक रीढ़विहीन, परजीवी व अपने लाभ भत्तों के लिए जी रहे हैं. पत्रकारिता में संकट के इस दौर में प्रतीक बंदोपाध्याय जैसे कितने पत्रकारों के बारे में हमने सुना है? जबकि आज तो देश के कई बड़े संपादक राज्यसभा में विराजमान हैं?

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राग दरबारी: क्या एक समाजशास्त्री की व्याख्या हमेशा निष्पक्ष होती है?

पिछले हफ्ते समाजशास्त्री प्रोफेसर बद्री नारायण ने बीबीसी हिन्दी की वेबसाइट पर एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था- ‘कोरोना वायरस ने भारत से जाति की दीवार को ढहा दिया है?’ …

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राग दरबारी: क्या सरकार इतनी अराजकता चाहती है कि अबकी आसानी से शहर वापस ही न जाएं मजदूर!

अगर सरकार चाहती तो आसानी से हर दिन पौने दो करोड़ लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचा सकती थी

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राग दरबारी: विकास के वैकल्पिक मॉडल पर भारत में चर्चा क्यों ठप है?

हमारे देश के अधिसंख्य ‘बुद्धिजीवी’ इसी मोड में हैं कि उन्हें आज भी यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि मोदी जी के नेतृत्व में ही कोरोना से जंग जीती जा सकती है!

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