राग दरबारी: किसान आंदोलन के बीच ‘अचानक’ हुई एक यात्रा का व्याकरण

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा किसी भी रूप में सिर्फ गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए नहीं थी, बल्कि यह सामान्य हिन्दुओं के मन में आंदोलन कर रहे पंजाब के किसानों के प्रति घृणा फैलाने के लिए थी।

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राग दरबारी: प्रधानमंत्री का ‘मन’ किसके साथ है?

प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार कुल मिलाकर किसानों के लिए जो तीन कानून संसद द्वारा बनाए गए हैं उससे किसानों को बहुत लाभ मिल रहा है, जिसका जीता-जागता उदाहरण जितेन्द्र भोई हैं। इसी जितेन्द्र भोई की कहानी का खुलासा 4 दिसंबर के दैनिक भास्कर ने किया है।

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हिन्दी अखबारों में ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ का संविधान-विरोधी और किसान-विरोधी चेहरा

आज के संपादकीय, संपादकीय पेज (यह हिन्दी का पहला अखबार है जहां इसके मालिक संजय गुप्ता संपादक की हैसियत से हर रविवार को कॉलम लिखते हैं) और ऑप-एड पेज ‘विमर्श’ पर छपे लेखों को देखें। वहां से जातिवाद की दुर्गंध भभका मारकर बाहर निकल रही है।

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राग दरबारी: खुद को ‘किसान’ कहने वाले 25% से ज्यादा सांसदों की हैसियत क्या कुछ भी नहीं?

किसानों के पास किसी तरह की कोई आर्थिक ताकत नहीं रह गयी है जबकि संसद में सिर्फ 25 (2.73 फीसदी) सांसद ऐसे हैं जो अपने को उद्योगपति कहते हैं, लेकिन इनके हितों को लाभ पहुंचाने के लिए पूरा देश तैयार है।

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The Indian Express की खबरों में जाति की महीन कारीगरी और न्यूज़रूम में डायवर्सिटी की ज़रूरत

कायदे से जिस किसी ने भी इस खबर को लिखा है या लिखवाया है, उसे दोनों ही मामले में आरोपितों की जाति का या तो जिक्र करना चाहिए था या फिर किसी में नहीं करना चाहिए था।

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राग दरबारी: जिन्ना के बाद पहली बार भारत में नयी करवट लेती मुस्लिम सियासत

चूंकि हिन्दू नेतृत्व मुसलमानों की सुरक्षा करने में लगातार असफल हो रहा है इसलिए ओवैसी में भारतीय मुसलमान अपना भविष्य देखने लगा है। शायद ओवैसी भारत में एक अलग तरह की राजनीतिक शब्दावली और बिसात बिछाने की ओर अग्रसर हैं।

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राग दरबारी: 28 लाख बिहारी मजदूरों की पीड़ा को जाति के खांचे में डाल के आप खारिज कर देंगे?

अधिकांश राजनीतिक टिप्पणीकार एनडीए व महागठबंधन में मौजूद घटक दलों, किस मजबूत जाति का नेता किस गठबंधन के साथ है और किसका वोट परंपरागत रूप से किसे पड़ता रहा है, या फिर मोदी जी कितने चमत्कारिक रह गये हैं- के आधार पर बातों का विश्लेषण कर रहे हैं जबकि पिछले 15 वर्षों में बिहार कितना बसा और कितने बिहारी उजड़े- यह कहीं भी विश्लेषण में दिखायी नहीं पड़ता है।

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राग दरबारी: गोबरपट्टी के राजनीतिक टिप्पणीकार बिहार में ‘विकास की जाति’ को क्यों नहीं देखते?

किसका विकास हो रहा है मतलब किस जाति का विकास हो रहा है या फिर कह लीजिए कि विकास की जाति क्या है, इसे समझने का सबसे आसान तरीका यह जानना है कि किसके शासनकाल में किस जाति-समुदाय के लोगों की प्रतिमा लगायी जाती है; किसके नाम पर संस्थानों के नाम रखे जाते हैं; और किसके नाम पर सड़क का नामकरण हो रहा है।

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राग दरबारी: मुद्दाविहीन चुनाव और लूज़र जनता है बिहार का सच

नेता राजनीतिक गणित जितना भी कर लें, हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आम जनता परसेप्‍शन पर भी निर्णय लेती है। आम लोगों में चिराग पासवान के जेडीयू के प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ने को वह इस रूप में भी ले रही है कि इस खेल के पीछे बीजेपी है।

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राग दरबारी: संपादक से सभापति के बीच ठाकुर हरिवंश नारायण सिंह के करतब

क्या सचमुच वे सारे के सारे बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता इतने भोले थे/हैं कि उन्हें संपादक हरिवंश की कमी नजर नहीं आयी? और तो और, जब उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा में मनोनीत किया तब भी इन समझदार लोगों को समझ में नहीं आया कि हरिवंश कितने शातिर खिलाड़ी रहे हैं?

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