बनारस: बदली परिस्थिति में सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका पर तीन दिवसीय कार्यक्रम में सघन चर्चा


देश के मौजूदा दौर में रंग, कपड़े, बोली और भाषा को लेकर लोगों को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है यह बेहद खतरनाक है। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि नफरत फैलाने वालों का दिल मुहब्बत के पैगाम से जीतें। एक न एक दिन यह प्रयास रंग लाएगा और हम समावेशी समाज व सतरंगी दुनिया बनाने में कामयाब होंगे।

नवसाधना स्थित नव साधना कला केंद्र में आयोजित ‘प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण’ कार्यक्रम में दूसरे दिन देश के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, सेन्टर फार हार्मोनी एंड पीस और राइज एंड एक्ट के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में महाराष्ट्र से आये डॉ. राजेन्द्र फुले ने एकल नुक्कड़ नाटक के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया कि ये एक ऐसा माध्यम है जो सबसे कम खर्च पर समाज को जोड़ने का काम करता है। नफरत फैलाने वाले समाज को भी सभ्य समाज में बदल सकता है। जो काम लम्बे भाषण से नहीं हो सकता है वह नुक्कड़ नाटक के दो मिनट के संवाद से हो सकता है।

असम से आये वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद रबिउल हक ने अपने राज्य में चल रही सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि देश का म्यूजियम कहे जाने वाले इस राज्य में आजकल राजनीतिक हलचल तेज है। समाज के एक तबके का पसीना बहाने का काम हो रहा है- पहले सीएए फिर डी वोटर्स का मुद्दा था। फिर एजेंडा बदला तो मदरसों को निशाने पर लिया गया और अब सरकारी जमीन पट्टे पर लेकर रहने वाला दबा कुचला समाज निशाने पर है। वहां भी बुलडोजर की इंट्री हो गयी है और ऐसे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।

लखनऊ हाईकोर्ट की अधिवक्ता शीतल शर्मा ने महिलाओं के अधिकार और कानूनी मुद्दों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के हित में कानून तो बेहद कठोर बने हैं पर इस दौरान देखने में यह आ रहा है कि फर्जी केस की संख्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई कानूनों में नये वर्डिक्ट दिए हैं जिससे महिलाओं की मजबूती के लिए बने कानून कमजोर हुए हैं। मसलन, दहेज उत्पीड़न के मामले में अब गिरफ्तारी नहीं हो सकती; मेंटेनेंस के मामले में यदि महिला स्नातक है तो उसे गुजारा भत्ता एक साल ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं को इन सवालों को लेकर सोचने की आवश्यकता है क्योंकि कुछ महिलाओं के उठाए ऐसे कदम से सचमुच में पीड़ित महिला इंसाफ से वंचित हो जाएगी।

कार्यक्रम के अंतिम दिन नई दिल्ली स्थित भारतीय सामाजिक संस्थान के फादर भिनसेंट एक्का ने  कहा कि नजरिया बदले बिना आदिवासी समाज का कल्याण असंभव है। आदिवासियों को समझने के लिए आदिवासी नजरिया होना जरूरी है। बिना इसके आदिवासी समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि देश में 705 आदिवासी समुदाय हैं लेकिन यह इस समाज का दुर्भाग्य है कि उनकी पूरी गिनती तक नहीं है। देश में आदिवासी समाज करीब 20 फीसदी है पर सरकारी गणना में सिर्फ़ 8.02 फीसदी ही बताया जाता है। उन्होंने कहा कि आज आदिवासियों के स्वशासन का मुद्दा सबसे अहम है। विडम्बना देखिए कि साल 1996 में उनके विकास और उत्थान के लिए बना कानून आज तक लागू नहीं हो सका है।

फादर एक्का ने कहा कि सरकार और आदिवासी समाज में एक-दूसरे को समझने को लेकर हमेशा से मतभेद रहा है। सरकार जिसे आवश्यक समझती है वह इस समाज को गैरजरूरी लगता है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम इस समाज के विकास के लिए अपना नजरिया बदलें।

इस शिविर में बदली परिस्थिति में ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं की क्या भूमिका हो’ इस पर समूह चर्चा हुई। समारोह में देश के अन्य राज्यों से आये प्रतिभागियों का यूपी चैप्टर की तरफ की तरफ से अंगवस्त्रम, प्रमाणपत्र और पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम के अंतिम दिन तय हुआ कि जनपद सोनभद्र में डेढ़ एकड़ भूमि पर विरसा मुंडा के नाम पर एक अध्ययन केंद्र बनाया जाएगा। केन्द्र का शिलान्यास 15 अगस्त को होगा। इस बात की जानकारी देते हुए आयोजक डॉ. मुहम्मद आरिफ़ ने बताया कि सोनभद्र जनपद के नगवा ब्लॉक के ग्राम तेनुडाही के रहने वाले रामजतन खरवार ने विरसा मुंडा के लिए जमीन देने का फैसला किया है। उन्होंने बताया कि केन्द्र का निर्माण वहां रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रामजनम, अयोध्या और कमलेश कुमार की देखरेख में किया जाएगा। उन्होंने बताया कि सेन्टर फार हारमोनी एंड पीस की तरफ से संजय सिंह के संपादन में जनपद  कुशीनगर के कसया से साझी विरासत की प्रतिनिधि पत्रिका ‘सद्भावना सागर’ का प्रकाशन जल्द ही शुरू किया जाएगा।


(डॉक्टर मोहम्मद आरिफ़ द्वारा जारी)


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