आजमगढ़: प्रवासी श्रमिकों के भरण-पोषण और रोजगार के सरकारी दावों पर सर्वे ने उठाये सवाल


पिछले साल उत्‍तर प्रदेश में वापस आये 40 लाख से ज्यादा प्रवासी श्रमिकों के भरण, पोषण और रोजगार की व्यवस्था करने सम्‍बंधी मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावे के आलोक में रिहाई मंच ने पहली बार आजमगढ़ के प्रवासी मजदूरों में सर्वे और उनसे संवाद पर आधारित एक रिपोर्ट जारी करते हुए सरकारी दावों पर सवाल उठाया है. मुख्‍यमंत्री कह रहे हैं कि दुनिया के तमाम संस्थान यूपी के इस सफल मॉडल पर शोध कर रहे हैं- मंच के मुताबिक यह सफ़ेद झूठ है. सच्चाई तो पिछले दिनों दुनिया के तमाम मीडिया संस्थानों ने उजागर कर दी थी इसलिए  सरकार विज्ञापन और पीआर के बल पर सच्चाई को झुठला नहीं सकती.

रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने बताया कि पहली कोरोना लहर के कारण लगाये गये लॉकडाउन के बाद घर वापस आये प्रवासी मजदूरों के साथ संवाद स्थापित किया गया. आजमगढ़ के गौसपुर, सहदुल्लापुर, मोइयां मकदूमपुर, टेलीपुर, शुकुरपुर, शेखपुर हिसाम, हटवा खालसा, अहियायी, बेनुपुर, लहुआ खुर्द, कोइलाड़ी, हाजीपुर, हड़िया मित्तूपुर, रुस्तमपुरा अशरफ पट्टी, संगम नगर, घिनहापुर, देवयित उस्मानपुर, बसिला, इनवल, बासुपुर, कसेहुआँ गांवों के 225 प्रवासी मजदूरों के साथ एक सर्वे/संवाद हुआ.

मजदूरों को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकारों ने बहुत सी घोषणाएं की थीं. जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन को लेकर हुए अध्ययन में यह सामने आया कि राशन किट और एक हजार रुपए वितरण में अनियमितता है. वहीं माइग्रेशन कमीशन, कामगार कमीशन, यूपी से बाहर जाने पर उनका पंजीकरण, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, दीनदयाल उपाध्याय ऋण योजना, बैंकों द्वारा अनुसूचित जाति‍/जनजाति के मजदूरों को ऋण जैसी योजनाओं के बारे उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है. बहुत से लोगों ने भुखमरी की बात भी कही जो भयावह स्थिति को दर्शाता है.

आजमगढ़ के 23 गावों  में किये गये सर्वे में गौसपुर गांव में 71 लोगों ने जानकारी दी. कोविड महामारी/लॉकडाउन के कारण क्या दिक्कत हुई इसके जवाब में 5 लोगों ने भुखमरी की बात कही, 35 लोगों ने कहा कि सरकार से कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई, 6 लोगों ने कहा कि राशन नहीं मिला, 12 लोगों ने बताया कि एक बार एक हजार रुपए और राशन मिला और 13 लोगों ने खाने और रोजगार की दिक्कत को बताया. मोइयां मकदूमपुर के 51 लोगों में इसी सवाल के जवाब में 32 लोगों ने बेरोजगार होने और 19 लोगों ने भुखमरी, काम बंद, खाने का संकट, कमरे का किराया आदि दिक्कतें बतायीं.

एक ही गांव में कुछ को राशन किट तो कुछ प्रवासी मजदूरों को पैसा मिला और कुछ को नहीं. ये प्रशासनिक अनियमितता के साथ भ्रष्टाचार का भी सवाल है.

सर्वे से निकली आवाज़ें

गौसपुर, निज़ामाबाद के नकुल बताते हैं कि दिल्ली में दिहाड़ी का काम करते थे. सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली है. परिवार खाने को परेशान है. वहीं के जय सिंह बताते हैं कि मुम्बई में वे ड्राइवर-हेल्पर थे. उन्‍हें छह हजार महीना मिलता था, लेकिन रोजगार बंद हो जाने से आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है.

गौसपुर के सचिन कुमार, ओम प्रकाश, राम प्रताप, प्रकाश और मनोज कुमार ने भुखमरी के हालात बताए. दिनेश पाल सिलाई का काम दिल्ली के मायापुरी में काम करके ग्यारह हजार रुपए कमाते थे. श्रम विभाग में इनका रजिस्ट्रेशन है. सरकार की तरफ से इन्‍हें कोई सुविधा नहीं मिली.

गौसपुर, निज़ामाबाद की नेहा बताती हैं कि वे मुंबई में गारमेंट सिलाई में तीन हजार रुपये माह पर काम करती थीं. रोजगार बंद हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति खराब है और सरकार कोई मदद नहीं कर रही. निज़ामाबाद की ही रेखा और बिंदु बताती हैं कि आजादपुर दिल्ली में रहकर वे सिलाई करके 4-4 हजार रुपये कमा लेती थीं. सरकार की तरफ से कोई सहायता इनको नहीं मिली है. रोजगार के साथ खाने की दिक्कत भी है.

बक्सपुर, तौंवा सरायमीर के झिनकू बताते हैं कि वे दिल्ली के आजादपुर में मजदूरी का काम करते थे. दस हजार रुपये कमाने वाले झिनकू अभी बेरोजगार हैं औश्र उनके पास कोई काम नहीं है. सहदुल्लापुर, निज़ामाबाद के विजय कुमार बताते हैं कि मुंबई में वे पेंटिंग का काम कर के दस हजार रुपये कमाते थे. परिवार में खाने की समस्या है और सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिला है.

सहदुल्लापुर, निज़ामाबाद के रामलाल बताते हैं कि मुंबई में बढ़ई का काम करके वे बारह हजार रुपये कमाते थे. सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली है. परिवार की स्थिति खराब है. इसी गांव के आकाश कुमार जो कि चार साल से लुधियाना पंजाब में रहते थे, सिलाई का काम करके नौ हजार महीने कमा लेते थे. उन्‍होंने बताया कि सरकार की तरफ से राशन के अलावा उन्‍हें कुछ नहीं मिला है और परिवार में दवा के लिए बहुत परेशानी है.

कुजियारी, निज़ामाबाद के अजय यादव बताते हैं कि वे केरल के तिरुर में काम करते थे. टाइल्स का काम कर आठ हजार रुपये कमाते थे. अब उनके पास कोई रोजगार नहीं है. शेखुपुर, मोहम्मदपुर के दयाराम पाल बताते हैं कि मुंबई में ड्राइविंग का काम कर के वे ग्यारह से तेरह हजार रुपये कमाते थे. अभी परिवार की स्थिति खराब चल रही है. एक बार उनको राशन और एक हजार रुपये मिले हैं. मोइया मकदूमपुर, निज़ामाबाद के अखिलेश बताते हैं कि मुंबई में 6 साल से वे कारपेंटर का काम करके दस हजार रुपये कमाते थे. अब उनके पास कोई रोजगार नहीं है.

शकूरपुर, मिर्जापुर के हीरालाल यादव बताते हैं कि दस वर्षों से दिल्ली में थे. रिक्शा चलाकर दस हजार रुपये कमाते थे. श्रम विभाग में और मनरेगा में रजिस्ट्रेशन नहीं है. वे सरकार से रोजगार की मांग करते हैं. अनेक प्रकार की समस्याएं हुईं थीं. अभी उनके पास पैसे नहीं हैं. तेलीपुर, निज़ामाबाद के धनंजय मौर्य बताते हैं कि गुरुग्राम में एक साल से वे पार्ट फीडिंग का काम कर के दस हजार रुपये कमाते थे. श्रम विभाग या मनरेगा में उनका कोई पंजीयन नहीं है. दो बीघा जमीन है, खाने की तथा पैसे आदि की दिक्कत है. वे वापस जाना नहीं चाहते और स्थानीय स्तर पर रोजगार की बात करते हैं.

बसिला, मेंहनगर के हरिकेश यादव बताते हैं कि मुंबई के कल्याण में टाइल्स का काम कर के वे 12 हजार रुपये कमाते थे. उनका कोई पंजीयन नहीं है. एक एकड़ से कम जमीन है. खाने और रोजगार की दिक्कत है. इनवल, मेंहनगर के संजय कुमार जायसवाल बताते हैं कि कोलकाता में वे दस साल से टाइल्स का काम कर के 15 हजार रुपये कमाते थे. कोई पंजीयन नहीं है, न  मनरेगा न श्रम विभाग में. एक एकड़ से कम जमीन है जबकि परिवार में आठ सदस्य हैं और कमाने वाला एक आदमी है. जब खाने-पीने की दिक्कत हुई तो वे ट्रक से घर आये. उन्‍हें खाद्यान्न और रोजगार की जरूरत है.

शाह देवइत उस्मानपुर, मेंहनगर के राजेश, पति राज यादव बताते हैं कि बदलापुर महाराष्ट्र में वे 10 साल से मजदूरी करते थे और 15 हजार महीना कमाते थे. 6 सदस्यीय परिवार में वे इकलौते कमाने वाले थे. उनके पास एक एकड़ से कम जमीन है और न श्रम विभाग न मनरेगा में कोई पंजीयन है. खाने-पीने की दिक्कत हुई तो पैदल निकल पड़े. प्रशासन ने रास्ते में ट्रक में बैठवा के भेजवाया. उन्‍हें भी खाद्यान और रोजगार की जरूरत है.

बासुपुर, पल्हना के फिरतू यादव बताते हैं कि 20 साल से वे मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी कर 6 हजार महीना कमाते थे. 6 सदस्यीय परिवार में एक एकड़ से कम जमीन है. खाने के लिए खाद्यान सामग्री नहीं मिल रही. किसी अन्य जरूरत के लिए रुपए-पैसे नहीं हैं. रोजगार की वे मांग करते हैं. कसेहुआँ, मेंहनगर के नंदलाल यादव बताते हैं कि नागपुर महाराष्ट्र में दस सालों से वे काम करते थे. मजदूरी करके नौ हजार रुपये कमा पाते थे. चार सदस्यीय परिवार में कमाने वाले वे अकेले आदमी थे. रोजगार न होने से खाने-पीने का संकट हो गया है.

घिनहापुर, मेंहनगर के राजू प्रजापति पंजाब में दस साल तक काम किये. आठ सदस्यीय परिवार में वे अकेले कमाने वाले थे जो 10 हजार महीना कमाते थे. उनके पास एक बीघा जमीन है. उन्हें रोजगार की जरूरत है. घिनहापुर, मेंहनगर के ही विवेक राजभर बताते हैं कि वे जालंधर में पीतल ग्लैण्डर में काम कर के 8 हजार रुपये महीना कमाते थे लेकिन फिलहाल खाली हैं.

सरकारी दावे

गृह मंत्री अमित शाह को ”प्रवासी संकट का समाधान” भेंट करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

कोरोना महामारी के दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1 करोड़ 10 लाख मजदूरों को रोजगार देने का दावा करते हुए 26 जून को एक मेगा शो किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में कहा गया कि लॉकडाउन में यूपी सबसे अधिक रोजगार सृजित करने वाला पहला राज्य है. 26 जून तक 57 हजार से अधिक एमएसएमई इकाइयों को ऑनलाइन लोन दिया गया है और अब फिर से ऋण बांटा जाएगा. मुख्‍यमंत्री ने नवीन रोजगार छतरी योजना के तहत यूपी की लगभग 18000 बैंक शाखाओं को लक्ष्य दिया गया था कि कम से कम दो अनुसूचित जाति‍, जनजाति और महिला को अनिवार्य रूप से ऋण उपलब्ध कराएं जिससे 36000 लोग लाभान्वित होंगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वरोजगार योजना के तहत 3484 लाभार्थी खाते में 17.42 करोड़ रुपये भी हस्तांतरित किये गये.

हकीकत यह है कि आजमगढ़ से मुम्बई जाने वाली गोदान एक्सप्रेस के 17 सितम्बर 2020 से खुलने की भनक लगते ही सारी सीटें फुल हो गयीं और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह स्थिति 21 अक्टूबर, 2020 तक कायम रही. जब रोजगार मिल गया था तो आखिर लोग क्यों मुम्बई, दिल्ली, सूरत, अहमदाबाद जैसे महानगरों को भाग रहे थे? जबकि कोरोना का संक्रमण तेजी से बना हुआ था?

वहीं यह भी सवाल है कि विभिन्न योजनाओं के तहत दिये गये रोजगारों का क्या होगा जो दावा सरकार कर रही है? यहां एक ही स्थिति है कि या तो उनको रोजगार मिला होगा या नहीं. अगर नहीं मिला और मजदूर रोजी-रोटी के लिए परदेस भाग रहे हैं तो यह एक बड़े भ्रष्टाचार का मामला हो सकता है क्योंकि सरकारी दावों के मुताबिक मजदूरों के मद में पैसा आ रहा था और अगर वे परदेस चले गये तो सवाल उठता है कि यह पैसा किसकी जेब में जा रहा था?

आजमगढ़ में 15 सितम्बर, 2020 को आर्थिक तंगी से परेशान एक व्यक्ति ने फांसी लगाकर जान दे दी थी. थाना अहरौला के दुर्वासा धाम के बलिया के पास बबूल के पेड़ की डाल पर एक व्यक्ति का फंदे से लटका शव मिला था. स्वजनों ने कहा कि उसने आर्थिक तंगी के चलते फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. अहरौला क्षेत्र के दही लेदौरा गांव निवासी हरेन्द्र कुमार (45) पुत्र रामकरण रोजी-रोटी के लिए दिल्ली रहते थे. लॉकडाउन लगा तो पांच माह पूर्व दिल्ली से घर आये थे. स्वजन का कहना है कि रोजगार न मिलने से वे आर्थिक रूप से परेशान रहते थे. 15 सितम्‍बर 2020 की दोपहर करीब 12 बजे वे घर से साइकिल लेकर बस्ती भुजबल बाजार जाने की बात कह कर निकले थे.

यहां सवाल यह नहीं है कि हरेन्द्र ने आत्महत्या की बल्कि सवाल यह है कि उसे रोजगार क्यों नहीं मिला. अगर नहीं मिला तो दोषी अधिकारी-कर्मचारी के ऊपर क्या कोई कार्रवाई हुई? जिस दिन हरेन्द्र ने आत्महत्या की] उसी दिन खबर आयी थी कि श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने की प्रगति ख़राब है और पंजीकरण व सेवा मित्र पोर्टल पर अंकन में गड़बडि़यां थीं. क्‍या प्रवासी मजदूर हरेन्द्र की आत्महत्या की वजह प्रशासनिक लापरवाही नहीं मानी जाय?

आजमगढ़ में ही 13 सितम्बर, 2020 को खबर आयी कि पंजाब गये एक युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई. सिधारी थाना के कटघर जमुरपुर गांव के नीरज राजभर लॉकडाउन के चलते चार माह पूर्व पंजाब की फैक्ट्री के काम को छोड़कर घर आ गये थे. 3 अगस्त, 2020 को नीरज अपने दोस्त बलजीत के साथ फिर फैक्ट्री में काम करने के लिए पंजाब चले गये. यह स्थिति पूरे सूबे की है. ठीक इसी दरम्यान बुंदेलखंड के एक प्रवासी मजदूर समेत चार लोगों ने फांसी लगाकर जान दे दी. कमलेश गुजरात में काम करता था. कहां हैं माइग्रेशन कमीशन और कामगार आयोग जिसकी घोषणा योगी सरकार ने की थी? पूर्वांचल विकास निधि और पूर्वांचल विकास आयोग कहां है?

भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से किये जाने वाले कंज्यूमर कांफिडेंट सर्वे के मुताबिक जुलाई 2020 में सर्वे में शामिल 77.8 फीसदी लोगों ने माना कि मौजूदा स्थिति ज्यादा ख़राब है जो बात जुलाई 2019 में 37.4 फीसदी लोगों ने कही थी.

योगी सरकार में युवाओं के लिए नई स्टार्टअप नीति 2020 को मंजूरी देते हुए डेढ़ लाख लोगों के रोजगार का दावा किया गया. कहा गया कि प्रदेश में लगभग दस हजार स्टार्टअप शुरू किए जाएंगे. सरकार ने बताया कि 88 लाख श्रमिकों को प्रतिदिन मनरेगा से रोजगार मिला; 50 लाख से अधिक लोगों को वृहद् और एमएसएमई इकाइयों में रोजगार मिला और 11 लाख कामगारों को नये रोजगार उपलब्ध करने के लिए एमओयू हस्ताक्षरित हुए.

20 जून 2020 से 6 राज्यों के 116 जिलों के 29 लाख श्रमिकों के लिए 50 हजार करोड़ रुपए वाली गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की गयी. यूपी के 31 जिलों में प्रत्येक जिले में कम से कम 25 हजार श्रमिकों को गरीब कल्याण रोजगार अभियान जिसके तहत प्रवासी मजदूरों को 125 दिन 4 महीने रोजगार की बात कही गयी, इसके बारे में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अगर मजदूर गांव में ही रुकते हैं तो इसकी अवधि 6 माह से एक साल तक के लिए बढ़ायी जा सकती है. यह योजना मनरेगा से अलग है.

सरकार और जिला प्रशासन के रोजगार के दावों को ट्रेन के टिकटों की मारामारी से आसानी से समझा जा सकता है.

प्रदेश सरकार ने क्‍वारंटीन सेंटरों में मजदूरों की स्किल मैपिंग करवाने की बात करते हुए कैरियर काउंसलिंग की बात कही. आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए 2 माह मई-जून 2020 के लिए 8 लाख टन अनाज जारी किया गया, पर 2 माह में 24 लाख श्रमिकों तक ही लाभ पहुंचा. आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत प्रवासी मजदूरों के सामने आये खाद्य संकट से निपटने के लिए सरकार ने एक कॉल पर राशन कार्ड बनाने की बात कही. प्रवासियों से पंजीकरण करवाने को कहा गया. प्रवासियों को भुगतान सम्बंधित समस्याओं को देखते हुए डाक विभाग द्वारा घर-घर पोस्टमैन के जरिये इण्डिया पोस्ट पेमेंट बैंक में 29 जून से खाता खोलने का दावा किया गया. अतिकुपोषित बच्चों को कोविड के खतरे से बचाने के लिए उनके परिवारों का राशन कार्ड बनाने की बात कही गयी.

मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप अधिक से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके ही गाँव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 2 लाख मनरेगा से प्रतिदिन रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया गया. आजमगढ़ में लघु सिंचाई विभाग को 3 करोड़ की कार्य योजना बनाकर प्रस्तुत करने की बात कही गयी. वन विभाग जहां पौधारोपण करा रहा था वहां सुरक्षा खाई आदि बनाने के लिए 100 लाख रुपये का प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने के लिए उसे निर्देशित किया गया. सिंचाई विभाग को 50 करोड़ रुपए का लक्ष्य देते हुए निर्देश दिये गये कि तमसा नदी में ड्रेजिंग की कार्य योजना बनाएं.

प्रदेश में 4209897 श्रमिकों को रोजगार देने के दावे के साथ कहा गया कि आजमगढ़ 117573 श्रमिकों को रोजगार देते हुए तीसरे स्थान पर है. लोक निर्माण विभाग ने भी प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने का वादा किया. प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के तहत निशुल्क प्रति यूनिट पांच किलो चावल और प्रति कार्ड एक किलो चना 20 से 30 जून तक दिए जाने की बात कही गयी. लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने के दावे के साथ आजमगढ़ जिला पूर्ति‍ अधिकारी ने कहा कि 7987 प्रवासियों का अस्थायी राशन कार्ड बनाया गया था, जिसमें से 11 जून, 2020 तक 7079 प्रवासियों को राशन उपलब्ध कराया जा चुका है.

प्रवासी मजदूरों के लिए प्रवासी श्रमिक सहायता हेल्प डेस्क बनाया गया जिसके तहत 10 सवाल पूछे गये जिसमें यह भी था कि वो यहां रुकेंगे या पुनः वापस जाएंगे. जिस वक्त एक लाख सत्तावन हजार प्रवासी आने की बात कही गयी तो बताया गया कि सत्यापन में 40 फीसदी अकुशल और 60 फीसदी कुशल मज़दूर मिले. 85700 प्रवासी मजदूर मई 2020 से आये, 54000 प्रवासी व कामगारों को एक-एक हजार रुपए देने का भी दावा किया गया.

जिलाधिकारी आजमगढ़ ने कहा कि 26 जून से एक साथ सभी सामुदायिक शौचालय का निर्माण प्रारंभ हो. इसके तहत एक लाख पचास हजार मानव दिवस सृजित करना है. डीसी मनरेगा कहते हैं कि किसी भी कीमत पर जेसीबी मशीनों से कार्य न हो. वहीँ शेखुपुर के प्रवासी मजदूर रिंकू यादव ने जब ग्राम प्रधान द्वारा जेसीबी से कार्य करने की शिकायत की तो प्रधान ने उनके ऊपर ही मुकदमा कर दिया. कई शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गयी.


रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव द्वारा जारी


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