ज़िंदा हैं प्रेमचंद के ‘हतभागे किसान’: लमही में किसान आंदोलन पर प्रलेस की चर्चा


वाराणसी। लमही में प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद के विशिष्ट लेख ‘हतभागे किसान’ का पाठ किया गया। प्रेमचंद स्मारक लमही में प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) की वाराणसी इकाई ने यह आयोजन किया। देश में चल रहे किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचंद के इस लेख का वाचन किया गया।

‘हतभागे किसान’ नामक इस लेख में भारतीय किसान का शोषण और दोहन जिस प्रकार से किसी भी व्यवस्था में होता है, उससे किसानों को परिचित कराया गया है। आलेख वाचन के बाद हुई परिचर्चा में वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्तुत कृषि संबंधी कानून की समीक्षा की गई और उसके महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करते हुए किसानों से उनकी राय जानने का उपक्रम किया गया। यूँ तो यह इलाका लमही अब गाँव नहीं रहा फिर भी यहाँ कुछ गाँव अभी भी बचे हुए हैं। इस बचे हुए गाँव के किसान अपनी जमीन औने-पौने बेचने के लिए मज़बूर हैं या फिर उसी के सहारे जैसे-तैसे गुजर-बसर कर रहे हैं। सब्जी बोने वाले किसानों की हालत बेहद खराब है और लमही में लगने वाली मंडी उनका सहारा है।

बातचीत के दौरान बहुत से किसान कृषि संबंधी इस नए कानून से बिल्कुल नावाकिफ दिखाई दिए और अनेकों ने इसे राजनीतिक मामला बताया। लेकिन ऐसे किसान भी मिले जो इस संबंध में काफी जागरूक लगे और उनकी चिंता इस नए कानून को लेकर बेहद गंभीर लगी। वे सोच रहे हैं कि आने वाले वक्त में किसानों की मंडी और उनके माल की खपत का जरिया वगैरह किस तरह का होगा, इससे वे बेचैन हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय किसान जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लेखक प्रेमचंद हैं। पूरे उत्तर भारत में नए कृषि कानून को लेकर किसानों में बेचैनी दिखाई दे रही है। वे वास्तविक स्थिति जानना चाहते हैं किंतु बताने वाला कोई नहीं है और अधिकतर किसान तो अनजान हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है कि इन किसानों की व्यथा प्रेमचंद के कथा साहित्य और उनके अनेक लेखों में है। किसानों के लिए संघर्ष करते हुए अमवारी में महापंडित राहुल सांकृत्यायन पर हमला हुआ और उनका सिर फूटा, बावजूद इसके उन्हें ही जेल भी भेजा गया। उनके साथ ही प्रसिद्ध कवि बाबा नागार्जुन इसी अमवारी किसान आंदोलन में जेल गए। बाद के दिनों में कैफी आजमी, वामिक जौनपुरी, सागर सुल्तानपुरी, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, धूमिल, बेकल उत्साही, अदम गोंडवी, बल्ली सिंह चीमा आदि किसान चेतना के विशिष्ट साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में किसान-जीवन और उसके संघर्ष को स्वर दिया है।

किसान चेतना से सरोकार रखने वाले साहित्यकारों ने लमही स्थित प्रेमचंद स्मारक पहुँचकर सबसे पहले उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात लमही और आसपास के गाँवों का भ्रमण किया। इस दौरान, जनकवि शिवकुमार पराग, डॉ. मोहम्मद आरिफ, डॉ. संजय श्रीवास्तव, डॉ. गोरखनाथ, डॉ. वंदना चौबे, कामता प्रसाद, सुरेश दुबे, राजीव गोड़, राजेश यादव, राहुल विद्यार्थी आदि साथ में थे।

रिपोर्ट : डॉ. गोरखनाथ अध्यक्ष
प्रगतिशील लेखक संघ वाराणसी इकाई (उ.प्र.)


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